Wednesday 9 December 2020

कॉरपोरेट मिशनरी

कॉरपोरेट मिशनरी

बहुत ही ज्वलंत और चिंताजनक मुद्दा है यह।

क्या आप जानते है भारत में सबसे बड़ा कॉर्पोरेट कौन है?

टाटा ? नहीं। 

अम्बानी ? नहीं।

अदानी ? नहीं।

चौंकिए मत और आगे पढ़िए।

3,00,000 लाख करोड़ सम्पति वाला कोई और नहीं यह है , The_Syro_Malabar_Church_केरल।

इसका 10000 से ज्यादा संस्थानों पर कण्ट्रोल है और इसकी अन्य बहुत सी सहायक ऑर्गेनाइजेशन्स भी हैं।

मेरी समझ में यह एक ऐसा छद्म बिज़नेस ऑर्गेनाइजेशन है, जो सम्पत्ति के मामले में भारत में टाटा, अम्बानी आदि का मुकाबला करने में सक्षम है। ये सारे औद्योगिक घराने इसके आसपास भी नहीं हैं। 

यकीन नहीं हो रहा है ना ,,,,? 

तो ठीक है,ये आंकडे देखिए।

इनके अधीन 

  • 9000 प्रीस्ट
  • 37000 नन
  • 50 लाख चर्च मेम्बर
  • 34 Dioceses
  • 3763 चर्च
  • 71 पादरी शिक्षा संस्थान
  • 4860 शिक्षा संस्थान
  • 2614 हॉस्पिटल्स और क्लिनिक
  • 77 ईसाई शिक्षा संस्थान
  • कुल मिलकर 11000 छोटे बड़े संस्थान।
  • इनके ऊपर सबसे शक्तिशाली चर्च है CMA

CMA के अन्दर ही 1514 संस्थान आते हैं। जिनमें देश भर में फैले स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल और अनाथालय हैं।

चर्च के 50 ऐसे ऑर्गेनाइजेशन हैं जो स्टॉक मार्केट में लिस्टेड हैं।

अगर आप इस चर्च का सालाना टर्न ओवर देखेंगे तो  कोई भी कंपनी इनके आसपास भी नहीं फटकती है।

पूरे भारत में चर्च की पहुऺच गांवों तक है और विदेशों में भी इसके सहयोगी संस्थान हैं। 

इस चर्च के सारे सदस्य मलेशिया के हैं। पूरी मनेजमेंट टीम भी मलेशिया की ही है।

इसके अध्यक्ष को मेजर आर्चबिशप कहा जाता है।

Synod इस चर्च की सबसे ताकतवर कमेटी है, इसका मुखिया बिशप ही होता है।

The SYRO मालाबार चर्च दुनिया के कैथोलिक इसाईयत का सबसे शक्तिशाली विंग है, जिसका ओहदा उसकी अपनी सम्पत्ति की वजह से है।

अब क्योंकि यह माइनॉरिटी संस्थान है। इसलिए यह इनकम टैक्स भी नहीं देता है और सरकार इसकी सम्पति का ब्यौरा भी नहीं देख सकती है।

इस वजह से इसकी वास्तविक सम्पति किसी को पता भी नहीं है।

इनका ऑडिट भी नहीं हो सकता।

अल्पसंख्यक के नाम पर यह बहुत बड़ा गोरखधंधा भारत में चल रहा है। यह एक प्रकार का ईस्ट इंडिया कम्पनी जैसा ही कारोबार है l

लेकिन बिडम्बना यह है कि सरकार इसके सामने अपने ही संविधान से असहाय है।

इसके पास जो  जमीनें हैं उसका भी सरकारों के पास कोई व्यवस्थित लेखा-जोखा नहीं है l अगर किसी एक के खिलाफ कोई कोर्ट जाता है तो हज़ारों खड़े हो जाते हैं जैसे रक्तबीज हों।

इनकी सारी सम्पति का लगभग 50% तो सिर्फ शिक्षा संस्थानों के पास है।

जहाँ हिन्दुओं के बच्चे  महंगी फीस देकर पढ़ते हैं, यही पैसा लोगों को कन्वर्ट करने में, साधुओं की हत्या प्लानिंग में, नक्सलवाद में और ना जाने कितनी ही अन्य साजिशों में उपयोग हो रहा है..,,,,,,, l

उल्लेखनीय है कि हिन्दू संस्थाओं द्वारा संचालित स्कूलों पर टैक्स भी लगता है और RTE जैसे कानून भी लगते हैं, जो की कान्वेंट स्कूल पर लागु नहीं हैं।

उन स्कूलों की फीस इन कॉन्वेंट स्कूलों के मुकाबले *कुछ अधिक हो सकती है। हर बड़े शहरों में स्कूल भी नहीं बना सकते क्योंकि चर्च की तरह उनके पास प्रत्येक गांव, कस्बे और शहर में जमीनें भी नहीं होंगी। आपको ऐसे स्कूलों के लिए थोडा दूर भी जाना पड़ सकता है।

लेकिन आपका हर कदम आने वाली पीढ़ी के कदमों को इस देश में मजबूती से जमाएगा l

अब निर्णय आपका है।

ये स्वम् हिन्दुओं को समझना चाहिए की उनका पैसा ही एक दिन उनकी आने वाली पीढ़ियों को निगल ना जाये।

यह एक गंभीर विषय है।


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