Tuesday 29 December 2020

हिन्दुओ का अस्तित्व

इतिहास में तीन बार हिन्दुओ का अस्तित्व समाप्त होने ही वाला था। वो समस्याएं आज के परिदृश्य से ज्यादा भयानक थी क्योकि उस समय हिन्दुओ को जोड़ने के लिये कोई सोशल मीडिया नही था।

पहली चुनौती थी बौद्ध धम्म की, बौद्ध धम्म भले ही कोई अलग धर्म नही था मगर उसने भारतवासियो में अहिंसा का जो बीज बोया उसने भारत को लंबे समय तक कष्ट दिया। तब पुष्यमित्र शुंग हुए, जिन्होंने मगध की सत्ता पर कब्जा किया और पुनः वैदिक क्रांति का संचार किया।

भारतियों ने फिर से शस्त्र उठाकर लड़ना शुरू किया और सदियों तक भारत की रक्षा की, पर जिन इलाकों में बौद्ध धम्म प्रबल रहा वो इलाके अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रूप में अब इस्लामिक है।

दूसरा सबसे भयानक दौर था जब 1576 में हल्दीघाटी में अकबर की विजय हुई, महाराणा प्रताप के बाद अब कोई हिन्दू राजा शेष नही था जो उसे चुनौती देता पर अकबर 1581 तक काबुल के अभियानों में उलझा रहा और धीरे धीरे इस्लाम से उसका मोह भंग होता गया। कहने को अकबर का काल लगभग 50 वर्ष का था मगर वह इस्लामिक क्रांति के लिये कुछ खास नही था।

सबसे भयानक काल था औरंगजेब का, औरंगजेब ने भी 50 साल राज किया और शुरू के 25 वर्ष उसने सिर्फ रक्तपात किया। मार मार मुसलमान की नीति के बदौलत उसने अफगानिस्तान, पंजाब और कश्मीर में हिन्दुओ के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। गुरु तेग बहादुर जी और महाराज गोकुल सिंह जाट को इस्लाम के नाम पर कत्ल कर दिया।

1681 में उसे छत्रपति संभाजी महाराज ने चुनौती दी। यहाँ औरंगजेब ने गलती की उसने मराठो को खत्म करने की प्रतिज्ञा ली और संभाजी से लड़ने महाराष्ट्र आ गया, अकबर ने अंतिम 25 वर्ष दीन ए इलाही धर्म अपनाया था वही औरंगजेब ने अंतिम 27 वर्ष तक मराठो से युद्ध किया। परिणाम ये हुआ कि मराठे विजयी हुए और औरंगजेब मर गया।

पांडवों की जिस दिल्ली को विदेशी ताकतों ने नोच नोच कर खाया उसी दिल्ली को 1737 में पेशवा बाजीराव ने आजाद किया और 20 साल बाद उनके पुत्र पेशवा बालाजीराव ने उसी दिल्ली में हिन्दू स्वराज्य स्थापित किया।

इन तीन घटनाओं का तात्पर्य यह है कि भारत कभी इस्लामिक देश नही बनेगा ना ही हिन्दू प्रभाव से शून्य होगा। जो लोग बिहार के एक एमएलए से डरे हुए है वे ना डरे बल्कि ये तो मौका है वो खुद ही को नंगा कर रहे है आपको तो बस उनकी तस्वीरें वायरल करना है। मुसलमानो को हिंदुस्तान शब्द से नफरत है ये बात कोई हिंदूवादी ना जानता हो मैं तो ऐसा नही मानता।

तो इसमें घबराने की बात क्या है? हो सकता है इस देश पर कभी उनका प्रभाव ज्यादा हो जाये हो सकता है इस देश मे शरिया भी आ जाये मगर अपने पूर्वजों पर भरोसा रखिये हम फिर से उठेंगे। 1657 में जब औरंगजेब बादशाह बना था तब किसने सोचा था कि 100 साल बाद 1757 में मुगल ही खत्म हो जाएंगे इसी तरह 2020 में किसने सोचा है कि 2120 में क्या होगा???

जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी सेना बनाई थी तब उसमें सिर्फ 50 मराठा सैनिक थे, जब गोकुल सिंह जाट खड़े हुए थे उनके साथ मात्र 40 जाट थे, जब गुरु हरगोविंद सिंह जी ने आहवाहन किया था तब उनके साथ मात्र 25 सिख थे। हेडगेवार जी का संघ 5 स्वयंसेवको से शुरू हुआ था।

मगर आज देखिये इन सभी के नाम पर आर्मी रेजीमेंटस और विशाल संगठन है। बात ये नही है कि आपका अंतिम लक्ष्य क्या है बात ये है कि आप लोगो को प्रेरित करते है या हतोत्साहित, जब दिल्ली पर मराठाओ का शासन आया तब तक शिवाजी महाराज के स्वर्गवास को 70 वर्ष हो चुके थे पर जो शुरुआत उन्होंने की वो हमें सीखना चाहिए।

एक मुस्लिम नेता बयान देता है और आप डर जाते है और बहकी बहकी सी बातें करते है तो बेहतर है आप पोस्ट ना लिखे क्योकि आप निर्माण नही कर रहे है सिर्फ जड़े खोखली कर रहे है। इसलिये किसी मुस्लिम नेता से डरे नही बल्कि उनकी सच्चाई उजागर करे और बार बार भारत इस्लामिक राष्ट्र बन जायेगा बोलकर अपने ही भाइयों का उत्साह कम ना करे।

गीता का वह संदेश सदैव याद रहे "हम थे भी, हम है भी और हम होंगे भी"

वे सभी हमारी एकता से घबराये हुए हैं!

पिछले 4 सालों में 7 से 19 राज्यों में पैर पसारते BJP से सहमे हुए हैं!

ओड़िशा-बंगाल से तमिलनाडु तक की राजनीति में मोदी की धमक से डरे हैं!

 उन्हें मालूम है कि अगले दो सालों में अगर मोदी जी के विजयरथ को नहीं रोका गया तो

2025 तक RSS - विहिंप - HUV जैसी हिन्दुवादी संगठन के झंडे के नीचे, हिन्दू इतने शक्तिशाली हो जायेंगे कि उन्हें दबाना नामुमकिन हो जायेगा!

उनके लिए तो अगला वर्ष अस्तित्व की लढाई के हैं!

हिन्दू वोट बैंक को क्षत - विक्षत करने का हर हथकंडा अपनाया गया! 

बरसों की जातिवादी - तुष्टिकरण की राजनीती को यूँ बर्बाद होते देखना उनके लिए असहनीय है!

शुरुआत JNU - मूलनिवासी - बेमुला - अख़लाक़ से की गयी, कभी गुजरात के दलितों - पटेलों को भड़काया, 

तो कभी हरियाणा के जाटों को 

और कभी महाराष्ट्र के मराठो और दलित को! 

विरोधी खुलकर मैदान में हैं!

वे चाहते हैं कि आप लड़ें, सवर्ण-दलित लड़े, 

जाट -  सैनी -

 मराठा - पटेल - 

यादव - राजपूत - 

ब्राह्मण - जाटव -

 बुनकर - कुम्भार 

सब आपस में कट मरें!

उन्हें बस आपके टूटने का इंतज़ार है!

भीम आर्मी का गठन और बीच सड़क पर गाय काटकर खाना या फिर बाबा साहेब आम्बेडकर की तस्वीर के आगे प्रभु हनुमान जी का अपमान, ये सभी उसी साजिश का हिस्सा है!

वे पाकिस्तान से मोदी जी को हटाने की मिन्नत कर चुके हैं!

सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश रोज की जाती है! 

उन्होंने आतंकी - नक्सली - हुर्रियत - पत्थरबाज तक का भी समर्थन करके देख लिया!

EVM और इलेक्शन कमीशन, CBI जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर ऊँगली उठा चुके!

तैयार रहिये अगले साल  इनसे भी बिकट परिस्थितियाँ खड़ी की जाएँगी! आपको उकसाने - भडकाने का हर संभव प्रयास किया जायेगा!

नरेंद्र मोदी जी की समझ बूझ और सोशल मीडिया की जागरूकता से अब तक उनके सारे पासे उलटे पड़ रहे हैं!

हर वार खाली जा रहा है! प्रभु की कृपा रही तो मोदीजी आगे भी विरोधियों को जोरदार पटखनी देंगे!

राज्यसभा में बहुमत भी हो गया. 

सदियों के बाद आई है यह समग्र हिन्दू - एकता इसे यूँ न खोने दें!

हम सबको व्यक्तिगत दुश्मनी और घमंड की लड़ाई को छोड़कर इस एकजुटता को बनाए रखने का समय है।

आँखें पूरी खोलिए भाईयो....

याद रखिये, निशाने पर न ब्राह्मण है,

 न जैन है 

न मराठा है, 

न वैश्य है, 

न राजपूत है,

 न गुर्जर है,

 न दलित है, 

न पिछड़े है ।

स्थान और अवसर के अनुसार जातियां बदलेगी, क्योंकि...

*निशाने पर हिन्दू है, 

निशाने पर हिन्दू धर्म है,

निशाने पर भारत है, 

निशाने पर भारतीयता है ।* 

इनको तोड़ना ही उनका मकसद है।

वो JNU वाला नारा याद है न ?

भारत तेरे टुकड़े होंगे 

इंशा अल्लाह...इंशा अल्लाह

देशविरोधी और हिन्दू विरोधी शक्तियाँ अपना काम शुरू कर चुकी है।

अब बारी हमारी ओर आपकी हैं । 

और हमे और आपको केवल और केवल इतना ही करना है कि जातिवाद, ऊंच- नीच, अगड़े -पिछड़े, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि सभी तरह के भेदभाव भुलाकर संगठित एक रहना है, संगठित रहना है । 

भूल जाइए आप ब्राह्मण हैं, बनिया हैं या ठाकुर हैं, SC/ST या बाल्मीकि हैं। 

हम सब केवल हिन्दू हैं ।

 दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है हमारे और आपके पास 

Saturday 26 December 2020

जर्जर ब्राह्मण

गुलामी के दिन थे। प्रयाग में कुम्भ मेला चल रहा था। एक अंग्रेज़ अपने द्विभाषिये के साथ वहाँ आया। गंगा के किनारे एकत्रित अपार जन समूह को देख अंग्रेज़ चकरा गया। 

उसने द्विभाषिये से पूछा, "इतने लोग यहाँ क्यों इकट्टा हुए हैं?"

द्विभाषिया बोला, "गंगा स्नान के लिये आये हैं सर।" 

अंग्रेज़ बोला, "गंगा तो यहां रोज ही बहती है फिर आज ही इतनी भीड़ क्यों इकट्ठा है?" 

द्विभाषीया: - "सर आज इनका कोई मुख्य स्नान पर्व होगा।" 

अंग्रेज़ - " पता करो कौन सा पर्व है ?" 

द्विभाषिये ने एक आदमी से पूछा तो पता चला कि आज बसंत पंचमी है।

अंग्रेज़- "इतने सारे लोगों को एक साथ कैसे मालूम हुआ कि आज ही बसंत पंचमी है?"

द्विभाषिये ने जब लोगों से पुनः इस बारे में पूछा तो एक ने जेब से एक जंत्री निकाल कर दिया और बोला इसमें हमारे सभी तिथि त्योहारो की जानकारी है। 

अंग्रेज़ अपनी आगे की यात्रा स्थगित कर जंत्री लिखने वाले के घर पहुँचा। एक दड़बानुमा अंधेरा कमरा, कंधे पर लाल फटा हुआ गमछा, खुली पीठ, मैली कुचैली धोती पहने एक व्यक्ति दीपक की मद्धिम रोशनी में कुछ लिख रहा था। पूछने पर पता चला कि वो एक गरीब ब्राह्मण था जो जंत्री और पंचांग लिखकर परिवार का पेट भरता था। 

अंग्रेज़ ने अपने वायसराय को अगले ही क्षण एक पत्र लिखा :- "इंडिया पर सदा के लिए शासन करना है तो सर्वप्रथम ब्राह्मणों का समूल विनाश करना होगा सर क्योंकि जब एक दरिद्र और भूख से जर्जर ब्राह्मण इतनी क्षमता रखता है कि दो चार लाख लोगों को कभी भी इकट्टा कर सकता है तो सक्षम ब्राह्मण क्या कर सकते हैं, गहराई से विचार कीजिये सर।" 

इसी युक्ति पर आज भी सत्ता की चाह रखने वाले चल रहे हैं, "अबाध शासन करना है तो बुद्धिजीवियों और राष्ट्रभक्तों का समूल उन्मूलन करना ही होगा."

कानपुर की "कपड़ा मिल"

 एक जमाना था .. 

