Wednesday 30 June 2021

गुरुकुल शिक्षा

 इंग्लैंड में पहला स्कूल 1811 में खुला उस समय भारत में  732000 गुरुकुल थे । खोजिए हमारे गुरुकुल कैसे बन्द हुए ❓


: गुरुकुल कैसे खत्म हो गये❓


आपको पहले ये बता दे कि हमारे सनातन संस्कृति परम्परा के गुरुकुल मे क्या क्या पढाई होती थी ! आर्यावर्त के गुरुकुल के बाद ऋषिकुल में क्या पढ़ाई होती थी ये जान लेना आवश्यक है । इस शिक्षा को लेकर अपने विचारों में परिवर्तन लायें और प्रचलित भ्रांतियां दूर करें !


01 अग्नि विद्या (Metallurgy)

02 वायु विद्या (Flight) 

03 जल विद्या (Navigation) 

04 अंतरिक्ष विद्या (Space Science) 

05 पृथ्वी विद्या (Environment)

06 सूर्य विद्या (Solar Study) 

07 चन्द्र व लोक विद्या (Lunar Study) 

08 मेघ विद्या (Weather Forecast) 

09 पदार्थ विद्युत विद्या (Battery) 

10 सौर ऊर्जा विद्या (Solar Energy) 

11 दिन रात्रि विद्या 

12 सृष्टि विद्या (Space Research) 

13 खगोल विद्या (Astronomy) 

14 भूगोल विद्या (Geography) 

15 काल विद्या (Time) 

16 भूगर्भ विद्या (Geology Mining) 

17 रत्न व धातु विद्या (Gems & Metals)

18 आकर्षण विद्या (Gravity) 

19 प्रकाश विद्या (Solar Energy) 

20 तार विद्या (Communication) 

21 विमान विद्या (Plane)

22 जलयान विद्या (Water Vessels) 

23 अग्नेय अस्त्र विद्या (Arms & Ammunition)

24 जीव जंतु विज्ञान विद्या (Zoology Botany) 

25 यज्ञ विद्या (Material Sic)


ये तो बात हुई वैज्ञानिक विद्याओं की । अब बात करते है व्यावसायिक और तकनीकी विद्या की !


26 वाणिज्य (Commerce)

27 कृषि (Agriculture)

28 पशुपालन (Animal Husbandry) 

29 पक्षिपलन (Bird Keeping) 

30 पशु प्रशिक्षण (Animal Training) 

31 यान यन्त्रकार (Mechanics) 

32 रथकार (Vehicle Designing) 

33 रतन्कार (Gems) 

34 सुवर्णकार (Jewellery Designing)

35 वस्त्रकार (Textile) 

36 कुम्भकार (Pottery) 

37 लोहकार (Metallurgy)

38 तक्षक

39 रंगसाज (Dying) 

40 खटवाकर 

41 रज्जुकर (Logistics)

42 वास्तुकार (Architect)

43 पाकविद्या (Cooking)

44 सारथ्य (Driving)

45 नदी प्रबन्धक (Water Management)

46 सुचिकार (Data Entry)

47 गोशाला प्रबन्धक (Animal Husbandry)

48 उद्यान पाल (Horticulture)

49 वन पाल (Horticulture)

50 नापित (Paramedical)


यह सब विद्या गुरुकुल में सिखाई जाती थी पर समय के साथ गुरुकुल लुप्त हुए तो यह विद्या भी लुप्त होती गयी ! आज मैकाले पद्धति से हमारे देश के युवाओं का भविष्य नष्ट हो रहा तब ऐसे समय में गुरुकुल के पुनः उद्धार की आवश्यकता है।


भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ? कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद । 1858 में Indian Education Act बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकाले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Luther और दूसरा था Thomas Munro ! दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। Luther, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है ।


मैकाले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे । 


मैकाले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है - “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।” इस लिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया | जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी | फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया | उनमें आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला। 

1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50 हजार’ । मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे । उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिलके चलाते थे न कि राजा, महाराजा ।


गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया । उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था । इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी, ये तीनों गुलामी ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी देश में हैं !


मैकाले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि: “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा । इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है । अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा । हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा। 


लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है । दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी भाषा सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है ॽ  शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी । समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। 


संयुक्तराष्टसंघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी ! जिसमे लगभग वो विजय पा चुके क्योंकि आज का युवा भारत को कम यूरोप को ज्यादा जनता है । भारतीय संस्कृति को ढकोसला समझता है लेकिन पाश्चात्य देशों को नकल करता है ।  धर्म की प्रमुखता और विशेषता को न जानते हुए भी वामपंथियों का समर्थन करता है।


सभी बन्धुओ से एक चुभता सवाल हमसभी को धर्म की जानकारी होनी चाहिये । क्योंकि धर्म ही हमे राष्ट्र धर्म सिखाती है, धर्म ही हमे समाजिकता सिखाती है, धर्म ही हमे माता - पिता,  गुरु और राष्ट्र के प्रति प्राण न्योछावर करने की प्रेरणा देती है। परंपरा एक आध्यात्मिक विज्ञान है, जिस विज्ञान को हम सभी आज जानते है उससे बहुत ही समृद्ध विज्ञान ही अध्यात्म है..

Monday 14 June 2021

Kejriwal man of his words



केजरीवाल गलत नहीं कह रहा है...

नए कृषि कानून के विरोध में केजरीवाल और उसका पूरा AAP गैंग दावा कर रहा है कि इस कानून से किसानों की जमीन पर अडानी अम्बानी का क़ब्ज़ा कराने की साजिश प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं.

केजरीवाल के इस दावे पर मुझे बिल्कुल आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि गोस्वामी तुलसीदास सैकड़ों वर्ष पूर्व ही लिख गए हैं कि...

"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी." 

यही कारण है कि जमीन हड़पने की साजिश के अलावा केजरीवाल को कुछ और सूझ भी नहीं सकता. जमीन हड़प लेने के गोरखधंधे का पाठ उसने अपने बाप से अपने घर में ही पढ़ा और सीखा है. जमीन हड़पने का उसका अनुभव खानदानी है.

जिनको याद नहीं हो उन्हें याद दिला दूं कि अरविंद केजरीवाल की बुआ , फ़ूफा और भतीजे ने अरविंद केजरीवाल के घर के सामने 9 मार्च 2014 को सपरिवार धरना दिया था. लेकिन केजरीवाल के सुरक्षा कर्मियों और AAP के गुंडों ने उन्हें खदेड़ दिया था. उस समय अरविंद केजरीवाल की सगी बुआ सीता देवी का परिवार बहादुरगढ़ की अनाज मंडी में रहता था और परिवार की माली हालत बेहद खस्ता थी. सीता देवी का बेटा रामबिलास खली-बिनौले और चावल आदि की छोटी दुकान चलाता था लेकिन इससे परिवार का गुजारा नहीं चलता था. सीता देवी के परिवार ने अरविंद केजरीवाल के बाप गोविंदराम पर यह गम्भीर आरोप लगाया था कि गोविंदराम ने रेवेन्यू रिकार्ड में अपनी बहन सीता देवी को अपने पिता की पत्नी यानी अपनी मां लिखवाकर अपनी बहन की कीमती जमीन हड़प ली है. परिवार ने बताया था कि अरविंद केजरीवाल की बुआ सीता देवी ने 28 अप्रैल 2006 को भिवानी जिले के गांव सिवानी मंडी स्थित अपनी करीब 16000 गज जमीन की पॉवर ऑफ अटार्नी अपने भाई यानी अरविंद के पिता गोविंदराम के नाम करा दी थी. लेकिन राम बिलास के अनुसार अरविंद केजरीवाल के बाप गोविंदराम ने इस अधिकार का दुरुपयोग करते हुए बहन सीतादेवी की सारी जमीन अपने नाम करा ली. बकौल रामबिलास, उन्हें पता लगा कि गोविंदराम ने रेवेन्यू रिकार्ड में अपनी बहन सीतादेवी को अपनी मां बताकर जमीन हड़प ली. यानी ये जमीन गोविंद राम की मां (असलियत में बेटी) के नाम आ गई, जिससे उसके मालिकाना अधिकार गोविंद राम के हो गए. अरविंद केजरीवाल की सगी बुआ सीता देवी का गरीब बेटा राम बिलास इस जमीन को हासिल करने के लिए अरविंद केजरीवाल के पिता यानी अपने मामा के साथ उस समय तक कई साल से अदालत में लड़ाई लड़ रहा था. आज उस मामले की क्या स्थिति है यह पता नहीं क्योंकि केजरीवाल के विज्ञापनों के बोझ से लदी दिल्ली की मीडिया और न्यूजचैनलों ने केजरीवाल के बाप गोविंद राम की उस करतूत पर पिछले छह साल से मुर्दों की तरह चुप्पी साध ली है.

आज अपनी पोस्ट की शुरुआत मैंने इसीलिए यह लिख कर की है कि... केजरीवाल गलत नहीं कह रहा है...

दरअसल केजरीवाल जमीन पर कब्जे के अलावा कुछ और सोच ही नहीं सकता है.


 




Wednesday 9 June 2021

Mr. Hamilton Naki "मास्टरऑफमेडिसिन"

 एक था अनपढ़ डॉक्टर ..

जिसे  "मास्टरऑफमेडिसिन"  की मानद उपाधि मिली ...


Mr. Hamilton Naki....


केपटाउन के 

अशिक्षित व्यक्ति सर्जन 

श्री हैमिल्टन नकी, 

जो एक भी अंग्रेज़ी शब्द नहीं पढ़ सकते थे 

और ना ही लिख सकते थे, जिन्होंने अपने जीवन में कभी स्कूल का चेहरा नहीं देखा था... 

उन्हें मास्टर ऑफ मेडिसीन की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया ।

आइए देखे कि यह कैसे संभव है ...


केपटाउन मेडिकल यूनिवर्सिटी जगत् में अग्रणी स्थान पर है । 

दुनिया का पहला बाइपास ऑपरेशन इसी विश्वविद्यालय में हुआ । 

सन् 2003 में, एक सुबह, विश्व प्रसिद्ध सर्जन प्रोफेसर डेविड डेंट ने विश्वविद्यालय के सभागार में घोषणा की: "आज हम उस व्यक्ति को चिकित्सा क्षेत्र में मानद उपाधि प्रदान कर रहे हैं, जिसने सबसे अधिक सर्जरी की हैं ।


इस घोषणा के साथ प्रोफेसर ने "हैमिल्टन" का गौरव किया और पूरा सभागार खड़ा हो गया ।

हैमिल्टन ने सभी को अभिवादन किया ...


यह इस विश्वविद्यालय के इतिहास का सबसे बड़ा स्वागत समारोह था ।


हैमिल्टन का जन्म केपटाउन के एक सुदूर गाँव सैनिटानी में हुआ था । 

उनके माता-पिता चरवाहे थे, वे बचपन में बकरी की खाल पहनते और पूरे दिन नंगे पांव पहाड़ों में घूमते रहते उनके पिताजी बीमार पड़ने के कारण हैमिल्टन केपटाउन पहुँचे । 


वही विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य चला था ।  

वे एक मज़दूर के रूप में विश्वविद्यालय से जुड़े । 

कई वर्षो तक उन्होंने वहाँ काम किया । 

दिन भर के काम के बाद जितना पैसा मिलता, वह घर भेज देते थे और खुद सिकुड़ कर खुले मैदान में सो जाते थे । 