कानपुर की "कपड़ा मिल" विश्व प्रसिद्ध थीं ।

कानपुर को "ईस्ट का मैन्चेस्टर" बोला जाता था।

लाल इमली जैसी फ़ैक्टरी के कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे. वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए।

मिल का साइरन बजते ही हजारों मज़दूर साइकिल पर सवार टिफ़िन लेकर फ़ैक्टरी की ड्रेस में मिल जाते थे।  बच्चे स्कूल जाते थे। पत्नियाँ घरेलू कार्य करतीं । और इन लाखों मज़दूरों के साथ ही लाखों सेल्समैन, मैनेजर, क्लर्क सबकी रोज़ी रोटी चल रही थी।

__________

फ़िर "कम्युनिस्टों " की निगाहें कानपुर पर पड़ीं.. तभी से....बेड़ा गर्क हो गया।

"आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले मालिक।" 

ढेरों हिंसक घटनाएँ हुईं, 

मिल मालिक तक को मारा पीटा भी गया।

नारा दिया गया 

"काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो" 

अलाली किसे नहीं अच्छी लगती है. ढेरों मिडल क्लास भी कॉम्युनिस्ट समर्थक हो गया। "मज़दूरों को आराम मिलना चाहिए, ये उद्योग खून चूसते हैं।"

कानपुर में "कम्युनिस्ट सांसद" बनी सुभाषिनी अली । बस यही टारगेट था, कम्युनिस्ट को अपना सांसद बनाने के लिए यह सब पॉलिटिक्स कर ली थी ।

________

अंततः वह दिन आ ही गया जब कानपुर के मिल मज़दूरों को मेहनत करने से छुट्टी मिल गई। मिलों पर ताला डाल दिया गया।

मिल मालिक आज पहले से शानदार गाड़ियों में घूमते हैं (उन्होंने अहमदाबाद में कारख़ाने खोल दिए।) कानपुर की मिल बंद होकर भी ज़मीन के रूप में उन्हें (मिल मालिकों को) अरबों देगी। उनको  फर्क नहीं पड़ा ..( क्योंकि मिल मालिकों कभी कम्युनिस्ट के झांसे में नही आए !)

कानपुर के वो 8 घंटे यूनिफॉर्म में काम करने वाला मज़दूर 12 घंटे रिक्शा चलाने पर विवश हुआ .. !! (जब खुद को समझ नही थी तो कम्युनिस्ट के झांसे में क्यों आ जाते हो ??)

स्कूल जाने वाले बच्चे कबाड़ बीनने लगे... 

और वो मध्यम वर्ग जिसकी आँखों में मज़दूर को काम करता देख खून उतरता था, अधिसंख्य को जीवन में दुबारा कोई नौकरी ना मिली। एक बड़ी जनसंख्या ने अपना जीवन "बेरोज़गार" रहते हुए "डिप्रेशन" में काटा।

__________

"कॉम्युनिस्ट अफ़ीम" बहुत "घातक" होती है, उन्हें ही सबसे पहले मारती है, जो इसके चक्कर में पड़ते हैं..! 

कॉम्युनिज़म का बेसिक प्रिन्सिपल यह है : 

"दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना, फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना"


 1945 में बेगमाबाद का नाम बदलकर मोदीनगर किया गया था, पूरे देश से लोग अपनी रोटी की तलाश में मोदीनगर की मोदी मिल्स में नौकरी करने आते थे।


उद्योगति श्री गुर्जर मल मोदी ने 


मोदी पोन, मोदी टायर, मोदी कपड़ा मिल, मोदी वनस्पति, मोदी चीनी मिल... बाद में मोदी हॉस्पिटल, मोदी धर्मशाला, मोदी कॉलेज की भी स्थापना की।


 तरक़्क़ी और ख़ुशहाली की धारा बहने लगी।


लेकिन...


एक दिन लाल झंडे वाले वहाँ आये, ठीक वैसे ही जैसे आजकल आंदोलन में किसानों के साथ नज़र आते हैं। उन्होंने मजदूरों को समझाया कि कैसे मिल मालिक, तुम मजदूरों का शोषण करता है।

मोदी भले ही उन्हें मंदिर, कॉलेज, अस्पताल, घर, विवाह के लिए भवन, यहां तक की घर की पुताई के पैसे तक दे रहे थे लेकिन समझाया यह गया कि वह उनका शोषण कर रहा है।


और

फिर शुरू हुई क्रांति.... बताया जाता है कि एक बार जब मोदी साहब की पत्नी मंदिर गईं, तो मजदूर नेताओं ने कपड़े उतारकर उनके सामने नग्न-प्रदर्शन किया।


उस दिन के बाद मोदी नगर फिर कभी वैसा नहीं रहा। चीनी मिल को छोड़कर एक-एक करके सारी मोदी इंडस्ट्री वहाँ से उठा ली गई।


 चीनी मिल आज भी बची हुई है क्योंकि तब किसानों ने लाल झंडे वालों को कभी अपने बीच घुसने नहीं दिया और ना ही क्रांति करने ही नहीं दी।


लेकिन आज यह #लालझंडाकिसानोंमेंअपनीपैंठबनाचुकाहै।


जिस मोदीनगर में देश के कोने-कोने से लोग नौकरी करने जाते थे, आज उसी मोदीनगर के लोग बस-रेल में भरकर साधारण सी नौकरियां करने दिल्ली-नोयडा-गाजियाबाद जाते हैं।


पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में लगने वाली टाटा नैनो की फैक्ट्री जिसमें पन्द्रह हज़ार लोगों को नौकरी मिलनी थी, उसे भी ममता बनर्जी के संगठित भीड़तंत्र ने फर्जी आंदोलन द्वारा बंगाल से गुजरात शिफ्ट होने के लिये  मजबूर कर दिया। बंगाल के ऐसे सभी आंदोलनों का नतीजा- बीमार बंगाल...


लाल झंडा, एक ऐसी विचारधारा है, जिसमें विश्वविद्यालय का कुलपति, मिल-मालिक, कॉरपोरेट और देश का प्रधानमंत्री, सभी दुश्मन दिखाई देते हैं


 इसीलिये #मोदीतूमर_जा के गीत गाये जाते हैं।


Friday 25 December 2020

संख्या 2520

गणित में किसी भी संख्या को सम / विषम अथवा वो अपने अंको के योग से या दो से भाज्य है या नही यह कह कर जाना जाता है ।                                                

लेकिन इस विचित्र संख्या को देखियेगा  ..!

संख्या 2520》 अन्य संख्याओं की तरह वास्तव में एक सामान्य संख्या नही है, यह वो संख्या है जिसने विश्व के गणितज्ञों को अभी भी आश्चर्य में किया हुआ है  .. !!

यह विचित्र संख्या 1 से 10 तक प्रत्येक अंक से भाज्य है , चाहे वो अंक सम हो या विषम हो !!

ऐसी कोई संख्या और होना वास्तव में मुश्किल लगता है !!

  ऐसी संख्या जिसे इकाई तक के किसी भी अंक से भाग देने के उपरांत शेष शून्य रहे, बहुत ही असम्भव/ दुर्लभ है- ऐसा प्रतीत होता है .. !!


#अब निम्न सत्य को देखें :


2520 ÷ 1 = 2520

2520 ÷ 2 = 1260

2520 ÷ 3 = 840

2520 ÷ 4 = 630

2520 ÷ 5 = 504

2520 ÷ 6 = 420

2520 ÷ 7 = 360

2520 ÷ 8 = 315

2520 ÷ 9 = 280

2520 ÷ 10 = 252


ऐसी संख्या को जानने व निकालने की विधि क्या है?  महान गणितज्ञ अभी भी आश्चर्यचकित है  : 2520 वास्तव में एक गुणनफल है 《7 x 30 x 12》का जो उनके अनुसार इन तीन रैंडम (random) संख्याओं के गुणा करने से बनी है । लेकिन इसका आधार/ तर्क (logic) क्या है? यह उनकी समझ में अभी भी नही आ रहा है !!

🤷‍♂️ उन्हे और भी आश्चर्य हुआ जब यह संज्ञान में लाया जा रहा है कि संख्या 2520 हिन्दू संवत्सर के अनुसार एकमात्र सही संख्या व वास्तव में उचित बैठ रही है: यह गुणनफल से प्राप्त है ::

सप्ताह के दिन (7) x माह के दिन (30) x वर्ष के माह (12)....... भारतीय काल गणना श्रेष्ठ है।

Thursday 24 December 2020

महिमामय और गौरवशाली भारत

क्रिश्चियन लड़की ने कहा कि यीशु हमारे लिए सूली पर लटके और मर गए। 

मैने कहा पगली भगवान शिव ने हमारे लिए जहर पिया और जिंदा है।

स्वयं पढ़ें और बच्चों को भी  अनिवार्यतः पढ़ाएं

एक ओर जहां ईसामसीह को सिर्फ चार कीलें ठोकी गई थीं, वहीं भीष्म पितामह को धनुर्धर अर्जुन ने सैकड़ों बाणों से छलनी कर दिया था।

तीसरे दिन कीलें निकाले जाने पर ईसा होश में आ गए थे, वहीं पितामह भीष्म 49 दिनों तक लगातार बाणों की शैय्या पर पूरे होश में रहे और जीवन, अध्यात्म के अमूल्य प्रवचन, ज्ञान भी दिया तथा अपनी इच्छा से अपने शरीर का त्याग किया था।

सोचें कि पितामह भीष्म की तरह अनगिनत त्यागी महापुरुष हमारे भारत वर्ष में हुए हैं, तथापि सैकड़ों बाणों से छलनी हुए पितामह भीष्म को जब हमने भगवान् नहीं माना, तो चार कीलों से ठोंके गए ईसा को गॉड क्यों मानें???

ईसा का भारत से क्या संबंध है???

25 दिसंबर हम क्यों मनाएं???

क्यों बनाएं हम अपने बच्चों को सेंटा क्लाज???

क्यों लगाएं अपने घर पर प्लास्टिक की क्रिसमस ट्री???

कदापि नहीं, इस पाखंड में नहीं फंसना है, न किसी को फंसने देना है। हमारे पास हमारे पूर्वजों की विरासत में मिली वैज्ञानिक सनातन संस्कृति है, जो हमारे जीवन को महिमामय और गौरवशाली बनाती है।


Wednesday 23 December 2020

स्वामी श्रद्धानन्द

 23 दिसम्बर/बलिदान-दिवस

परावर्तन के अग्रदूत स्वामी श्रद्धानन्द 

भारत में आज जो मुसलमान हैं, उन सबके पूर्वज हिन्दू ही थे। उन्हें अपने पूर्वजों के पवित्र धर्म में वापस लाने का सर्वाधिक सफल प्रयास स्वामी श्रद्धानन्द ने किया। संन्यास से पूर्व उनका नाम मुंशीराम था। उनका जन्म 1856 में ग्राम तलबन (जिला जालन्धर, पंजाब) में एक पुलिस अधिकारी नानकचन्द जी के घर में हुआ था। 12 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह हो गया। 

बरेली में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द के प्रवचनों से वे अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने अस्पृश्यता तथा जातीय भेदभाव के विरुद्ध प्रबल संघर्ष करते हुए अपनी पुत्री अमृतकला तथा पुत्रों पंडित हरिश्चन्द्र विद्यालंकार व पंडित इन्द्र विद्यावाचस्पति का अंतरजातीय विवाह किया।

1917 में संन्यास लेने पर उनका नाम स्वामी श्रद्धानन्द हो गया। स्वामी जी और गांधी जी एक दूसरे से बहुत प्रभावित थे। गांधी जी को सबसे पहले ‘महात्मा’ सम्बोधन स्वामी जी ने ही दिया था, जो उनके नाम के साथ जुड़ गया। 30 मार्च, 1919 को चाँदनी चौक, दिल्ली में रौलट एक्ट के विरुद्ध हुए सत्याग्रह का नेतृत्व स्वामी श्रद्धानंद जी ने ही किया। 

वहां सैनिकों ने सत्याग्रहियों पर लाठियाँ बरसायीं। इस पर स्वामी जी उनसे भिड़ गये। सैनिक अधिकारी ने उनका सीना  छलनी कर देने की धमकी दी। इस पर स्वामी जी ने अपना सीना खोल दिया। सेना डर कर पीछे हट गयी।

स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें एक वर्ष चार माह की सजा दी गयी। जेल से आकर वे अछूतोद्धार तथा मुसलमानों के शुद्धिकरण में लग गये। 1924 में शुद्धि सभा की स्थापना कर उन्होंने 30,000 मुस्लिम (मलकाना राजपूतों) को फिर से हिन्दू बनाया। 

इससे कठमुल्ले नाराज हो गये; पर स्वामी जी निर्भीकता से परावर्तन के काम में लगे रहे। 1924 में स्वामी जी ‘अखिल भारत हिन्दू महासभा’ के भी राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। मुसलमानों में देशप्रेम जगाने के लिए खिलाफत आन्दोलन के समय वे चार अपै्रल, 1919 को दिल्ली की जामा मस्जिद में भाषण देने गये। 

स्वामी जी ने हरिद्वार के पास 21 मार्च, 1902 को होली के शुभ अवसर पर ‘गुरुकुल कांगड़ी’ की स्थापना की। इसके लिए नजीबाबाद (जिला बिजनौर, उ.प्र.) के चौधरी अमनसिंह ने 120 बीघे भूमि और 11,000 रु. दिये। इसकी व्यवस्था के लिए स्वामी श्रद्धानंद जी ने अपना घर बेच दिया और सर्वप्रथम अपने दोनों लड़कों को प्रवेश दिलवाया। उन्होंने जालन्धर और देहरादून में कन्या पाठशाला की भी स्थापना की।