उसके बाद उन्हें टेनिस कोर्ट के ग्राउंड्स मेंटेनेंस वर्कर के रुप में रखा गया । 

यह काम करते हुए तीन साल बीते ।


फिर उनके जीवन में एक अजीब मोड़ आया और वह चिकित्सा विज्ञान में एक ऐसे बिंदु पर पहुँच गए,  जहाँ कोई और कभी नहीं पहुँच पाया था ।



यह एक सुनहरी सुबह थी । "प्रोफेसर रॉबर्ट जॉयस, जिराफों पर शोध करना चाहते थे: 

उन्होंने ऑपरेटिंग टेबल पर एक जिराफ रखा, 

उसे बेहोश कर दिया, 

लेकिन जैसे ही ऑपरेशन शुरू हुआ, जिराफ ने अपना सिर हिला दिया।  


उन्हें जिराफ की गर्दन को मजबूती से पकड़े रखने के लिए एक हट्टे कट्टे आदमी की जरूरत थी । 

प्रोफेसर थिएटर से बाहर आए, 'हैमिल्टन' लॉन में काम कर रहे थे, 

प्रोफेसर ने देखा कि वह मज़बूत कद काठी का स्वस्थ युवक है । 


उन्होंने उसे बुलाया और उसे जिराफ़ को पकड़ने का आदेश दिया ।


ऑपरेशन आठ घंटे तक चला । 

ऑपरेशन के दौरान, डॉक्टर चाय और कॉफ़ी ब्रेक लेते रहे, 

हालांकि "हैमिल्टन" वे जिराफ़ की गर्दन पकड़कर खड़े रहे । 

जब ऑपरेशन खत्म हो गया, तो हैमिल्टन चुपचाप चले गए । 


अगले दिन प्रोफेसर ने हैमिल्टन को फिर से बुलाया, 

वह आया और जिराफ की गर्दन पकड़कर खड़ा हो गया, 

इसके बाद यह उसकी दिनचर्या बन गई । 

हैमिल्टन ने कई महीनों तक दुगना काम किया, और उसने न अधिक पैसे माँगे, ना ही कभी कोई शिकायत की । 


प्रोफेसर रॉबर्ट जॉयस उनकी दृढ़ता और ईमानदारी से प्रभावित हुए और हैमिल्टन को टेनिस कोर्ट से 'लैब असिस्टेंट' के रूप में पदोन्नत किया गया । 


अब वह विश्वविद्यालय के ऑपरेटिंग थियेटर में सर्जनों की मदद करने लगे । 

यह प्रक्रिया सालों तक चलती रही ।


1958 में उनके जीवन में एक और मोड़ आया । 

इस वर्ष डॉ. बर्नार्ड ने विश्वविद्यालय में आकर हृदय प्रत्यारोपण ऑपरेशन शुरू किया । 


हैमिल्टन उनके सहायक बन गए, 

इन ऑपरेशनों के दौरान, वे सहायक से अतिरिक्त सर्जन पद पर कार्यरत थे ।


अब डॉक्टर ऑपरेशन करते और ऑपरेशन के बाद हैमिल्टन को सिलाई का काम दिया जाता था । 

वह बेहतरीन टाँके लगाते। उनकी उंगलियाँ साफ और तेज थीं । 

वे एक दिन में पचास लोगों को टाँके लगाते थे । 

ऑपरेटिंग थियेटर में काम करने के दौरान, वे मानव शरीर को सर्जनों से अधिक समझने लगे इसलिए वरिष्ठ डॉक्टरों ने उन्हें अध्यापन की जिम्मेदारी सौंपी ।


उन्होंने अब जूनियर डॉक्टरों को सर्जरी तकनीक सिखाना शुरू किया । 

वह धीरे-धीरे विश्वविद्यालय में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए । 

वह चिकित्सा विज्ञान की शर्तों से अपरिचित थे ...

लेकिन वह सबसे कुशल सर्जन साबित हुए ।


उनके जीवन में तीसरा मोड़ 

सन् 1970 में आया, 

जब इस साल लीवर पर शोध शुरू हुआ और उन्होंने सर्जरी के दौरान 

लिवर की एक ऐसी धमनी की पहचान की, जिससे लीवर प्रत्यारोपण आसान हुआ ।


उनकी टिप्पणियों ने चिकित्सा विज्ञान के महान दिमागों को चकित कर दिया।



आज, जब दुनिया के किसी कोने में किसी व्यक्ति का लीवर ऑपरेशन होता है 

और मरीज अपनी आँखें खोलता है, नई उम्मीद से फिर से जी उठता है ....

तब इस सफल ऑपरेशन का श्रेय सीधे "हैमिल्टन" को जाता है ।


हैमिल्टन ने ईमानदारी और दृढ़ता के साथ यह मुकाम हासिल किया । 

वे केपटाउन विश्वविद्यालय से 50 वर्षों तक जुड़े रहे । 

उन 50 वर्षों में उन्होंने कभी छुट्टी नहीं ली।


वे रात को तीन बजे घर से निकलते थे, 14 मील पैदल चलकर विश्वविद्यालय जाते थे,

और वह ठीक छः बजे ऑपरेशन थिएटर में प्रवेश करते थे । 


लोग उनके समय के साथ अपनी घड़ियों को ठीक करते थे ।


उन्हें यह सम्मान मिला जो चिकित्सा विज्ञान में किसी को भी नहीं मिला है।


वे चिकित्सा इतिहास के पहले अनपढ़ शिक्षक थे ।


वे अपने जीवनकाल में 30,000 सर्जनों को प्रशिक्षित करनेवाले पहले निरक्षर सर्जन थे ।


2005 में उनकी मृत्यु हो गई और उन्हें विश्वविद्यालय में दफनाया गया ।


इसके बाद सर्जनों को विश्वविद्यालय ने अनिवार्य कर दिया गया कि वे डिग्री हासिल करने के बाद उनकी कब्र पर जाएँ, 

एक तस्वीर खिंचे और फिर अपने सेवा कार्य में जुटे ।


"आपको पता है कि उन्हें यह पद कैसे मिला ?”

"केवल एक 'हाँ'।"


जिस दिन उन्हें जिराफ की गर्दन पकड़ने के लिए ऑपरेटिंग थियेटर में बुलाया गया, अगर उन्होंने उस दिन मना कर दिया होता, अगर उस दिन उन्होंने कहा होता,' मैं ग्राउंड्स मेंटेनेंस वर्कर हूँ, मेरा काम जिराफ की गर्दन पकड़ना नहीं है तब…' सोचिए! 

केवल एक ''हाँ ।" 

और अतिरिक्त आठ घंटे की कड़ी मेहनत थी, जिसने उनके लिए सफलता के द्वार खोल दिए और वह सर्जन बन गए ।

 

"हम में से ज्यादातर लोग अपने जीवनभर नौकरी की तलाश में रहते हैं जबकि हमें काम ढूंढना होता है । ”


दुनिया में हर काम का एक मानदंड होता है 

और नौकरी केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध होती है जो मानदंडों को पूरा करते हैं 

जबकि अगर आप काम करना चाहते हैं, 

तो आप दुनिया में कोई भी काम कुछ ही मिनटों में शुरू कर सकते हैं और कोई भी ताकत आपको रोक नहीं सकेगी । 

 

हैमिल्टन ने रहस्य पाया था, 

उन्होंने नौकरी के बजाय काम करते रहने को महत्व दिया ।


इस प्रकार उन्होंने चिकित्सा-विज्ञान के इतिहास को बदल दिया । 

सोचिए अगर वे सर्जन की नौकरी के लिए आवेदन करते तो क्या वह सर्जन बन सकते थे ? 

कभी नहीं, लेकिन उन्होंने जिराफ की गर्दन पकड़ी और सर्जन बन गए ।


बेरोज़गार लोग असफल होते हैं क्योंकि वे सिर्फ नौकरी की तलाश करते हैं, काम की नहीं ।


जिस दिन आपने "हैमिल्टन" की तरह काम करना शुरू किया, 

आप सफल एवं महान मानव बन जाएँगे ।

डॉ. श्रीकांत जिचकर

 अद्भुत, अकल्पनीय, अविश्वसनीय किन्तु सत्य


आपसे कोई पूछे भारत के सबसे अधिक शिक्षित एवं विद्वान व्यक्ति का नाम बताइए,


 जो,

 

⭕ डॉक्टर भी रहा हो,

⭕ बैरिस्टर भी रहा हो,

⭕ IPS अधिकारी भी  रहा हो,

⭕ IAS अधिकारी भी रहा हो,

⭕ विधायक, मंत्री,  सांसद भी रहा हो,

⭕ चित्रकार, फोटोग्राफर भी रहा हो, 

⭕ मोटिवेशनल स्पीकर भी रहा हो,

⭕ पत्रकार भी रहा हो,

⭕ कुलपति भी रहा हो, 

⭕ संस्कृत, गणित का विद्वान भी रहा हो,

⭕ इतिहासकार भी रहा हो,

⭕ समाजशास्त्र,  अर्थशास्त्र का भी ज्ञान रखता हो,

⭕ जिसने काव्य रचना भी की हो !


अधिकांश लोग यही कहेंगे -

"क्या ऐसा संभव है ?आप एक व्यक्ति की बात कर रहे हैं या किसी संस्थान की ?"


पर भारतवर्ष में ऐसा एक व्यक्ति मात्र 49 वर्ष की अल्पायु में भयंकर सड़क हादसे का शिकार हो कर  इस संसार से विदा भी ले चुका है !


उस व्यक्ति का नाम है- 


 डॉ. श्रीकांत जिचकर ! 


श्रीकांत जिचकर का जन्म 1954 में एक संपन्न मराठा कृषक परिवार में हुआ था ! 


वह भारत के सर्वाधिक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे, जो गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है !


डॉ. श्रीकांत ने 20 से अधिक डिग्री हासिल की थीं !

 

कुछ रेगुलर व कुछ पत्राचार के माध्यम से ! 


वह भी फर्स्ट क्लास,  गोल्डमेडलिस्ट, कुछ डिग्रियां तो उच्च शिक्षा में नियम ना होने के कारण उन्हें नहीं मिल पाई, जबकि इम्तिहान उन्होंने दे दिया था !


 उनकी डिग्रियां/ शैक्षणिक योग्यता इस प्रकार थीं...


✔️MBBS, MD gold medalist, 

✔️LLB, LLM, 

✔️MBA, 

✔️Bachelor in  journalism ,

✔️संस्कृत में डी. लिट.  की उपाधि, यूनिवर्सिटी टॉपर ,

✔️M. A इंग्लिश,

✔️M.A हिंदी,

✔️M.A हिस्ट्री,

 ✔️M.A  साइकोलॉजी,

✔️M.A  सोशियोलॉजी,

✔️M.A पॉलिटिकल साइंस,

✔️M.A  आर्कियोलॉजी,

 ✔️M.A एंथ्रोपोलॉजी,

✔️श्रीकान्तजी 1978 बैच के आईपीएस व 1980 बैच के आईएएस अधिकारी भी रहे !

✔️1981 में महाराष्ट्र में  विधायक बने,

✔️1992 से लेकर 1998 तक राज्यसभा सांसद रहे !


❗श्रीकांत जिचकर ने वर्ष 1973 से लेकर 1990 तक का समय यूनिवर्सिटी के इम्तिहान देने में गुजारा !


❗1980 में आईएएस की केवल 4 महीने की नौकरी कर इस्तीफा दे दिया !

                

❗26 वर्ष की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के विधायक बने, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री भी बने,


❗14 पोर्टफोलियो हासिल कर सबसे प्रभावशाली मंत्री रहे !


❗महाराष्ट्र में पुलिस सुधार किये !