‘जलियाँवाला बाग नरसंहार’ के बाद जब पंजाब में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन करने का निर्णय हुआ, तो भयवश कोई कांग्रेसी उसका स्वागताध्यक्ष बनने को तैयार नहीं था। ऐसे में स्वामी श्रद्धानन्द जी आगे आये और 1920 में अमृतसर में अधिवेशन हो सका। इसमें स्वामी जी ने हिन्दी में भाषण दिया। इससे पूर्व अधिवेशनों में अंग्रेजी में भाषण होते थे। इसी प्रकार भाई परमानन्द और लाला लाजपतराय जी निर्वासन के बाद जब स्वदेश लौटे, तो स्वामी जी ने लाहौर में उनका सम्मान जुलूस निकलवाया।

स्वामी जी द्वारा प्रारम्भ परावर्तन का कार्य क्रमशः पूरे देश में जोर पकड़ रहा था। भारत के मुस्लिमों में अपने देश, धर्म और पूर्वजों का अभिमान जाग्रत होते देख कुछ मुस्लिम नेताओं ने उनके विरुद्ध फतवा जारी कर दिया। 23 दिसम्बर, 1926 को अब्दुल रशीद नामक एक कट्टरपन्थी युवक ने उनके सीने में तीन गोलियाँ उतार दीं। स्वामी जी के मुख से ‘ओम्’ की ध्वनि निकली और उन्होंने प्राण त्याग दिये।

पीवी नरसिम्हा राव

पीवी नरसिम्हा राव की पुण्यतिथि विशेष (एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसकी "पार्थिव देह" का अपमान हुआ)

23 दिसम्बर 2004 को करीब 11 बजे पीवी नरसिम्हा राव ने एम्स में अंतिम सांस ली। करीब 2.30 बजे उनके पार्थिव शरीर को 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित उनके आवास लाया गया। जहाँ चर्चित आधात्मिक गुरु चंद्रास्वामी, राव के 8 पुत्र-पुत्रियां, भतीजे व परिवार के अन्य सदस्य घर पर मौजूद थे। राव का शव एम्स से घर पहुँचने के उपरांत असली राजनीति शुरू हुई। 

तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे पुत्र प्रभाकरण को सुझाव दिया, राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाए। उन्होंने वजह दी राव प्रधानमंत्री बनने से पहले आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे। किन्तु परिवार दिल्ली में ही अंतिम संस्कार के लिए अड़ा रहा। कुछ देर बाद कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के करीबी नेता रहे गुलाम नबी आजाद 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित राव के आवास पहुंचे। उन्होंने भी राव के परिवार से हैदराबाद में अंतिम संस्कार करने की अपील की। वे परिवार को समझा ही रहे थे, कि इसी बीच राव के पुत्र प्रभाकरण का फ़ोन घनघना उठा। दूसरी और से आवाज आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की थी। रेड्डी ने संवेदनाएं व्यक्त की औऱ कहा:- मैं दिल्ली पहुंच रहा हूँ। हम राव का शव हैदराबाद लायेंगे व पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार करेंगे।

करीब शाम 6.30 बजे सोनिया गांधी 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग में दाखिल हुई। उनके साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कद्दावर नेता प्रणव मुखर्जी भी थे। कुछ देर मौन के बाद मनमोहन ने राव परिवार से पूछा:- ये लोग कह रहे हैं, आप राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में करेंगे। आपने क्या निर्णय लिया। प्रभाकरण ने दो टूक जवाब दिया:- दिल्ली पिता की कर्मभूमि थी, अतः हम दिल्ली में ही अंतिम संस्कार करेंगे। आप कृपया अपने केबिनेट सहयोगियो को अंतिम संस्कार हेतु मनाइए।

नजदीक खड़ी सोनिया कुछ बुदबुदाई। तभी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रेड्डी भी वहाँ पहुँच चुके थे। उन्होंने राव परिवार को मनाना शुरू कर दिया। उन्होंने विश्वास दिलाया राव का अंतिम संस्कार पूरे सम्मान के साथ किया जाएगा तथा हैदराबाद में राव का भव्य पर मेमोरियल भी मनेगा। राव की बेटी एस वाणी का कहना था कि, वह रेड्डी ही थे जिन्होंने परिवार को मनाया। अन्ततः परिवार नरम पड़ा और हैदराबाद में अंतिम संस्कार हेतु तैयार हो गया। परिवार ने दिल्ली में भी राव मेमोरियल बनाने की इक्छा प्रकट की। जिस पर वहाँ मौजूद कांग्रेस नेताओं ने हामी भर दी।

किन्तु पिछले कुछ वर्षों से राव के साथ पार्टी का जैसा व्यवहार था, उसे लेकर परिवार की चिंता लाजिमी थी। वे रात 9.30 बजे शिवराज पाटिल के घर पहुंचे, दिल्ली में मेमोरियल की बात दोहराई। पाटिल ने मनमोहन सिंह तक पहुंचाई। मनमोहन ने हामी भर दी। अगले दिन 24 दिसम्बर को तिरंगे में लपेटा राव का पार्थिव शरीर एयरपोर्ट जाने हेतु तोप गाड़ी में रखा गया। एयरपोर्ट के रास्ते में वो पता भी पड़ता था, जो कभी राव के सियासत का केंद्रबिंदु हुआ करता था। 24 अकबर रोड, कांग्रेस का मुख्यालय। सोनिया के घर से सटे कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड के सामने तोप गाड़ी की रफ़्तार थोड़ी धीमी हुई। मुख्यालय का मुख्य गेट बन्द था। तमाम कांग्रेसी नेता गेट के पास खड़े थे, किन्तु सब के सब चुप्पी साधे थे। कुछ समय उपरांत सोनिया कुछ नेताओं संग राव को अंतिम विदाई हेतु बाहर आईं। वे फूल चढ़ाकर भीतर चली गईं।

चूंकि पार्टी परम्परानुसार निधन उपरांत किसी भी नेता का शव आम जनता के दर्शन हेतु पार्टी मुख्यालय में रखने का रिवाज था। अतः परिवार चाहता था कुछ समय के लिए राव का शव पार्टी मुख्यालय पर रखा जाए। किन्तु परिजनों ने कभी उम्मीद भी नहीं की होगी उनके साथ ऐसा भी हो सकता है। करीब आधा घण्टे तक "पूर्व प्रधानमंत्री के शव" को ले जा रही तोप गाड़ी, मुख्यालय के गेट पर खड़ी रही। लेकिन गेट नहीं खुला। निराश होकर परिवार एयरपोर्ट की तरफ रवाना हो गया।

विनय सीतापति अपनी किताब द हाफ लायन में लिखते हैं:-

राव के एक दोस्त ने कांग्रेस के नेताओं से गेट खोलने के लिए आग्रह भी किया था, लेकिन उन्होंने "गेट नहीं खुलता" कहकर मना कर दिया। बवाल बढ़ने पर मनमोहनसिंह को कहना पड़ा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। अन्ततः परिवार एयरपोर्ट से A-32 विमान में राव का शव लेकर हैदराबाद रवाना हो गया। वही उनका अंतिम संस्कार किया गया।

विनय सीतापति अपनी किताब में लिखते हैं:- 

राव के बेटे प्रभाकरण ने उनसे कहा था:- हमे महसूस हुआ कि सोनिया जी नहीं चाहती थीं, कि राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो और उनका मेमोरियल यहाँ बने। 

राव व सोनिया के मनमुटाव, कड़वाहट के किस्से आम थे। किंतु इसकी परिणीति इस हद तक जाएगी, शायद ही किसी ने सोचा होगा। भारतीय राजनीति में एक प्रधानमंत्री के शव के साथ स्वयं उनकी पार्टी द्वारा ऐसी दुर्दशा, घोर अपमान का मामला सम्भवतः एकमात्र होगा। पीवी नरसिम्हा राव को अपने कार्यों के लिए जितना सम्मान मिलना था, उन्हें कभी नहीं मिला। वे राजनीति का आसान शिकार हो गए।

आर्थिक सुधारों के जनक कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि 

Tuesday 22 December 2020

श्री गुरु गोबिंद सिंह

 गुरु परिवार के बलिदान की यह चर्चा-

21 दिसंबर - श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ दिया।

22 दिसंबर:-  गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में व गुरु साहिब की माता और दोनों छोटे साहिबजादे अपने रसोइए के घर पहुंचे । 

चमकौर की जंग शुरू और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित धर्म और देश  की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।

23 दिसंबर - गुरु साहिब की माता गुजरी जी और दोनों छोटे साहिबजादो को मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान ने गिरफ्तार कर सरहिंद के नवाब को सौप दिया ताकि वह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से अपना बदला ले सके । गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।

24 दिसंबर - तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।

25 और 26 दिसंबर - छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनने के लिए लालच दिया गया।

27 दिसंबर-  साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह  को तमाम जुल्म ओ जबर उपरांत जिंदा दीवार में चिन ने के बाद जिबह (गला रेत) कर शहीद कर किया गया जिसकी खबर सुनते ही माता गुजरीने अपने प्राण  त्याग दिए।

इस बलिदानी कथा को  अन्य लोगों को भी बतायें ताकि लोगों को धर्म  रक्षा के लिए पूरा परिवार वार देने वाले श्री गुरुगोबिंद सिंह जी के जीवन से प्रेरणा मिल सके ।


20 दिसंबर की रात -

वो भी 20 दिसंबर की ही रात थी,

20 Dec. 1704

गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने परिवार और 400 अन्य सिखों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया और निकल पड़े थे,

उस रात भयंकर सर्दी थी और बारिश हो रही थी।

सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया। 

बारिश के कारण नदी में उफान था । 

कई सिख शहीद हो गए । कुछ नदी में ही बह गए ।

इस अफरातफरी में परिवार बिछुड़ गया । 

माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए ।

दोनो बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे । 

उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया । 

अब उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे ।

शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया।

अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में *2nd Battle Of Chamkaur Sahib के नाम से जाना जाता है । 

उस युद्ध में दोनों बड़े साहिबजादे और 40 अन्य सिख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए ।

उधर दोनो छोटे साहिबजादे जो 20 कि रात को ही गुरु जी से बिछुड़ गए थे माता गुजरी के साथ सरहिंद के किले में कैद कर लिए गए थे।

सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि इस्लाम कबूल कर लो नही तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा।

दोनो साहिबज़ादों ने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया पर धर्म नही छोड़ा।

गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 Dec से 27 Dec के बीच अपने 4 बेटे देश -- धर्म की खातिर वार दिए।

माता गूजरी ने दोनो बच्चों के साथ ये ठंडी रातें सरहिन्द के किले में , ठिठुरते हुए गुजारी थीं।

बहुत सालों तक जब तक कि पंजाब के लोगों पे इस आधुनिकता का बुखार नही चढ़ा था ........

ये एक सप्ताह यानि कि 20 Dec से ले के 27 Dec तक

लोग शोक मनाते थे और जमीन पे सोते थे । 

😔वाहे गुरू😢

मैं मोदी को क्यों पसंद करता हूं

 BJP

Vs

Congress + Left + BSP + SP + TDP + RJD + Shiv Sena + TMC + DMK + AAP + JDU + NDTV + ABP NEWS + Scroll + The Wire + Award Wapsi Gang + JNU + Pakistan + China

मोदी जी को हिंदू और मुसलमान दोनों हटाना चाहते हैं, किंतु दोनों के बीच अंतर देखिये :

हिन्दू पेट्रोल का दाम देख रहा है और मुसलमान रोहिंग्या मुसलमान को !

हिन्दू जीएसटी से रूठे हैं और कांग्रेस को लाना चाहते हैं और मुसलमान भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाना चाहते हैं, इसलिए कांग्रेस को लाना चाहते हैं ! कारण जो भी हो उद्देश्य सबका एक ही है !

भारत में बहुत से लोग हैं, जो भ्रष्ट नेताओं की बातों में आकर नरेन्द्र मोदी का विरोध करते हैं ! अच्छा है, लोकतंत्र है विरोध करें या समर्थन ये तो आपका अपना हक है, पर मोदी का विरोध करके आप समर्थन किसका कर रहे हैं, ये बडा गंभीर सवाल है, इसलिए निर्णय भी गंभीरता पूर्वक ही होना चाहिये !

क्या मुलायम, लालू, मायावती, सोनिया, राहुल, केजरीवाल, ममता बनर्जी, वामपंथी ये सब नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं या इनका रिकॉर्ड बेहतर है ?

क्या नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्रीकाल की तुलना मे ममता बनर्जी, अखिलेश आदि का कार्यकाल बेहतर नजर आता है ? तुलना करनी है तो गुजरात के किसी छोटे शहर मे जाकर एक नजर मार लीजिये और फिर इन अन्य राज्यों की राजधानी का भ्रमण कीजिये !

राजनीति मे प्रवेश के समय लालू और मुलायम, दोनों के घर की स्थिति ऎसी थी कि इनके पास साइकिल और लालटेन खरीदने तक के पैसे नहीं थे, जाति के नाम पर चलने वाले ये नेता आज अरबपति हैं, रामगोपाल चार्टर्ड प्लेन में घूमता है, तो शिवपाल ऑडी मे, कहां से आया इतना अकूत धन, क्या ये लोग नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं ?