❗1992 से लेकर 1998 तक बतौर राज्यसभा सांसद संसद की बहुत सी समितियों के सदस्य रहे, वहाँ भी महत्वपूर्ण कार्य किये !


❗1999 में कैंसर लास्ट स्टेज का डायग्नोज हुआ, डॉक्टर ने कहा आपके पास केवल एक महीना है ! 


अस्पताल पर मृत्यु शैया पर पड़े हुए थे...

लेकिन आध्यात्मिक विचारों के धनी श्रीकांत जिचकर ने आस नहीं छोड़ी ।


उसी दौरान कोई सन्यासी अस्पताल में आया। उसने उन्हें ढांढस बंधाया ।

 

संस्कृत भाषा, शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया । कहा- "तुम अभी नहीं मर सकते...अभी तुम्हें बहुत काम करना है...!"


चमत्कारिक तौर से श्रीकांत जिचकर पूर्ण स्वस्थ हो गए...!


👍 स्वस्थ होते ही राजनीति से सन्यास लेकर...संस्कृत में डी.लिट. की उपाधि अर्जित की !


वे कहा करते थे - "संस्कृत भाषा के अध्ययन के बाद मेरा जीवन ही परिवर्तित हो गया है ! मेरी ज्ञान पिपासा अब पूर्ण हुई है !"


👍पुणे में संदीपनी स्कूल की स्थापना की, 


👍नागपुर में कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसके पहले कुलपति भी वे बने !


उनका पुस्तकालय किसी व्यक्ति का निजी सबसे बड़ा पुस्तकालय था, जिसमें 52000 के लगभग पुस्तकें थीं !


 उनका एक ही सपना बन गया था, भारत के प्रत्येक घर में कम से कम एक  संस्कृत भाषा का विद्वान हो तथा कोई भी परिवार मधुमेह जैसी  जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का शिकार ना हो ! 

 

यूट्यूब पर उनके केवल 3 ही मोटिवेशनल हेल्थ फिटनेस संबंधित वीडियो उपलब्ध हैं !


 ऐसे असाधारण प्रतिभा के लोग, आयु के मामले में निर्धन ही देखे गए हैं । 


अति मेधावी, अति प्रतिभाशाली व्यक्तियों का जीवन ज्यादा लंबा नहीं होता ।

शंकराचार्य, महर्षि दयानंद सरस्वती, विवेकानंद  भी अधिक उम्र नहीं जी पाए थे !


2 जून 2004 को नागपुर से 60 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र में ही भयंकर सड़क हादसे में श्रीकांत जिचकर का निधन हो गया !


संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार व  Holistic health को लेकर उनका कार्य अधूरा ही रह गया !


2 जून को डॉ. श्रीकांत की 17 वीं पुण्य तिथि होंगी। विभिन्न व्यक्तियों के जन्म दिवस को उत्सव की तरह मनाने वाले हमारे देश में ऐसे गुणी व्यक्ति को कोई जानता भी नहीं है, जिसके जीवन से कितने ही युवाओं को प्रेरणा मिल सकती है।


ऐसे शिक्षक,  ज्ञानी, उत्साही व्यक्तित्व,  चिकित्सक, विधि  विशेषज्ञ, प्रशासक व राजनेता के मिश्रित व्यक्तित्व को शत शत नमन 🙏


https://en.m.wikipedia.org/wiki/Shrikant_Jichkar

हिंदुओं का कत्लेआम

 बीजेपी 22 मई 2004 को अटल जी की सरकार औपचारिक रूप से विदा हुई इसके बाद देश मे हिंदुओं का कितना कत्लेआम हुआ जाने और समझें,


कोरोना माहमारी में एक ईमानदार प्रधानमंत्री का मजाक बनाने वाले जरा गौर से पढ़े 


गांधी परिवार ने श्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया...


 2014 तक कांग्रेस की सरकार केंद्र में रही...  भूल गये होंगे क्योंकि हमारी स्मृति बहुत कमजोर होती है, चलिए याद दिला देते है।


● 15 अगस्त 2004- असम के धिमजी स्कूल में बम ब्लास्ट, 18 मरे 40 घायल


● 5 जुलाई 2005- अयोध्या में रामजन्म भूमि पर आतंकवादी हमला, 6 मरे, दर्जनों घायल


● 28 जुलाई 2005- जौनपुर में श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन में RDX द्वारा बम विस्फोट, 13 मरे, 50 घायल


● 29 अक्टूबर 2005- दीपावली के त्यौहार के दो दिन पहले दिल्ली के गोविंदपुरी की बस, पहाड़गंज और सरोजनी नगर के भीड़भाड़ वाले इलाके में सीरियल ब्लास्ट, 70 लोगों के चिथड़े उड़ा दिए गए और 250 से ज्यादा घायल हुए, तारिक अहमद डार और रफीक मास्टरमाइंड।


● 28 दिसम्बर 2005- बैंगलोर के इंस्टीट्यूट आफ साइंस पर आतंकवादी हमला, 1 मरा 4 घायल


● 7 मार्च 2006- हिंदुओं की श्रद्धा के केंद्र वाराणसी के प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर और भीड़भाड़ वाले कैंट रेलवे स्टेशन पर 3 बम ब्लास्ट करके 28 श्रद्धालुओं, नागरिको को बम से उड़ा दिया,101 लोग घायल हुए, लश्करे कुहाब और सिमी का हाथ।


● 11 जुलाई 2006- मुम्बई में एक साथ


माटुंगा रोड, माहिम, बांद्रा, खार रोड, जोगेश्वरी, भाइंदर, बोरिवली स्टेशनों के लोकल ट्रेन में सीरियल ब्लास्ट, 209 मरे 700 से ज्यादा घायल, फैसल शेख, आसिफ अंसारी, आसिफ खान, कमल अंसारी, एहतसाम सिद्दकी और नावेद खान घटना के प्रमुख सूत्रधार।