सोनिया जी के बेटा-बेटी और दामाद आज सभी अरबपति है, क्या ये नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं ?

क्या 35 साल बंगाल में राज करने वाले वामपंथी, नरेन्द्र मोदी से बेहतर हैं ?

पांच साल केजरीवाल ने विज्ञापन चलाकर दिल्ली के लोगों को चूना लगाया, WIFI, CCTV, 150 कॉलेज, 500 स्कूल, क्या ये कुकुरमुत्ता नरेंद्र मोदी से बेहतर है ?

जब मायावती राजनीती करने निकली थी और काशीराम की साथी थी, तब उसके घर में दिया जलाने का धन नहीं था, साईकल से प्रचार करती थी, आज उसका सैंडल भी प्लेन से आता है, उसके भाई के पास 497 कंपनियां हैं, क्या ये नरेंद्र मोदी से बेहतर है ?

मोदी का विरोध करने वालों, विरोध करो, पर समर्थन किसका करना है ये तो तय करो कोई बेहतर विकल्प हो तो बताना, थोड़ा देश का भी सोचो, कितना बर्बाद करवाना है, कितना लूटवाना है ? बाहर निकलो जातियो के बंधनों से इसे उबारकर ये लूटेरे हमे ही लूटते हैं !

● मुझे नहीं मालूम कि मैं मोदी को क्यों पसंद करता हूं, लेकिन मेरे पास कांग्रेस, सपा, बसपा, आप को नापसंद करने के बहुत कारण हैं !

● मुझे नहीं मालूम कि अच्छे दिन आयेंगे या नहीं, पर मोदी जी के अतिरिक्त और कोई राजनेता दूर दूर तक दिखाई नहीं देता जो भारत के अच्छे दिनों के लिए तन और मन से प्रयत्न करता हो !

● मुझे ये भी नहीं मालूम कि मोदी जी भारत को हिन्दू राष्ट्र बना पायेंगे या नहीं, लेकिन ये पूरा यकीन हैं कि वो पूरी संजीदगी और गंभीरता से भारत माता को पुनः विश्वगुरु का दर्जा दिलवाने हेतु प्रयासरत हैं !

● मुझे फर्क नहीं पड़ता कि मोदी जी के पास इतिहास की जानकारी है या नही, पर मुझे पक्का यकीन है कि उनके पास भविष्य की पूरी तैयारी है !

_मान लो कि यह पोस्ट बनाने वाला मोदी भक्त है और इसे शेयर करने वाला मै भी,


Translation (en ➜ hi) 

* मेरे प्यारे भारतियों.. My *

  * जय श्री राम *

  * मैं भारत का प्रधानमंत्री हूं - नरेंद्र मोदी। * *

    * छह साल हो गए जब आपने मुझे यह जिम्मेदारी दी। मैं इस अवसर पर कुछ बातें साझा करना चाहूंगा। जब मैं प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली तो सिंहासन काँटेदार था। *

   * अपने 10 साल के शासन में पिछली सरकार ने बहुत भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की। लगभग सभी सरकारी संस्थान बिखरे हुए थे। भारी विदेशी ऋण बने रहे। *

  * ईरान 2000 करोड़। *

  * संयुक्त अरब अमीरात 80,000 करोड़ *

  * 12,000 करोड़ भारतीय ईंधन कंपनियां *

  * इंडियन एयरलाइंस 5,000 करोड़ रु। *

  * भारतीय रेलवे 2000 करोड़ *

  * बीएसएनएल 1500 करोड़ *

     * सैनिकों के पास बुनियादी हथियार नहीं थे, और बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं थे। अगर युद्ध होता तो सेना 4 दिन भी नहीं बच पाती। बम कब और कहां फट जाएगा यह हमेशा एक अतिरिक्त समस्या है। *

 * तभी मैंने निर्णय लिया .. *

 * उस समय मेरी मुख्य जिम्मेदारी सभी प्रणालियों को ठीक से स्थापित करना था। *

    * सौभाग्य से, भारतीयों के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ईंधन की कीमतें कम हुई हैं। आप सभी कम कीमतों से लाभान्वित नहीं हुए। आपको लग सकता है कि सरकार ने कुछ गलत किया है। *

    * आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं, लेकिन आप ईंधन की कीमत के लिए मुझसे थोड़ा नाराज हैं। मुझे पता है लेकिन मैं आपकी मदद नहीं कर सका। क्योंकि मैं अपनी आने वाली पीढ़ियों को ध्यान में रखकर काम कर रहा हूं। 

 * पिछली सरकार की मूर्खता हमारे लिए अभिशाप थी। *

 * उन्होंने उधार लिया और कच्चा तेल खरीदा। हालांकि, उन्होंने लोगों की आक्रामकता से बचने के लिए कीमत नहीं बढ़ाई। *

    * तब उन्होंने 20,000 करोड़ रुपये का विदेशी ऋण लिया। इसके लिए हमें हर साल 5,000 करोड़ रुपये ब्याज के रूप में देने पड़ते थे। *

    * हमारा देश भारी कर्ज में डूबा हुआ था। और हमें कर्ज चुकाने के लिए कहा गया था। ताकि भारत को बिना किसी रुकावट के ईंधन मिल सके। *

   * ईंधन पर कर लगाने का क्या कारण है? हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि आज हमने ब्याज के साथ 50,000 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाया है। *

 * रेलवे घाटे में चल रही थी। हमने पिछली सरकारों द्वारा शुरू की गई सभी परियोजनाओं को पूरा किया जो सुचारू रूप से और तेजी से चल रही थीं। हमने अतीत में पहले की तुलना में तेज गति से रेल लाइनों का विद्युतीकरण पूरा किया है। *

 साथ ही साथ ..

 * 1500 गांवों का विद्युतीकरण किया गया। *

 * गरीबों को 2 करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन दिए गए हैं। *

 * हजारों किलोमीटर नई सड़कें बनीं। *

 * युवाओं को 150,000 करोड़ ऋण। *

 * आयुष्मान भारत नामक 50 करोड़ लोगों के लिए 150,000 करोड़ रुपये की योजना शुरू की। *

 * हमारे सैनिकों को सभी नवीनतम और अद्यतन संस्करण हथियार और बुलेट प्रूफ जैकेट प्रदान किए गए हैं। *

 * इन सभी कार्यों के लिए पैसा कहाँ से आया? वह पैसा आपको दिया जाता है। वह पैसा आप सभी पेट्रोल और डीजल खरीदते हैं और देश को देते हैं। *

 * यदि हम पेट्रोल / डीजल पर कर हटाते हैं, तो क्या हमारे ऋण का भुगतान करना संभव होगा? हम ऋण का भुगतान कर सकते हैं, साथ ही कई नई परियोजनाओं में ला सकते हैं, इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से हमें हर चीज पर कर बढ़ाने की जरूरत है। 120 करोड़ लोगों का क्या दायित्व हो सकता है केवल वाहन मालिकों द्वारा किया जा रहा है। *

 * एक अंतिम बात .. *

 * आपके परिवार के मुखिया के रूप में, जब आपका परिवार कर्ज में होता है तो आप क्या करते हैं? *

  * क्या आप लापरवाही से खर्च करते हैं? *

  * या आप ऋण का भुगतान करते हैं? *

 * यदि लापरवाही और कर्ज न चुकाया जाए तो परिवार का भविष्य क्या होगा? *

 * विरोधियों के गलत खेल में मत पड़ो ... *हनन

 * इस देश के एक देशभक्त नागरिक के रूप में, कृपया देश के विकास में शामिल हों। *

 * यह विरोध हमेशा चुनावी रहा है, झूठे प्रचार से लोगों को भ्रमित करने की कोशिश की गई। *

 * इस सत्य को सभी भारतीयों के साथ साझा करें। *

  आपका मंत्री सेवक ।।

  * नरेंद्र मोदी ।


























Monday 21 December 2020

पंडित गेंदालाल दीक्षित

21 दिसम्बर/बलिदान-दिवस

पंडित गेंदालाल दीक्षित, जिन्हें अपनों ने ही ठुकराया 

प्रायः ऐसा कहा जाता है कि मुसीबत में अपनी छाया भी साथ छोड़ देती है। क्रांतिकारियों के साथ तो यह पूरी तरह सत्य था। जब कभी वे संकट में पड़े, तो उन्हें आश्रय देने के लिए सगे-संबंधी ही तैयार नहीं हुए। क्रांतिवीर पंडित गेंदालाल दीक्षित के प्रसंग से यह भली-भांति समझा जा सकता है।

पंडित गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवम्बर, 1888 को उत्तर प्रदेश में आगरा जिले की बाह तहसील के ग्राम मई में हुआ था। आगरा से हाईस्कूल कर वे डी.ए.वी पाठशाला, औरैया में अध्यापक हो गये। बंग-भंग के दिनों में उन्होंने ‘शिवाजी समिति’ बनाकर नवयुवकों में देशप्रेम जाग्रत किया; पर इस दौरान उन्हें शिक्षित, सम्पन्न और तथाकथित उच्च समुदाय से सहयोग नहीं मिला। अतः उन्होंने कुछ डाकुओं से सम्पर्क कर उनके मन में देशप्रेम की भावना जगाई और उनके माध्यम से कुछ धन एकत्र किया। 

इसके बाद गेंदालाल जी अध्ययन के बहाने मुंबई चले गये। वहां से लौटकर ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद के साथ उन्होंने ‘मातृदेवी’ नामक संगठन बनाया और युवकों को शस्त्र चलाना सिखाने लगे। इस दल ने आगे चलकर जो काम किया, वह ‘मैनपुरी षड्यंत्र’ के नाम से प्रसिद्ध है। 

उस दिन 80 क्रांतिकारियों का दल डाका डालने के लिए गया। दुर्भाग्य से उनके साथ एक मुखबिर भी था। उसने शासन को इनके जंगल में ठहरने की जानकारी पहले ही दे रखी थी। अतः 500 पुलिस वालों ने उस क्षेत्र को घेर रखा था। 

जब ये लोग वहां रुके, तो सब बहुत भूखे थे। वह मुखबिर कहीं से जहरीली पूड़ियां ले आया। उन्हें खाते ही कई लोग धराशायी हो गये। मौका पाकर वह मुखबिर भागने लगा। यह देखकर ब्रह्मचारी जी ने उस पर गोली चला दी। गोली की आवाज सुनते ही पुलिस वाले आ गये और फिर सीधा संघर्ष होने लगा, जिसमें दल के 35 व्यक्ति मारे गये। शेष लोग पकड़े गये। 

मुकदमे में एक सरकारी गवाह सोमदेव ने पंडित गेंदालाल दीक्षित को इस सारी योजना का मुखिया बताया। अतः उन्हें मैनपुरी लाया गया। तब तक उनका स्वास्थ्य बहुत बिगड़ चुका था। इसके बाद भी वे एक रात मौका पाकर एक अन्य सरकारी गवाह रामनारायण के साथ फरार हो गये।

पंडित जी अपने एक संबंधी के पास कोटा पहुंचे; पर वहां भी उनकी तलाश जारी थी। इसके बाद वे किसी तरह अपने घर पहुंचे; पर वहां घर वालों ने साफ कह दिया कि या तो आप यहां से चले जाएं, अन्यथा हम पुलिस को बुलाते हैं। अतः उन्हें वहां से भी भागना पड़ा। तब तक वे इतने कमजोर हो चुके थे कि दस कदम चलने मात्र से मूर्छित हो जाते थे। किसी तरह वे दिल्ली आकर पेट भरने के लिए एक प्याऊ पर पानी पिलाने की नौकरी करने लगे।

कुछ समय बाद उन्होंने अपने एक संबंधी को पत्र लिखा, जो उनकी पत्नी को लेकर दिल्ली आ गये। तब तक उनकी दशा और बिगड़ चुकी थी। पत्नी यह देखकर रोने लगी। वह बोली कि मेरा अब इस संसार में कौन है ? पंडित जी ने कहा, ‘‘आज देश की लाखों विधवाओं, अनाथों, किसानों और दासता की बेड़ी में जकड़ी भारत माता का कौन है ? जो इन सबका मालिक है, वह तुम्हारी भी रक्षा करेगा।’’

उन्हें सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया। वहीं पर मातृभूमि को स्मरण करते हुए उन नरवीर ने 21 दिसम्बर, 1920 को प्राण त्याग दिये।  

(संदर्भ  : मातृवंदना, क्रांतिवीर नमन अंक, मार्च-अपै्रल 2008)

मीरा कुमार

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने नए संसद भवन को मंजूरी दी थी। "

जानिए कांग्रेस भाजपा के अंतर को

* वर्ष:  2012

* भवन:नई संसद निर्माण

*  PM: मनमोहन सिंह

* पार्टी: * कांग्रेस

क्षेत्रफल: 35,000 वर्ग मीटर

लागत:3000 करोड़

* (महंगाई के अनुसार 2020 के लिए रकम होगी- * 3900 करोड़)

अब जानिए

* वर्ष: * 2020

* भवन: * नई संसद निर्माण

* द्वारा * पीएम नरेंद्रमोदी

* पार्टी: * भाजपा

क्षेत्रफल:65,000 वर्ग मीटर

लागत: ₹ 970 करोड़

(कृपया ध्यान दें कि मोदी राज में क्षेत्रफल दोगुना किया गया है, लेकिन लागत एक चौथाई है

 यहीं दर्द यहीं छिपा है कांग्रेस का

* नई दिल्ली में गांधी, नेहरू और इंदिरा की समाधि मिलकर 142 acres बनती हैं।वर्तमान बाजार मूल्य में यह भूमि cr 171500 करोड़ है।

 *लेकिन कांग्रेस को नए संसद भवन के निर्माण के लिए 15 एकड़ जमीन की समस्या है। "


Sunday 20 December 2020

देहरादून

देहरादून के बारे में रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियां **

1611ई में 3005 रुपये कीमत में बिका था।

1674ई से पहले देहरादून का नाम पृथ्वीपुर था।

1676ई में मुगल सम्राट औरंगजेब  नें दहरादून क्षेत्र गरुराम राय को दे दिया।

1757 में नजीबुदौला ने टेहरीनरेश को हरा कर हासिल किया।

1803ई में गोरखों ने देहरादून पर कब्जा किया।

1803ई 14मई  को खुड़बुड़ा देहरादून में गोरखा सेना लड़ते  हुए गढवाल नरेश प्रदुमन शाह बीरगति को प्राप्त हुए थे।

1811ई में टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने कैप्टेन हरसी यंग को देहरादून हस्तगत किया।

1814ई में कैप्टन हरसी ने देहरादून मात्र 100₹ मासिक लीज़ पर ईस्टइंडिया  कम्पनी को दे दिया।

1815ई में अंग्रेजों ने गोरखों को भगाकर देहरादून हथिया लिया

1823ई में पलटन बाजार बना,इसके दोंनों तरफ पलटन रहती थी।

1840ई में चीन से लाया लीची का पौधा लगाया

1842ई में अफगान शासक अमीर दोस्त द्वारा अफगानिस्तान से लायी बासमती बोई गयी।

1842ई में दून में डाक सेवा शुरु हुई।

1854ई में मिशन स्कूल खोला गया।

1857ई में डा,जानसन  द्वारा चाय बाग लगाया गया।

1863ई में दून स्थित शिवाज़ी धर्मशाला में पहलीबार राम लीला का बिराट मंचन किया गया।

1867ई में नगर पालिका बनी।

1868ई में चकराता,

1873ई में सहारनपुर रोड़ 1892ई में रायपुर रोड़ बनी।

18671ई में दून जिला बना।

1889ई में नाला पानी से दून को जलापूर्ति हुई।

1901ई" में दून रेलसेवा आरंम्भ हुई।

1902ई में महादेवी पाठशाला,और 1904ई में डीएबी कालेज आरंम्भ हुये

1916 ई में बिद्युत आपूर्ति हुई।

1918ई में ओलम्पिया और ओरएन्ट सिनेमा घर खुले।

1920ई में लोगों पहली बार कार देखी।

1930ई में देहरादून मसूरी मोटर मार्ग बना।

1939ई तक दून में केवल दो ही कारें थी

1944ई में लाला मंन्शाराम नें 58बीघा जमीन में कनाट-प्लेस बनवाया।

1947ई में जातीय उपद्रब हुआ।

1948ई0 में प्रेमनगर और क्लेमनटाउन सिटी बस सेवा शुरू हुई।

1948ई से 1953ई तक आनंदसिंह ने अपने पिता बलबीरसिंहकी याद ने घंण्टाघर बनाया। 

1978ई में वायु सेवा शुरू हुई।

वैदिक घड़ी

 #वैदिक_घड़ी ⏱️


आइए आपको वैदिक घड़ी के माध्यम से हिंदुत्व की जड़ों से जोड़ते है।

◆ 12:00 बजने के स्थान पर आदित्या: लिखा हुआ है, जिसका अर्थ यह है कि सूर्य 12 प्रकार के होते हैं :

अंशुमान,अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु।

◆ 1:00 बजने के स्थान पर ब्रह्म लिखा हुआ है, इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म एक ही प्रकार का होता है :

एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति।

◆ 2:00 बजने की स्थान पर अश्विनौ लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि अश्विनी कुमार दो हैं।

◆ 3:00 बजने के स्थान पर त्रिगुणा: लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि गुण तीन प्रकार के हैं :

सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण।

◆ 4:00 बजने के स्थान पर चतुर्वेदा: लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि वेद चार प्रकार के होते हैं :

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

◆ 5:00 बजने के स्थान पर पंचप्राणा: लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य है कि प्राण पांच प्रकार के होते हैं : 

अपान, समान, प्राण, उदान और व्यान।

◆ 6:00 बजने के स्थान पर षड्र्सा: लिखा हुआ है, इसका तात्पर्य है कि रस 6 प्रकार के होते हैं :

मधुर, अमल, लवण, कटु, तिक्त और कसाय।

◆ 7:00 बजे के स्थान पर सप्तर्षय: लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि सप्त ऋषि 7 हुए हैं :

कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ।

◆ 8:00 बजने के स्थान पर अष्ट सिद्धिय: लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि सिद्धियां आठ प्रकार की होती है :

अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व।

◆ 9:00 बजने के स्थान पर नव द्रव्याणि लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि 9 प्रकार की निधियां होती हैं :

पद्म, महापद्म, नील, शंख, मुकुंद, नंद, मकर, कच्छप, खर्व।

◆ 10:00 बजने के स्थान पर दशदिशः लिखा हुआ है, इसका तात्पर्य है कि दिशाएं 10 होती है :

पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैऋत्य, वायव्य, आग्नेय, आकाश, पाताल।

◆ 11:00 बजने के स्थान पर रुद्रा: लिखा हुआ है, इसका तात्पर्य है कि रुद्र 11 प्रकार के हुए हैं :

कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड और भव।

सनातन धर्म में प्रत्येक वस्तु कुछ न कुछ अवश्य सिखाती है। 

Wednesday 16 December 2020

सरदार पटेल

 गांधीजी, सरदार और कुछ अन्य कार्यकर्ता यरवदा जेल में अलग-अलग विषयों पर चर्चा कर रहे थे। इस चर्चा में, भारत के स्वतंत्र होने के बाद देश को कैसे चलाना है, इसका मुद्दा सामने आया। भारत के स्वायत्त होने के बाद, इस बात पर चर्चा हुई कि किस नेता को कौन सा खाता दिया जाना चाहिए। हर कोई इन वार्ता में विशेष रूप से रुचि रखता था। सरदार मुंगा बैठे थे और खातों के आवंटन की बात सुन रहे थे।

गांधीजी ने सरदार से पूछा, "वल्लभभाई, स्वतंत्र भारत की इस सरकार में हम आपको क्या हिसाब देंगे?" गांधीजी सहित हर कोई सरदार का जवाब सुनना चाहता था। सभी सतर्क हो गए। सरदार ने सहज भाव से कहा, "बापू स्वराज में, मैं चीपियो और ठुमके लगाऊंगा।" (मेरा मतलब है, मैं एक धर्मोपदेश बन जाऊंगा) यह सुनकर, हर कोई जोर से हंस पड़ा।

स्वराज मिलने के बाद उन्होंने इसे सच साबित कर दिया। पूरा देश उन्हें प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहता है। ऐसे समय में जब 15 में से 12 प्रांतीय विधानसभाएं सरदार के सिर पर ताज रखने का प्रस्ताव कर रही हैं, तो आप प्रधानमंत्री के पद को मुस्कुराने के साथ किसी और को सौंपने जैसा बड़ा दावा कहां कर सकते हैं?

सरदार साहब की मृत्यु के बाद, उनकी व्यक्तिगत संपत्ति में 4 जोड़ी कपड़े, कुछ बर्तन और केवल रु250 का बैंक बैलेंस शामिल था।

सरदार के नाम पर कोई इमारत या जमीन का एक छोटा टुकड़ा भी नहीं था। उन्होंने आम आदमी को दाह संस्कार करने वाले स्थान पर अंतिम संस्कार करने का भी निर्देश दिया। सरदार ने कहा कि मरने के बाद मैं नहीं चाहता कि मेरा नाम समाधि बने और देश की कुछ जमीन मेरे नाम पर दफन हो जाए। सरदार साहब, जिन्होंने आज के अखंड भारत को बनाने के लिए 562 राज्यों को एकजुट किया, एक चक्रवर्ती तपस्वी थे।

हम सभी इस महान व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखने में विफल रहे हैं जिन्होंने देश के लिए अपने शरीर, मन और धन का बलिदान दिया। मेली मुराद के दलाल और नेफ़त के राजनीतिज्ञों ने सरदार की प्रतिभा को मिटाने की पूरी कोशिश की है लेकिन इस सूरज की चमक को कैसे अस्पष्ट किया जा सकता है?

15 दिसंबर 1950 को सरदार साहब का निधन हो गया। चार साल बाद 1954 में मौलाना आजाद का निधन हो गया। मौलाना की मृत्यु के दूसरे महीने में, प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सांसदों से अनुरोध किया कि वे संसद भवन में उनकी एक तेल चित्रकला रखें। इस समय ग्वालियर के महाराजा सिंधिया उपस्थित थे। जब मौलाना की एक ऑइल पेंटिंग लगाने का प्रस्ताव रखा गया, तो उन्होंने देखा कि असेंबली हॉल में अखण्ड भारत के निर्माता सरदार पटेल की ऑइल पेंटिंग नहीं थी!

 महाराजा सिंधिया सीधे राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के पास गए और उनसे मुलाकात की और उनसे बात की। राष्ट्रपति ने महाराजा के इस कथन को भी स्वीकार किया कि सरदार की तस्वीर संसद भवन में होनी चाहिए। जिन महाराजाओं ने सरदार को अपना राज्य भारत को सौंप दिया था, उन्होंने अपने खर्च पर तुरंत एक तेल चित्रकला तैयार की जो सरदार की प्रतिभा को प्रभावित करेगी। जब डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा चित्र का अनावरण किया गया, तो ग्वालियर के महाराजा ने सरदार को श्रद्धांजलि दी और कहा, "यह वह आदमी है जिसे मैं एक बार नफरत करता था, यह वह आदमी है जिससे मैं डरता था, यह वह आदमी है जिसका आज मैं उसकी प्रशंसा करता हूं और मैं उससे बहुत प्यार करता हूं। ”

देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' को देने के लिए हमें कितनी देर हो गई। अपने जीवनकाल में भारत के इस प्यारे बेटे को उनकी मृत्यु के 41 साल बाद, जवाहरलाल और राजाजी को उनके जीवनकाल में सम्मानित किया गया। हमें फिल्म के कलाकारों को भारत रत्न से सम्मानित करने की याद आई लेकिन सरदार को पूरी तरह से भुला दिया गया। हालांकि, सरदार जैसी प्रतिभा को किसी सम्मान की आवश्यकता नहीं है।

सरदार किसी जाति या समाज के नहीं थे, बल्कि भारत के थे, हैं और रहेंगे। कोटि कोटि वंदन सरदार साहब को उनके 66 वें जन्मदिन पर।

सरदार वाणी

जो लोग अपने वीर पुरुषों की सराहना करना नहीं जानते, वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं जिन्हें वीर कहा जा सकता है।

Tuesday 15 December 2020

मोदी से पहले और मोदी के बाद

दीपक चौरसिया ,जाने-माने पत्रकार ने जो कुछ कहा एवं लिखा है, उसे आप लोगों से शेयर करने के लिए बाध्य हूँ, क्यों कि इसमें सच्चाई है, और मुझे बहुत पसन्द आई!

भाजपा मोदी से पहले और मोदी के बाद:

जब तक भाजपा वाजपेयी जी की विचारधारा पर चलती रही, वो राम के बताये मार्ग पर चलती रही। मर्यादा, नैतिकता, शुचिता इनके लिए कड़े मापदंड तय किये गये थे। परन्तु कभी भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी!

जहाँ करोड़ों रुपये के घोटाले-घपले करने के बाद भी, कांँग्रेस बेशर्मी से अपने लोगों का बचाव करती रही, वहीं पार्टी फण्ड के लिए मात्र एक लाख रुपये ले लेने पर भाजपा ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्षमण  को हटाने में तनिक भी विलंब नहीं किया!

परन्तु चुनावों में नतीजा ?

वही ढाक के तीन पात...

झूँठे ताबूत घोटाला के आरोप पर तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडिस का इस्तीफा, परन्तु चुनावों में नतीजा ??

वही ढाक के तीन पात...

कर्नाटक में येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही येदियुरप्पा को भाजपा ने निष्कासित करने में कोई विलंब नहीं किया.....

परन्तु चुनावों में नतीजा ??

वही ढाक के तीन पात...

खैर....

फिर होता है नरेन्द्र मोदी  का पदार्पण! ........मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरण चिन्हों पर चलने वाली भाजपा को वो कर्मयोगी श्री कृष्ण की राह पर ले आते हैं !

श्री कृष्ण अधर्मी को मारने में किसी भी प्रकार की गलती नहीं करते हैं। ...........छल हो तो छल से, कपट हो तो कपट से, अनीति हो तो अनीति से , अधर्मी को नष्ट करना ही उनका ध्येय होता है!

इसीलिए वो अर्जुन को केवल कर्म करने की शिक्षा देते हैं !