● 8 सितंबर 2006- मालेगांव की मस्जिद में सीरियल ब्लास्ट, 37 मरे, 125 घायल, प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया का हाथ... बाद में चार्जशीट बदलकर हिन्दू आतंकवाद की ऐतिहासिक असफल थ्योरी बनाने की कोशिश हुई।


● 18 फरवरी 2007- समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट, 68 मरे, 50 घायल, सेना की इंटेलीजेंस ने इस्लामिक आतंकवादी संगठन लश्करे तैय्यबा का हाथ बताया... कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद बनाने के चक्कर में भारतीय सेना के कर्नल श्रीकांत पुरोहित को जेल में 7 वर्ष तक भयानक यातनाएं दी... 9 वर्ष बाद पुरोहित जेल से बाहर आये।


● हैदराबाद की मक्का मस्जिद में ब्लास्ट, 16 मरे 100 घायल, हरक़त उल जिहाद अल इस्लामी का हाथ... कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद की असफल थ्योरी एक बार फिर सिद्ध करने का प्रयास किया।


● 14 अक्टूबर 2007- लुधियाना के थियेटर में ब्लास्ट, 6 लोग मरे


● 24 नवम्बर 2007- उत्तर प्रदेश में लखनऊ, अयोध्या और बनारस के न्यायालयों में सीरियल बम बलास्ट, 16 मरे 79 घायल


● 1 जनवरी 2008- रामपुर उत्तर प्रदेश में CRPF कैम्प पर हमला, 8 मरे 7 घायल, लश्करे तय्यबा का हाथ।


● 13 मई 2008- जयपुर के छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़, मानकपुर पुलिस स्टेशन एरिया, जौहरी बाजार, त्रिपोलिया बाजार, कोतवाली क्षेत्र में RDX द्वारा 9 जगहों पर सीरियल ब्लास्ट, 63 मरे, 200 घायल, हरकत-उल-जिहाद उल इस्लामी ने ली जिम्मेदारी।


● 25 जुलाई 2008- बैंगलुरु में में 8 सीरियल ब्लास्ट, 2 मरे 20 घायल


● 26 जुलाई 2008- गुजरात के अहमदाबाद में 17 जगहों पर सीरियल बम ब्लास्ट, 35 मरे 110 घायल... मुफ़्ती अबू बशीर मास्टर माइंड... अब्दुल कादिर, हासिल मोहम्मद, हुसैन इम्ब्राहीम ने मिलकर कराची (पाकिस्तान) में बैठे नेटवर्क की सहायता से बम विस्फोट किये।


● 13 सितंबर 2008- दिल्ली के गफ्फार मार्केट, बारहखम्भा रोड, GK1, सेंट्रल पार्क में 31 मिनट के अंदर 5 बम ब्लास्ट हुए, 4 अन्य बम निष्क्रिय किये गए, 33 मरे और 150 से ज्यादा घायल... स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आठ इंडिया के आउटफिट इंडियन मुजाहिद्दीन ने किये ब्लास्ट।


● 27 सितंबर 2008- दिल्ली महरौली के इलेक्ट्रानिक मार्केट में 2 बम ब्लास्ट, 3 मरे और 33 घायल।


● 1 अक्टूबर 2008- अगरतल्ला में बम विस्फोट, 4 मरे 100 घायल


● 21 अक्टूबर 2008- इम्फाल में बम विस्फोट, 17 मरे 50 घायल


● 30 अक्टूबर 2008- असम में बम विस्फोट, 81 मरे और 500 से ज्यादा घायल


● 28 नवम्बर 2008- मुम्बई हमला ताज होटल, ओबेराय होटल, कामा हॉस्पिटल, नरीमन हाउस, लियोपोल्ड कैफे, छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस पर आतंकवादी हमला, 166 लोग मारे गए 600 से ज्यादा घायल।


● 1 जनवरी 2009- गुवाहाटी में बम ब्लास्ट, 6 मरे 67 घायल


● 6 अप्रैल 2009, गुवाहाटी में बम ब्लास्ट, 7 मरे 62 घायल


● 13 फरवरी 2010- पुणे की जर्मन बेकरी में बम ब्लास्ट,17 मरे 70 घायल... सिमी इंटरनेशनल मुजाहिद्दीन इस्लामिक मुस्लिम फ्रंट के भारतीय शाखा द्वारा किया गया बम ब्लास्ट।


● 7 दिसम्बर 2010- दशास्वमेध घाट पर गंगा आरती के समय बम ब्लास्ट, 3 मरे 36 घायल... स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया के आउटफिट इंडियन मुजाहिद्दीन ने किये ब्लास्ट।


● 13 जुलाई 2011- मुबई के ओपेरा हाउस, जावेरी बाज़ार और दादर एरिया में भीषण बेम ब्लास्ट, 26 मरे 130 लोग घायल... स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया के आउटफिट इंडियन मुजाहिद्दीन ने किये ब्लास्ट।


● 7 सितंबर 2011- दिल्ली हाईकोर्ट में बम ब्लास्ट, 17 मरे और 180 लोग घायल... हरकत उल जिहाद अल इस्लामी के आउटफिट का भारतीय मेडिकल छात्र वसीम अकरम मालिक बम बलास्ट का मास्टरमाइंड।


● 13 फरवरी 2011- इजराइली डिप्लोमेट की कार को बम से उड़ाने का प्रयास, बम सही से फटा नहीं, 4 घायल... भारतीय पत्रकार मुहम्मद अहमद काज़मी की संलिप्तता।


● 1 अगस्त 2012- पुणे ब्लास्ट, स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया के आउटफिट इंडियन मुजाहिद्दीन ने किये ब्लास्ट।


● 21 फरवरी 2013- हैदराबाद की हैदाराबाद में 2 बम ब्लास्ट, 18 मरे और 131 घायल... इंडियन मुजाहिद्दीन का फाउंडर यासीन भटकल, असदुल्लाह अख्तर, तहसीन अख्तर, एजाज शेख बम ब्लास्ट के मास्टरमाइंड।