कुल मिलाकर सार यह है कि अभी देश दुश्मनों से घिरा हुआ है, नाना प्रकार के षडयंत्र रचे जा रहे हैं ! इसलिए अभी हम नैतिकता को अपने कंधे पर ढोकर नहीं चल सकते हैं ! ........   नैतिकता को रखिये ताक पर, और यदि इस देश को बचाना चाहते हैं, तो सत्ता को अपने पास ही रखना होगा! ...........वो चाहे किसी भी प्रकार से हो - साम, दाम, दंड, भेद - किसी भी प्रकार से!

बिना सत्ता के आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं ! इसलिए भाजपा के कार्यकर्ताओं को चाहिए कि कर्ण का अंत करते समय कर्ण के विलापों पर ध्यान ना दें! .........केवल ये देखें कि अभिमन्यु की हत्या के समय उनकी नैतिकता कहाँ चली गई थी ?

कर्ण के रथ का पहिया जब कीचड़ में धंँस गया, तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: पार्थ, देख क्या रहे हो ? ......इसे समाप्त कर दो!

संकट में घिरे कर्ण ने कहा: यह अधर्म है !

भगवान श्री कृष्ण ने कहा: अभिमन्यु को घेर कर मारने वाले, और द्रौपदी को भरी दरबार में वेश्या कहने वाले के मुख से आज अधर्म की बातें शोभा नहीं देती  !!

आज राजनीतिक गलियारा जिस तरह से संविधान की बात कर रहा है, तो लग रहा है जैसे हम पुनः महाभारत युग में आ गए हैं !

विश्वास रखो, महाभारत का अर्जुन नहीं चूका था ! आज का अर्जुन भी नहीं चूकेगा !

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः!

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम !

चुनावी जंग में अमित शाह जो कुछ भी जीत के लिए पार्टी के लिए कर रहे हैं, वह सब उचित है!

अटल बिहारी वाजपेयी जी  की तरह एक वोट का जुगाड़ न करके आत्मसमर्पण कर देना, क्या एक राजनीतिक चतुराई थी ?

अटलजी ने अपनी व्यक्तिगत नैतिकता के चलते, एक वोट से अपनी सरकार गिरा डाली, और पूरे देश को चोर लुटेरों के हवाले कर दिया !

साम, दाम, दण्ड , भेद ,राजा या क्षत्रिय द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियाँ हैं, जिन्हें उपाय-चतुष्टय (चार उपाय) कहते हैं !

राजा को राज्य की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिये सात नीतियाँ वर्णित हैं !

उपाय चतुष्टय के अलावा तीन अन्य हैं - माया, उपेक्षा तथा इन्द्रजाल !!

राजनीतिक गलियारे में ऐसा विपक्ष नहीं है, जिसके साथ नैतिक-नैतिक खेल खेला जाए! सीधा धोबी पछाड़ आवश्यक है !

जय हिन्द!

एक बात और!

-:अनजाना इतिहास:-

बात १९५५ की है! सउदी अरब के बादशाह "शाह सऊद"  प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण पर भारत आए थे। वे ४ दिसम्बर १९५५ को दिल्ली पहुँचे, जहाँ उनका पूरे शाही अन्दाज़ में स्वागत किया गया! शाह सऊद दिल्ली के बाद, वाराणसी भी गए!

सरकार ने दिल्ली से वाराणसी जाने के लिए, "शाह सऊद" के लिए एक विशेष ट्रेन में, विशेष कोच की व्यवस्था की! शाह सऊद जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस के सभी सरकारी इमारतों पर "कलमा तैय्यबा" लिखे हुए झंडे लगाए गए थे!

वाराणसी में जिन-जिन रास्तों-सडकों से "शाह सऊद" को गुजरना था, उन सभी रास्तों-सड़कों में पड़ने वाले मंदिर और मूर्तियों को परदे से ढक दिया गया था!

इस्लाम की तारीफ़, और हिन्दुओं का मजाक बनाते हुए शायर "नज़ीर बनारसी" ने एक शेर कहा था: -👇🏻

अदना सा ग़ुलाम उनका,

गुज़रा था बनारस से,

मुँह अपना छुपाते थे, 

काशी के सनम-खाने!

अब खुद सोचिये कि क्या आज मोदी और योगी के राज में, किसी भी बड़े से बड़े तुर्रम खान के लिए, ऐसा किया जा सकता है ? आज ऐसा करना तो दूर, कोई करने की सोच भी नहीं सकता!

हिन्दुओं, उत्तर दो, तुम्हें और कैसे अच्छे दिन देखने की तमन्ना थी ?

आज भी बड़े बड़े ताकतवर देशों के प्रमुख भारत आते हैं, और उनको वाराणसी भी लाया जाता है! लेकिन अब मंदिरों या मूर्तियों को छुपाया नहीं जाता है, बल्कि उन विदेशियों को गंगा जी की आरती दिखाई जाती है, और उनसे पूजा कराई जाती है! 

ये था कांग्रेसियों का हिंदुत्व दमन!

राष्ट्रधर्म सर्वोपरि

शान्ति घोष व सुनीति चौधरी


 14 दिसम्बर/इतिहास-स्मृति

 वीर बालिका शान्ति घोष व सुनीति चौधरी 

आजकल त्रिपुरा भारत का एक अलग राज्य है; पर उन दिनों वह बंगाल का एक जिला तथा उसका मुख्यालय कोमिल्ला था। वहां के क्रूर जिलाधीश स्टीवेंस के अत्याचारों से पूरा जिला थर्रा रहा था। वह क्रांतिवीरों को बहुत कड़ी सजा देता था। अतः क्रांतिकारियों ने उसे ही मजा चखाने का निश्चय किया। पर यह काम आसान नहीं था, चूंकि वह बहुत कड़ी दो स्तरीय सुरक्षा में रहता था। कार्यालय का अधिकांश काम वह घर पर ही करता था। उससे मिलने आने वाले हर व्यक्ति की बहुत सावधानी से तलाशी ली जाती थी।

उन दिनों कोमिल्ला के फैजन्नुसा गर्ल्स हाइस्कूल की प्रधानाचार्य श्रीमती कल्याणी देवी थीं। वे सुभाषचंद्र बोस के गुरु वेणीमाधव दास की पुत्री थीं। उनकी छोटी बहिन वीणा दास बंगाल के गर्वनर स्टेनली जैक्सन के वध के अपराध में 13 वर्ष का कारावास भोग रही थीं। श्रीमती कल्याणी देवी बड़े प्रखर विचारों की थीं तथा छात्राओं के मन में भी स्वाधीनता की आग जलाती रहती थीं।

श्रीमती कल्याणी देवी ने एक दिन कक्षा आठ की छात्रा शांति घोष एवं सुनीति चौधरी को अपने पास बुलाया। ये दोनों बहुत साहसी तथा बुद्धिमान थीं। इन तीनों ने मिलकर स्टीवेंस को मारने की पूरी योजना बनाई। 14 दिसम्बर, 1931 को शांति और सुनीति अपने विद्यालय की वेशभूषा में स्टीफेंस के घर पहुंच गयीं। दोनों ने अपने कपड़ों में भरी हुई पिस्तौल छिपा रखी थी। 

द्वार पर तैनात संतरी के पूछने पर उन्होंने कहा कि हमारे विद्यालय की ओर से तीन मील की तैराकी प्रतियोगिता हो रही है, इसमें हमें जिलाधीश महोदय का सहयोग चाहिए। उन्होंने जिलाधीश महोदय के लिए एक प्रार्थना पत्र भी उसे दिया। संतरी ने उन्हें रोका और अंदर जाकर वह पत्र स्टीवेंस को दे दिया। स्टीवेंस ने उन्हें मिलने की अनुमति दे दी। उनके बस्तों की तो ठीक से तलाशी हुई; पर लड़की होने के कारण उनके शरीर की तलाशी नहीं ली गयी।

अंदर जाकर दोनों ने जिलाधीश का अभिवादन कर उनसे यह आदेश करने को कहा कि तैराकी प्रतियोगिता के समय नाव, स्टीमर, मोटरबोट आदि नदी से न निकलें, जिससे प्रतियोगिता ठीक से सम्पन्न हो जाए। स्टीवेंस ने कहा कि इस प्रार्थना पत्र पर तुम्हारे विद्यालय की प्रधानाचार्य जी के हस्ताक्षर नहीं हैं। पहले उनसे अग्रसारित करा लाओ, फिर मैं अनुमति दे दूंगा।

शांति और सुनीति मौका देख रही थीं। उन्होंने कहा कि आप यह बात कृपया इस पर लिख दें। स्टीवेंस ने कलम उठाई और लिखने लगा। इसी समय दोनों ने अपने कपड़ों में छिपी पिस्तौल निकाली और स्टीवेंस पर गोलियां दाग दीं। गोली की आवाज सुनते ही बाहर खड़े संतरी और कार्यालय में बैठे लिपिक आदि अंदर दौड़े; पर तब तक तो स्टीवेंस का काम तमाम हो चुका था।

सबने मिलकर दोनों बालिकाओं को पकड़ लिया। सब लोग डर से कांप रहे थे; पर शांति और सुनीति अपने लक्ष्य की सफलता पर प्रसन्न थीं। दोनों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। शांति उस समय चौदह तथा सुनीति साढ़े चौदह वर्ष की थी। अवयस्क होने के कारण उन्हें फांसी नहीं दी जा सकती थी। अतः उन्हें आजीवन कालेपानी की सजा देकर अंदमान भेज दिया गया। 

इस प्रकार इन दोनों वीर बालिकाओं ने अपनी युवावस्था के सपनों की बलि देकर क्रांतिवीरों से हो रहे अपमान का बदला लिया। 

(संदर्भ: राष्ट्रधर्म दिसम्बर 2010 तथा क्रांतिकारी कोश)

Wednesday 9 December 2020

शरद पवार

 यह चेहरा और चरित्र देखो 10 साल केंद्र में क्रुषि मंत्री के पद पर रहे शरदराव पवारका. उस काल में किसान दररोज बढती संख्या मे आत्महत्या कर रहा था पर एक भी दिन इस महानायक(?) ने एक भी दिन मनमोहन सिंह या उससे पहले नरसिंहरावको कभी धमकाने की बात तो छोडो किसान के हित में आवश्यक व्यवस्था परिवर्तन नही किये. तबला और डग्गा बजाने में माहिर यह नेता केवल अपने स्वार्थ के लिए मूँह खोलता है , जनता के लिए नही, यह इतिहास है.

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मोदी सरकार को चेताया है कि अगर मांगों पर विचार नहीं हुआ तो आंदोलन दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा। 

मराठा क्षत्रप शरद पवार की हिपोक्रेसी देखिये। मनमोहन सिंह सरकार में 10 साल तक कृषि मंत्री रहे ये वही शरद पवार हैं जिन्होंने बतौर कृषि मंत्री अगस्त 2010 और नवंबर 2011 के बीच सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर बार-बार मॉडल एपीएमसी एक्ट को लागू करने और स्टेट एपीएमसी एक्ट्स में संशोधन के लिए कहा था। उन्होंने मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया था, ताकि किसानों को प्रतिस्पर्धा के लिए वैकल्पिक माध्यम मिल सके। तब शरद पवार ने दावा किया था कि इससे किसानों को बेहतर दाम मिल सकेगा। आज सरकार ने जब इन्हीं बातों का कानून में प्रावधान किया है तो पवार साहब कह रहे हैं कि वो इसके खिलाफ देशभर में आंदोलन करेंगे। 

शरद पवार जिस उम्र में पहुंच चुके हैं वहां लोग व्यक्तिगत राजनीतिक नफा-नुकसान से ऊपर उठ कर सोचने  लगता है पर पवार पर परिवार का लाभ-हानि हावी है।

तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 10 अगस्त 2010 को लिखी ये चिट्ठी पढ़िये ।



कॉरपोरेट मिशनरी

कॉरपोरेट मिशनरी

बहुत ही ज्वलंत और चिंताजनक मुद्दा है यह।

क्या आप जानते है भारत में सबसे बड़ा कॉर्पोरेट कौन है?

टाटा ? नहीं। 

अम्बानी ? नहीं।

अदानी ? नहीं।

चौंकिए मत और आगे पढ़िए।

3,00,000 लाख करोड़ सम्पति वाला कोई और नहीं यह है , The_Syro_Malabar_Church_केरल।

इसका 10000 से ज्यादा संस्थानों पर कण्ट्रोल है और इसकी अन्य बहुत सी सहायक ऑर्गेनाइजेशन्स भी हैं।

मेरी समझ में यह एक ऐसा छद्म बिज़नेस ऑर्गेनाइजेशन है, जो सम्पत्ति के मामले में भारत में टाटा, अम्बानी आदि का मुकाबला करने में सक्षम है। ये सारे औद्योगिक घराने इसके आसपास भी नहीं हैं। 

यकीन नहीं हो रहा है ना ,,,,? 

तो ठीक है,ये आंकडे देखिए।

इनके अधीन 

  • 9000 प्रीस्ट
  • 37000 नन
  • 50 लाख चर्च मेम्बर
  • 34 Dioceses
  • 3763 चर्च
  • 71 पादरी शिक्षा संस्थान
  • 4860 शिक्षा संस्थान
  • 2614 हॉस्पिटल्स और क्लिनिक
  • 77 ईसाई शिक्षा संस्थान
  • कुल मिलकर 11000 छोटे बड़े संस्थान।
  • इनके ऊपर सबसे शक्तिशाली चर्च है CMA

CMA के अन्दर ही 1514 संस्थान आते हैं। जिनमें देश भर में फैले स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल और अनाथालय हैं।

चर्च के 50 ऐसे ऑर्गेनाइजेशन हैं जो स्टॉक मार्केट में लिस्टेड हैं।

अगर आप इस चर्च का सालाना टर्न ओवर देखेंगे तो  कोई भी कंपनी इनके आसपास भी नहीं फटकती है।

पूरे भारत में चर्च की पहुऺच गांवों तक है और विदेशों में भी इसके सहयोगी संस्थान हैं। 

इस चर्च के सारे सदस्य मलेशिया के हैं। पूरी मनेजमेंट टीम भी मलेशिया की ही है।

इसके अध्यक्ष को मेजर आर्चबिशप कहा जाता है।

Synod इस चर्च की सबसे ताकतवर कमेटी है, इसका मुखिया बिशप ही होता है।

The SYRO मालाबार चर्च दुनिया के कैथोलिक इसाईयत का सबसे शक्तिशाली विंग है, जिसका ओहदा उसकी अपनी सम्पत्ति की वजह से है।

अब क्योंकि यह माइनॉरिटी संस्थान है। इसलिए यह इनकम टैक्स भी नहीं देता है और सरकार इसकी सम्पति का ब्यौरा भी नहीं देख सकती है।

इस वजह से इसकी वास्तविक सम्पति किसी को पता भी नहीं है।

इनका ऑडिट भी नहीं हो सकता।

अल्पसंख्यक के नाम पर यह बहुत बड़ा गोरखधंधा भारत में चल रहा है। यह एक प्रकार का ईस्ट इंडिया कम्पनी जैसा ही कारोबार है l

लेकिन बिडम्बना यह है कि सरकार इसके सामने अपने ही संविधान से असहाय है।

इसके पास जो  जमीनें हैं उसका भी सरकारों के पास कोई व्यवस्थित लेखा-जोखा नहीं है l अगर किसी एक के खिलाफ कोई कोर्ट जाता है तो हज़ारों खड़े हो जाते हैं जैसे रक्तबीज हों।

इनकी सारी सम्पति का लगभग 50% तो सिर्फ शिक्षा संस्थानों के पास है।

जहाँ हिन्दुओं के बच्चे  महंगी फीस देकर पढ़ते हैं, यही पैसा लोगों को कन्वर्ट करने में, साधुओं की हत्या प्लानिंग में, नक्सलवाद में और ना जाने कितनी ही अन्य साजिशों में उपयोग हो रहा है..,,,,,,, l

उल्लेखनीय है कि हिन्दू संस्थाओं द्वारा संचालित स्कूलों पर टैक्स भी लगता है और RTE जैसे कानून भी लगते हैं, जो की कान्वेंट स्कूल पर लागु नहीं हैं।

उन स्कूलों की फीस इन कॉन्वेंट स्कूलों के मुकाबले *कुछ अधिक हो सकती है। हर बड़े शहरों में स्कूल भी नहीं बना सकते क्योंकि चर्च की तरह उनके पास प्रत्येक गांव, कस्बे और शहर में जमीनें भी नहीं होंगी। आपको ऐसे स्कूलों के लिए थोडा दूर भी जाना पड़ सकता है।

लेकिन आपका हर कदम आने वाली पीढ़ी के कदमों को इस देश में मजबूती से जमाएगा l

अब निर्णय आपका है।

ये स्वम् हिन्दुओं को समझना चाहिए की उनका पैसा ही एक दिन उनकी आने वाली पीढ़ियों को निगल ना जाये।

यह एक गंभीर विषय है।


Tuesday 8 December 2020

शिवलिंग को गुप्तांग की संज्ञा कैसे दी गई..... ?

 शिवलिंग को गुप्तांग की संज्ञा कैसे दी गई..... ?

और अब सनातन संस्कृति के लोग खुद ही शिवलिंग को शिव् भगवान का गुप्तांग समझने लगे है और दूसरों को भी ये गलत जानकारी देने लगे हैं।

परन्तु सही तथ्यों को जानना बहुत जरूरी है...

कुछ लोग शिवलिंग की पूजा की आलोचना करते हैं...

छोटे छोटे बच्चों को बताते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते हैं । उन मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है और अपने बच्चों को सनातन संस्कृति के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते हैं। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है । इसे देववाणी भी कहा जाता है।

लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है…

जबकी जनेन्द्रिय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है।

>शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक….

>पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक

इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। 

अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य की जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये ”स्त्री लिंग” के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए?

शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।

स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।

शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है और ना ही शुरुआत।

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ।

दरअसल यह गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों यवनों  के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने पर तथा बाद में मुगलों और षडयंत्रकारी अंग्रेजों के द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ है ।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं, उदाहरण के लिए यदि हम हिंदी के एक शब्द “सूत्र” को ही ले लें तो

सूत्र का मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है। जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि ।

उसी प्रकार “अर्थ” शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब, आशय, अभिप्राय (मीनिंग) भी ।

ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय, चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है। जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)

ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे हैं: ऊर्जा और प्रदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। विज्ञान का भी यही सिद्धांत है e=mc२

इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं। ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है. 

The universe is a sign of Shiva Lingam

शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी है। अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान हैं।

अब बात करते है योनि शब्द पर-

मनुष्ययोनि, पशुयोनी, पेड़-पौधों की योनी, जीव-जंतु योनि.....

योनि शब्द का संस्कृत में प्रादुर्भाव, प्रकटीकरण अर्थ होता है....जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है। किन्तु कुछ धर्मों में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है नासमझ बेचारे। इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते हैं। जबकी हिंदू धर्म मे 84 लाख योनि बताई जाती है।यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं। अब तो वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़, कीट, जानवर, मनुष्य आदि) है।

मनुष्य_योनि

पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है।अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है। तो कुल मिलकर अर्थ यह है:-

लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक, दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई , बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं । हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है। इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया। ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके । लेकिन कुछ विकृत मुग़ल काल व गंदी मानसिकता बाले गोरे अंग्रेजों के गंदे दिमागों ने इस में गुप्तांगो की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इसके पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया ।

आज भी बहुतायत हिन्दू इस दिव्य ज्ञान से अनभिज्ञ है।

हिन्दू सनातन धर्म व उसके त्यौहार विज्ञान पर आधारित है।जोकि हमारे पूर्वजों ,संतों ,ऋषियों-मुनियों तपस्वीयों की देन है।आज विज्ञान भी हमारी हिन्दू संस्कृति की अदभुत हिन्दू संस्कृति व इसके रहस्यों को सराहनीय दृष्टि से देखता है व उसके ऊपर रिसर्च कर रहा है।

Sunday 6 December 2020

सनातन धर्मग्रंथों पर की जा रही है बार-बार चोट

05 दिसंबर 2020

azaadbharat.org

सनातन हिंदू धर्म को मिटाने के लिए अनेकों प्रकार के षड्यंत्र सदियों से चले आ रहे हैं, उसमे से एक है बौद्धिक षड्यंत्र जिसमे असली सनातन धर्मग्रंथों को तोड मरोड़ करके बदलकर समाज को परोसना ये वामपंथ ने खूब काम किया और भी सनातन धर्म विरोधी लोग है यह खूबी से कर रहे हैं।

शिकागो विश्वविद्यालय की प्रोफेसर वेंडी डोनीजर की लिखी पुस्तक 'द हिंदूज: ऐन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' आजकल चर्चा में है। पुस्तक के चर्चा में आने की वजह कोई स्तरीय या शोधपरक लेखन नहीं, बल्कि हिंदू धर्मग्रंथों और आख्यानों के चुने हुए प्रसंगों की व्याख्या काम भाव की दृष्टि से किया जाना है।

उदाहरण के लिए, इस पुस्तक में लिखा गया है कि रामायण में उल्लिखित राजा दशरथ कामुक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और बुढ़ापे में भी कैकेयी जैसी जवान पत्नी के साथ वह रंगरेलियों में डूबे रहते थे। इसमें लिखा गया है कि कैकेयी के इशारे पर ही राजा दशरथ ने अपने बेटे राम को जंगल में भेज दिया ताकि कोई रुकावट न रहे। पुस्तक के मुताबिक राम और लक्ष्मण दोनों ने ही अपने पिता को कामुक बूढ़ा कहा था। वेंडी ने लिखा है कि जंगल में रहते हुए लक्ष्मण के मन में भी सीता के प्रति कामभावना पैदा हुई थी और राम ने इस बारे में लक्ष्मण से सवाल भी किया था। इसी तरह महाभारत की कथा के बारे में भी वेंडी ने अपने मन मुताबिक व्याख्या दी है। जैसे कुंती द्वारा सूर्य के साथ नियोग से प्राप्त पुत्र के बारे में लिखा गया है कि सूर्य देवता ने कुंती के साथ बलात्कार किया, जिससे 'कर्ण' नामक अवैध संतान पैदा हुई।

पुस्तक में भारतीय धर्मग्रंथों के कुछ चुने हुए प्रसंगों की कामुक व्याख्या करके एक "वैकल्पिक" इतिहास लिखने की कोशिश की गई है। यह केवल प्राचीन ग्रंथों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक घटनाक्रमों को भी कुछ इसी तरह घसीटा गया है। गांधी की रामराज्य की कल्पना को भारत में मुसलमानों और ईसाइयों से छुटकारा पाने और हिंदू राज्य की स्थापना से जोड़ा गया है।

वेंडी ने ऐसा लेखन पहली बार नहीं किया है। हिंदू चिंतन, मनीषा और इतिहास पर वह पिछले तीन दशक से इसी तरह का लेखन करती रही हैं। हमारे बुद्धिजीवियों को भी पश्चिमी भक्ति के कारण पर्याप्त आदर और सम्मान मिलता रहा है। जिस लेखन को किसी अन्य धर्म अथवा मत के लोग घृणा या क्षोभ से देखते हैं उसे पश्चिम के रेडिकल प्रोफेसर एक नई व्याख्या के रूप में सम्मान देते हैं।

कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसा लेखन यदि इस्लामी प्रसंगों पर कोई करें तो उसे एंटी-मुस्लिम और घोर साम्प्रदायिक कहकर प्रतिबंधित करने की मांग की जाती है। विडंबना यह है कि यह लोग भी वहीं होते हैं जो हिंदू ग्रंथों और महापुरुषों पर कालिख पोतने का हर तरीके से समर्थन करते हैं। यह कार्य केवल बयान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि जुलूस और प्रदर्शन तक किए जाते हैं। जेम्स लेन की पुस्तक में छत्रपति शिवाजी के गंदे चित्रण का समर्थन करते हुए यही किया गया था।

सच्चाई तो यही है कि वेंडी डोनीजर या जेम्स लेन जैसे लेखक भारत में भी हैं। इतिहासकार डी. एन. झा ने लिखा है कि कृष्ण का चाल-चलन अच्छा नहीं था। साहित्यकार राजेंद्र यादव ने राम को युद्धलिप्साग्रस्त साम्राज्यवादी तथा हनुमान को पहला आतंकवादी तक बताया। रोमिला थापर ने सनातन हिंदू धर्म को नकारते हुए इसे ब्राह्मणवाद घोषित करते हुए व्याख्या दी कि यह निम्न जातियों के शोषण और दमन करने की विचारधारा है।

इधर एक नेता ने उसी भाव से "द्रौपदी" नामक उपन्यास लिखा। ऐसे अधिकाश लेखक हिंदू परिवारों में ही पैदा हुए, लेकिन वास्तव में यह धर्महीन हो चुके लेखक ही हैं। इनका मुख्य लक्ष्य हिंदू धर्म चिंतन और महापुरुषों को लांछित करके नाम कमाना है। विडंबना यह है कि इन सबको भारत में मान-सम्मान भी मिलता रहा है। यह एक सच्चाई है कि आजाद भारत में हिंदू मनीषा के साथ दोहरा अन्याय होता रहा है। वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों को उतना सम्मान नहीं मिल पाया जितना मिलना चाहिए था। यदि इन्हें कुरान, बाइबिल की तरह धर्म-पुस्तक माना गया होता तो इस तरह घृणा फैलाने का दुस्साहस शायद ही कोई करता। तब राम, कृष्ण को केवल ईश्वरीय आदर दिया जाता, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद या ईसा मसीह को दिया जाता है।

उपनिषद दर्शनशास्त्र का विश्वकोष है, किंतु भारत में दर्शनशास्त्र का विद्यार्थी अरस्तू, काट, मा‌र्क्स, फूको, देरिदा आदि को ही पढ़ता है। महाभारत राजनीति और नैतिकता की अद्भुत पुस्तक होने के बावजूद औपचारिक शिक्षा से बहिष्कृत है। यह सब "धर्मनिरपेक्षता" के नाम पर किया जाता है। तर्क दिया जाता है कि यदि इन्हें पाठ्य-क्रमों का हिस्सा बनाया जाएगा तो बाइबिल, कुरान, हदीस को भी शामिल करना पड़ेगा।