● 17 अप्रैल 2013- बैंगलोर में बम ब्लास्ट,14 लोग गंभीर रुप से घायल


● 7 जुलाई 2013- बोधगया मे ब्लास्ट, 5 लोग गंभीर रूप से घायल... म्यांमार में रोहंगिया आतंकवादियों के खिलाफ हुई कार्यवाही के विरोध में भारत के बिहार के बोध गया में उमर सिद्दीकी, अजहरुद्दीन कुरैशी, मुजीबुल्लाह अंसार, हैदर अली, इम्तियाज अंसारी ने बिहार को दहलाने की रची थी साजिश।


● 27 अक्टूबर 2013- को पटना में, नरेंद्र मोदी की रैली में इंडियन मुजाहिद्दीन द्वारा 8 बम ब्लास्ट, 6 मरे 85 घायल...लाखों की भीड़ में भगदड़ मचा कर हजारों को मारने की साजिश... मोदी और मैनेजरों की समझदारी से भगदड़ नही मची... मोहम्मद तहसीन अख्तर मास्टरमाइंड... चिकमंगलूर मदरसे से प्रेरित होकर किया ब्लास्ट... मुज़्बुल्ला, हैदर अली, नुमान, तारिक अंसारी ब्लास्ट के बाद फरार।


● 1 मई 2014- चेन्नई में गुवाहाटी बैंगलोर एक्सप्रेस में बम बलास्ट, 2 मरे 14 गंभीर रूप से घायल।


इन आंकड़ों में 10 वर्ष में हुए वामपंथी माओवादियों द्वारा किये गए हमले और जम्मू कश्मीर में किये गए हमले शामिल नहीं है, क्योंकि वो अलग विषय है।


यहां एक बात और याद दिलाना जरूरी है कि जब बाटला हाउस एनकाउंटर हुआ था और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी उस में मारे गए तो तत्कालीन कांग्रेस की मुखिया श्रीमती सोनिया गांधी उन आतंकवादियों की लाशों को देखकर फूट फूट कर रोई थी, जैसे कि कोई अपने घर का चला गया हो।


2014 में मोदी के आने के बाद से इस लेख के लिखे जाने तक मुझे याद नहीं कि दिल्ली की सड़कों, हैदराबाद, अहमदाबाद और अयोध्या के चौराहों पर, जयपुर और बनारस की गलियों में कोई ऐसा बम ब्लास्ट हुआ हो, जहां कोई मंदिर या मस्जिद जाने वाला, कोई दिवाली के लिए खरीदारी करने वाला, कोई रेस्टोरेंट में अपने परिवार के साथ बैठा व्यक्ति या मुम्बई की लोकल ट्रेन में यात्रा करता एक नागरिक बम ब्लास्ट में चीथड़े हो जाए और अगले दिन वह नहीं बल्कि उसकी लाश उसके घर पहुंचे।


जानते हैं क्यों ?? क्योंकि इस देश में आम चुनाव द्वारा इलैक्टेड प्रधानमन्त्री Narendra Modi का राज है... जबकि आज से पहले आतंकवादियों के लाश पर आँसू बहाने वालों द्वारा सलेक्टेड प्रधानमंत्री का राज था... राजनाथ सिंह को हमने बहुत बार निंदानाथ कहा... परन्तु गृहमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल सफल रहा कि देश के अंदर वो रक्तपात नही हुआ, जिसका गवाह ये देश 2005 से 2014 तक बना... मेरे लिए तो यही एक कारण काफी है कि  भाजपा को वोट दिया जाए... किसी भी मंदिर मस्जिद या विकास को देखने के लिए आपके और आपके परिवार का जीवित रहना बहुत जरूरी है... ।।

Departure of Pakistani diplomat

 Heads up: This is a 8-minute read. 


 Soldier & The Spies: How ISI Agents At Pakistani Mission in Delhi Were Trapped


 


Nitin A. Gokhale 


May 26, 2021


 




Date: May 31, 2020

Place: A non-descript restaurant in Karol Bagh, Delhi

Two Pakistan High Commission staffers working in the visa section of the mission approach a man sitting alone on a table in a corner of the mid-sized restaurant. This is their first meeting with the man they think is a soldier in the Indian Army although the duo had been speaking to the man on his mobile phone on and off for over three to four months.


The duo exchange pleasantries with the ‘soldier’ as they sit down. After a couple of minutes, they take out two brand new I-phones and Rs 15,000 in cash. As they hand over the goodies, half a dozen men sitting around on different tables in the restaurant surround the trio. The Pakistani High Commission staffers, in reality ISI recruiters working in the garb of visa assistants in the mission, realise India’s intelligence and law enforcement personnel have caught them red handed in trying to entice a serving Indian military jawan to part with sensitive information.


The duo is taken into custody. A third Pakistan national—the unsuspecting driver of a Pakistani High Commission’s vehicle with a diplomatic number plate in which the duo had reached Karol Bagh—waiting on the road is also caught. Aware that the diplomatic immunity the trio enjoys will allow them to walk free quickly, sleuths of military intelligence (MI), Intelligence Bureau (IB) and Delhi Police start interrogating them then and there.


The Pakistanis reveal three or four more contacts they had established across India among serving Indian military personnel. The duo—later identified as Abid Hussain and Tahir Khan (the driver’s name was Javed Hussain)—admit to being in touch with the soldier, whose identity is being kept secret, since February 2020 but both absolve the soldier of any wrongdoing or betrayal. “He hasn’t given us any papers or information. This is our first meeting,” the Pakistani duo tells the interrogators. On this count, they were truthful. The man they thought was a ‘soldier’ in the Indian Army was in fact a Military Intelligence officer posing as a jawan. For over three months, this unnamed officer kept playing along as the Pakistani duo tried to extract information from him thinking he was one young Indian jawan.