जब वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, नीतिशतक को धर्मपुस्तक का आदर देने की बात हो तो इन्हें गल्प साहित्य मानकर मनमाने आलोचना का शिकार बनाया जाता है। अपनी मूल्यवान थाती का ऐसा निरादर शायद ही दुनिया में कहीं और हुआ हो। भारत में हिंदू ग्रंथों के साथ हो रहे इस दोहरे अन्याय को ईसाइयत के उदाहरण से अच्छी तरह समझा जा सकता है। सुपरस्टार के रूप में जीसस क्राइस्ट और द विंसी कोड जैसे उदाहरणों से स्पष्ट है यूरोपीय अमेरिकी समाज बाइबिल और ईसाई कथा-प्रसंगों की आलोचनात्मक व्याख्या सहता है, साथ ही ईसाइयत का पूरा चिंतन, चर्च और वेटिकन के विचार-भाषण-प्रस्ताव आदि यूरोप की शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग भी हैं और वह औपचारिक शिक्षा की प्रणाली से बाहर नहीं है।

ईसाइयत संबंधी धर्मशिक्षा पश्चिम में उसी तरह स्थापित हैं जैसे भौतिकी, रसायन या अर्थशास्त्र आदि हैं। इन्हें पढ़कर हजारों युवा उसी तरह वहां के कालेजों, विश्वविद्यालयों से हर वर्ष स्नातक होते हैं जैसे कोई अन्य विषय पढ़कर। तदनुरूप उनकी विशिष्ट पत्र-पत्रिकाएं, सेमिनार सम्मेलन आदि भी होते हैं। ईसाइयत संबंधी विमर्श, शोध, चिंतन के अकादमिक जर्नल्स आक्सफोर्ड और सेज जैसे प्रमुख अकादमिक प्रकाशनों से प्रकाशित होते हैं। ऐसा इक्का-दुक्का नहीं, बल्कि अनगिनत होता है।

यदि यूरोपीय जगत ईसा और ईसाइयत की कथाओं और ग्रंथों की आलोचनात्मक व्याख्या को स्थान देता है तो साथ ही धर्मग्रंथों के संपूर्ण अध्ययन को एक विषय के रूप में सम्मानित आसन भी देता है। स्वयं वेंडी डोनीजर शिकागो विश्वविद्यालय के "डिविनिटी स्कूल" में प्रोफेसर हैं। हालांकि भारतीय विश्वविद्यालयों में ऐसा कोई विभाग ही नहीं होता।

भारत में इसके ठीक विपरीत धर्म और उसके नाम पर सभी हिंदू ग्रंथों और चिंतन के अगाध भंडार को औपचारिक शिक्षा से बाहर रखा गया है। यहां यह जानने योग्य है कि मैक्सवेबर जैसे महान विद्वान ने भी भगवद्गीता को राजनीति और नैतिकता के अंत:संबंध पर पूरे विश्व में एकमात्र सुसंगत पाठ्यसामग्री माना है, किंतु क्या मजाल कि भारत में राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थियों को इसे पढ़ाने की अनुमति दी जाए। यह तो एक उदाहरण है।

वास्तव में यहूदी, ईसाइयत और इस्लाम की तुलना में हिंदू चिंतन कहीं ज्यादा गहन है। समाज विज्ञान का कोई भी ऐसा विषय नहीं है जिसके समुचित अध्ययन के लिए हमें हिंदू ग्रंथों से मदद न मिल सके। इस सबके बावजूद समाज विज्ञान विभागों में या फिर अलग विधा के विषय के रूप में भारत में कोई अकादमिक संस्थान या स्थान नहीं बनाया गया है।

यही कारण है कि गीता प्रेस, गोरखपुर के संपूर्ण कार्यो को अकादमिक जगत उपेक्षा से देखता है। मानो वह आधुनिक समाज से कटे हुए वृद्ध पुरुषों-महिलाओं और अशिक्षितों के पढ़ने के लिए सतही व अंधविश्वासी चीजें हों।

https://bit.ly/35ZSDAQ

यदि इन बातों पर सगग्रता में विचार किया जाए तो पाएंगे कि आजाद भारत में हिंदू मनीषा के साथ किस तरह दोहरा अन्याय हुआ है। यहां यह कहना गलत न होगा कि ऐसा करने के लिए आजाद भारत के शासकों और नीति-निर्माताओं ने जनता से कभी कोई जनादेश तो लिया नहीं है। यह सब चुपचाप एक चिरस्थापित औपनिवेशिक मानसिकता के तहत अभी तक चल रहा है। भारतीयों पर यह मानसिकता हजारों वर्षो की गुलामी में विदेशी शासकों ने जबरन थोपी। जिसमें हर स्वदेशी चीज खराब मानी जाती है और हर पश्चिमी चीज अच्छी।

पश्चिमी लेखक वेंडी डोनीजर को सम्मान और भारतीय हनुमान प्रसाद पोद्दार का बहिष्कार इसका स्पष्ट प्रमाण है।

लेखक : डॉ. शंकर शरण

Saturday 5 December 2020

शोभा डे

 पढने  लायक 

बहुत अच्छा, मनन योग्य व सटीक सन्देश। धन्यवाद डॉ जोशी जी।  शोभा डे का स्तर कितना गिरा हुआ है यह उनकी मान्यता से पता चल जाता है। सन्देश में निहित तर्कों का जवाब वे क्या उनके बाप भी नहीं दे सकते हैं, जिन्हें खुश करने के लिए पैसा लेकर इस निम्न कोटि की महिला ने ऐसा कहने का दुस्साहस किया। इनका सौभाग्य यही है कि ये सनातन भारत मे रह रही हैं। क्या पाकिस्तान, चीन या मुस्लिम देशों में रहकर ये व इसके जैसे घटिया लोग ऐसा कहने की हिम्मत कर सकते हैं। दुर्भाग्य यह है कि अधिकांश लोग या तो ऐसे सन्देश पढ़ते नहीं, आधा अधूरा पढ़ते हैं तथा यह सोच कर तटस्थ हो जाते हैं कि हमें क्या लेना देना। अन्यों को अग्रेषित करने की बात तो दूर है।

इसी विषय में एक सवाल :-

शोभा डे नाम की एक प्रख्यात लेखिका की टिप्पणी - 

"मांस तो मांस ही होता है,

चाहे गाय का हो,

या बकरे का, 

या किसी अन्य जानवर का......।

फिर,

हिन्दू लोग जानवरों के प्रति अलग-अलग व्यवहार कर के

क्यों ढोंग करते है कि बकरा काटो,

पर, गाय मत काटो ।

ये उनकी मूर्खता है कि नहीं......?"

जवाब -1.

बिल्कुल ठीक कहा शोभा जी आप ने ।

मर्द तो मर्द ही होता है, 

चाहे वो भाई हो, 

या 

पति, 

या 

बाप, 

या 

बेटा । 

फिर, तीनो के साथ आप अलग-अलग व्यवहार क्यों करती हैं ?

*क्या सन्तान पैदा करने, या यौन-सुख पाने के लिए पति जरुरी है ?*

भाई, बेटा, या बाप के साथ भी वही व्यवहार किया जा सकता है, जो आप अपने पति के साथ करती हैं ।

ये आप की मूर्खता और आप का ढोंग है कि नहीं.....?

जवाब-2.

घर में आप अपने बच्चों और अपने पति को खाने-नाश्ते में दूध तो देती ही होंगी, या चाय-कॉफी तो बनाती ही होंगी...!

जाहिर है, वो दूध गाय, या भैंस का ही होगा ।

तो, क्या आप कुतिया  का भी दूध उनको पिला सकती हैं, या कुतिया के दूध की भी चाय-कॉफी बना सकती हैं..?

क्यों नही ? दूध तो दूध है , चाहे वो किसी का भी हो..!

ये आप की मूर्खता और आप का ढोंग है कि नहीं......?

प्रश्न मांस का नहीं, आस्था और भावना का है ।

जिस तरह, भाई, पति, बेटा, बेटी, बहन, माँ, आदि रिश्तों के पुरुषों-महिलाओं से हमारे सम्बन्ध मात्र एक पुरुष, या मात्र एक स्त्री होने के आधार पर न चल कर भावना और आस्था के आधार पर संचालित होते हैं, उसी प्रकार गाय, बकरे, या अन्य पशु भी हमारी भावना के आधार पर व्यवहृत होते हैं ।

जवाब - 3.

एक अंग्रेज ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा - "सब से अच्छा दूध किस जानवर का होता है ?"

स्वामी विवेकानंद - 

"भैँस का ।"

अंग्रेज - 

"परन्तु आप भारतीय तो गाय को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं न.....?"

स्वामी विवेकानन्द कहा - 

"आप ने "दूध" के बारे मे पुछा है जनाब, "अमृत" के बारे में नहीं,

और दूसरी बात, 

आप ने जानवर के बारे मेँ पूछा था । गाय तो हमारी 'माता' है, कोई जानवर नहीं ।"

"Save tiger" कहने वाले समाज सेवी होते हैं 

और 

"Save Dogs" कहने वाले पशु प्रेमी होते हैं ।

तब,

"Save Cow" कहने वाले कट्टरपन्थी कैसे हो गये.....?

इसका जवाब अगर किसी के पास हो, तो बताने की ज़रूर कृपा करे ।


मोदी तेरे राज में !!!

मायावती को समझ नहीं आ रहा है कि वो रोये या हंसे.....

सुप्रीम कोर्ट ने 11000 करोड लौटाने को बोला है...

फैसला मोदी राज में आया लेकिन वो केस अखिलेश ने ही ठोका था.....


एक जमाना था जब जनता आंदोलन करती थी और.... नेता घर बैठ के मजे लेते थे।

मगर आज मोदी जी ने ऐसी परिस्थिती कर दी है कि .... भ्रष्ट नेता आंदोलन कर रहे हैं और ..... जनता शांत बैठकर घर पर मजे ले रही है..... इसे कहते हैं अच्छे दिन...


 विदेश के नेता मोदी के पीछे पागल हैं,और.... भारत के नेता मोदी के कारण पागल हैं !!

...कोई शक ...


केवल फेवीकोल ही नहीं जोड़ता है ..... मोदी का डर भी जोड़ता है ... महाठगबंधन


चौकीदार को वोट देना पक्का नहीं था.... लेकिन जिस तरह से चोरों को इकठ्ठा होते हुए देखा तो निर्णय कर लिया कि .... चौकीदार रखना ही जरूरी है।


 गद्दारी के किले ढह गए ..... राष्ट्रवाद की तोप से।

सांप - नेवले एक हो गए मोदी तेरे खौफ से।

....देश बेचने वाले एक हो सकते हैं .. तो... देश बचाने वाले क्यों नहीं एक हो सकते??


1977 की इमर्जेंसी,  1984 का सिक्खों का नर संहार , 1990 में कश्मीरी हिंदु नरसंहार तक संविधान सुरक्षित था .... मगर 5 वर्षों में 1300 आतंकीयों के मरने से संविधान खतरे में आ गया ?


जिस प्रियंका वाड्रा को कांग्रेसी मां दुर्गा का अवतार बता रहे हैं, उसके बच्चों का नाम... 'रेहान और मारिया' हैं 

सोचा सबको बता ही दें! 


भाजपा का विरोध करने वाले 22 दलों की कुल पारिवारिक संपत्ति सिर्फ ...₹300 लाख करोड़ है जो कि देश के 10 साल के बजट के बराबर  है। .. सोचा बता ही  दूं..

 

विपक्ष का सेना से नफरत का आलम देखें .....एक भी विपक्षी नेता ने URI फ़िल्म की तारीफ नहीं की है 

 

जिसका पति रोज ED,CBI के चक्कर लगा रहा हो,  वह कह रही है कि ..... हमारी सरकार बनने पर भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म किया जायेगा 

 

शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अपनी 100 Cr की आय खेती से घोषित की है।

आय -   100 करोड़ 

खेत -   10 एकड़

.... रामजाने वो क्या उगा रहीं थी  


वाड्रा के 8 महंगे बंगले लंदन में और ..... भारत में 3 अरब की जमीन ...     काँन्ग्रेस शुरू से ही है भ्रष्टाचार ....की मशीन


2013 : पेट्रोल 83 रु लीटर .... और अरबों का तेल कम्पनियों पर कर्ज!

2019 : पेट्रोल 80 रु लीटर और .... तेल कम्पनियों पर ZERO कर्ज  मोदी🙏🙏

..... नेत्र बन्द करे और सोचें महागठबन्धन में सबसे भ्रष्ठ नेता कौन है ..... यकीन मानिये इतने चेहरे सामने आयेंगे कि आप कन्फयूज हो जायेंगे और ये भी सोचिये मोदी नही तो कौन |


 Zakir Naik को अगर इज़्ज़त से वापस बुलाना हो तो ...राहुल को वोट दो 

घसीट के लाना हो तो... भाजपा को 


एक आतंकी की मौत पर कांग्रेसी इतना रोते हैं कि....  ...आतंकी का बाप भी सोच में पड़ जाता है कि.... लडका मेरा मरा था या इनका!!


मुझे यह पोस्ट बहुत ही मजेदार और मिर्च मसालेदार लगा। 


मोदी है तो मुमकिन है