As the Pakistanis spilled the beans, shared other numbers they were in touch with and gave detailed information about their modus operandi, the intelligence sleuths knew they had hit the jackpot. The success had not come overnight though. The arrest was the result of luck, alertness on part of a young Indian soldier, painstaking and patient handling by a Military Intelligence Unit, the IB’s experience in such matters and pressure the Pakistani duo came under to deliver results during the initial months of the pandemic last year, all put together.


The story begins in December 2019. A young Indian Army jawan posted in a unit in Delhi is waiting to receive some important documents from his bank back home in another state. He sends them his Delhi address and is waiting for the letter to arrive. All postal correspondence for the military personnel incidentally is handled by the Army Postal Service (APS) which uses a unique numbering system to identify the unit to which letters have to be delivered. The young jawan, after being told by the bank that the letter has been dispatched to the official address given by him, waits for 10 days before beginning to worry. He knows that such domestic postal delivery normally takes less than four days.


Concerned over the delay, he contacts the bank again. The bank says it had dispatched the letter 10 days earlier. The jawan then decides to put up an online complaint on the National Consumer Complaints Forum detailing his concern and also leaving his personal mobile number for the APS personnel to contact him.


Unknown to the jawan or the APS authorities, the Pakistani duo in the New Delhi mission, trawling Indian websites to trap potential recruits, come across the complaint of the jawan. One of them promptly calls up the jawan from an Indian mobile number, expresses sympathy and assures quick redressal. The jawan thinks nothing of the first conversation. As luck would have it, a week after the first contact that the Pakistanis made with him, the jawan receives his letter. He writes back to the Consumer Forum online that he has received the letter. The APS headquarters closes the complaint.


The Pakistani duo, watching the correspondence online (it is an open forum), smells an opportunity. A couple of days after the complaint is closed, one of them contacts the jawan and asks him if he has received the letter. The jawan thanks the caller after he describes how difficult it was for the caller (the Pakistani operative) to locate the letter and how he went out of his way to help. All this while, the jawan thinks he is talking to a colleague in the APS and doesn’t think much about the conversation after the call ends.


The real action begins thereafter.


The Pakistani operative dials the jawan after four to five days and tries to strike up a conversation. As a gesture of courtesy, the jawan responds to the call and exchanges pleasantries. The call ends. Four days later, the Pakistani calls again and casually starts asking for details about his career, background, marital status etc.


The young but alert and intelligent jawan cuts off the call by saying an officer is standing nearby and that he would talk later. He goes straight to his Commanding Officer (CO), suspecting the motive of the caller. After questioning the jawan on the circumstances under which the contact was established, the CO calls in the MI’s Counter-Int unit. MI takes over the case, pats the jawan for his quick thinking and takes his mobile. Now a young MI officer starts impersonating the jawan. At this point, MI also brings in Delhi police and IB counterparts on the case. The mobile number from which the Pakistani operative kept calling is traced to Chanakyapuri and then is triangulated specifically to the Pakistani embassy compound located in the diplomatic area. The suspicion about the caller being a Pakistani operative is now confirmed.


As the next call comes from the Pakistani operative’s number, the officer—now posing as the jawan—messages the Pakistani that he can’t talk since he is on duty. And this goes on for over a month. The officer, when asked any specific question by the Pakistani, gives vague, non-classified information to keep the conversation going. In March 2020, the Pakistani asks for the specific location of the unit, its composition, the name of the Commanding Officer (CO) and so on. That’s when the officer says he cannot give this information on the phone and asks for a meeting. The Pakistani says, come and meet me in Sadar Bazar.


That’s when the first miscommunication happens. The officer, thinking about Sadar Bazar in Delhi Cantonment, goes there. The Pakistani, however, had the Sadar Bazar near old Delhi in mind. They fail to meet. Then the nationwide lockdown is declared in India and the trail goes cold for a while.


During the month-plus period of the lockdown, the Pakistani operative calls once or twice, sounding downcast and desperate for information. The officer deftly keeps the conversation going, reveals little information of any value but manages to keep the Pakistani interested. As soon as the lockdown lifts on May 3, 2020, the officer gets a call. This time, he says he will fix the meeting venue. However, the officer plays hard to get and says a lot of work has come up and that the meeting can happen only two weeks later. Reluctantly, the Pakistani agrees.


In between, he calls twice and pushes for an early meeting. The officer shows a little more interest with a remark: ‘you keep asking for information. Koi achha smart phone ya laptop aur kuchh paise wagaira to de do’ (at least give me a smartphone or a laptop and some money in return for all the information you keep asking for). The trap is well and truly laid.


Another phone call and the date is set. The officer gives the place and time. A restaurant in Karol Bagh, May 31, 6 pm. IB, Delhi Police and MI all organisations pool resources. Lady officers, even children, are roped in. The team takes over the Karol Bagh restaurant completely. Some personnel don the uniform of waiters. Another mans the cash counter. One more person assumes guard duty outside the restaurant. Tables are occupied randomly. Some have couples sitting at them. Others have children as well. One is occupied by the officer.


At the appointed time, the Pakistani duo (the operative and his colleague) walks into the restaurant, is trapped, interrogated and expelled in June 2020 (since they had diplomatic immunity and couldn’t be arrested). Thanks to excellent synergy between different agencies, two ISI operatives were caught and rendered persona non grata.


Post Script: As expected, Pakistanis, in a retaliatory move, asked two Indians working in the Indian High Commission in Islamabad to leave that country. In a related move, in keeping with diplomatic practice, India told the Pakistani mission to match the number of Pakistani nationals working in its New Delhi mission with that of the Indian personnel in the mission in Islamabad. Since India had 55 personnel in Islamabad in June 2020, Pakistan had to reduce its mission staff from 90 plus (in June 2020) to 55, making it one of the largest departure of Pakistani diplomatic personnel from India at one go.