Sunday 29 January 2017

मन्त्रों का विज्ञान से नाता है क्या ?

ॐ 🚩🚩
मन्त्रों का विज्ञान से नाता है क्या ?

ज्यादातर लोग आजकल मन्त्र तंत्र आदि में विश्वास नहीं करते, इसकी वजह है आज का विज्ञान.. दूसरी वजह है मंत्रो के बारे में  हद से ज्यादा कल्पनातीत कहानियों का बनाया जाना । अब लोगों को लगता है कि अगर मन्त्र से ये होता है तो ये करके दिखाओ, या वो करके दिखाओ या बॉर्डर पर जाकर मन्त्रों से लड़ो आदि आदि।

पहले तो ये कहना अच्छा होगा कि मन्त्रों का प्रयोग हिन्दू(सिख आदि सभी) ही नहीं मुस्लिम और ईसाई के साथ बौद्ध भी करते हैं। खैर, 

कभी आपने सोचा है कि शब्दों से बने कुछ गानों पर आपके अंदर अलग अलग ऊर्जा जागती है या नहीं ? चलो ठीक है रोमांटिक गाने से प्रेम का भाव आता है ? दुःख के गानों से अचानक सबकुछ नीरस सा लगने लगता है ? अच्छा कुछ ऐसे गाने जो आपको पसंद ना हो तो सरदर्द भी करने लगता है और आप चीख पड़ते है कि .. बंद करो ये गाना... पर आपके अंदर इतने तरह की अलग अलग ऊर्जा सिर्फ शब्दों की वजह से क्यों पैदा हो जाती है ? सकारात्मक भी और नकारात्मक भी।


ये सब शब्दों का कमाल होता है,  उस शब्द ने जो ऊर्जा पैदा की है उससे आप प्रभावित होते हैं.. ।। शब्दों को उच्चारण करने से हवा में तरंग बनती है... तरंगों का झुण्ड किस तरफ जायेगा. .. कैसी शक्तियों से मिलेगा ये उस तरंग के प्रकार पर निर्भर है।

ये तो मानते हैं ना कि शब्द जो है वो ध्वनि पैदा करता है... ध्वनि देखा नहीं जाता लेकिन होता है ? ? विज्ञानं ही तो बता रहा हूँ.. तेज ध्वनि में तो इतनी ताकत होती है घरों के शीशे टूट जाते हैं.. कान के परदे फट जाते हैं.. तो क्या आपने देखा कि कान के परदे फाड़ने वाली ध्वनि कैसी थी ? दीखता तो वो अपने इस प्रचंड रूप में भी नहीं है।।

अगर कोई ध्वनि आपके कान के परदे फाड़ सकता है तो आपको बेहोश नहीं कर सकता ? बाजार में "mosquito repeller" नाम से एक यंत्र मिलता है.. उसको लाइए. . घर में लगा दीजिये... उससे एक सीमित मात्रा में एक ख़ास ध्वनि निकलती है जो आपको सुनाई नहीं देगी पर सारे मच्छर भाग जायेंगे... उसको सुनाई पड़ता है और वो बरदाश्त नहीं कर पाता। ध्वनि का प्रभाव है तो.. भई विज्ञान की बात कर रहा हूँ मैं...

मन्त्रों से आपको बेहोश किया जा सकता है.. मन्त्रों से पानी को अलग तरह का बनाया जा सकता है और खाने को भी.. अच्छा और बुरा दोनों... ध्वनि की तरंगें वातावरण के अच्छे और बुरे प्रभाव को सोखती हैं... अपने में मिलाती है या भगा देती है.. या उसकी दिशा मोड़ कर आपके तरफ लाती है किसी दूसरे के ऊपर छोड़ देती है...

ये शून्य.. ये हवा.. कोई रिक्त स्थान नहीं है... आपको दीखता नहीं वो अलग बात है पर उसी रिक्त या अदृश्य या खाली सी जगह .. पर मन्त्र काम करता है क्योंकि आँखों के ना देख पाने की वजह से जिस चीज का उपयोग हम नहीं कर पा रहे उस चीज से हम मन्त्रों के माध्यम से संवाद करते हैं।

बाकी ये सब एक ज्ञान का विषय है कि कौन से शब्द .. कौन सी ध्वनि.. कैसा उच्चारण... होना चाहिए... इसके जानकार कौन हैं... कहाँ है... कितने लोग ऐसे आज बचे हैं... और फिर वही बात है कि इससे सबकुछ नहीं होता , थोड़ा बहुत होता है.. फिर मंत्र है कोई गोली बम नहीं कि उठाया और पटक दिया. .. समय लगता है.. उच्चारण होता है.. उसे साधना पड़ता है ... बाकी तो ऐसा है कि मानिए या ना मानिए.. कोशिश थी विज्ञानं की दृष्टि से समझाने की.
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

Tuesday 24 January 2017

भारत के प्राचीन साहित्य की सत्यता

अगर हिंदू धर्म 

(1) तो क्यो 
"नासा-के-वैज्ञानीको" 
       ने माना की 
     सूरज 
            से 
       ""
          " ॐ "
      "  " 
की आवाज निकलती है?

(2) क्यो 'अमेरिका' ने
   "भारतीय - देशी - गौमुत्र"  पर 
            4 Patent लिया ,
व, 
कैंसर और दूसरी बिमारियो के
लिये दवाईया बना रहा है ? 
जबकी हम 
       "  गौमुत्र  "
             का महत्व 
हजारो साल पहले से जानते है,

(3) क्यो अमेरिका के 
'सेटन-हाल-यूनिवर्सिटी' मे 
        "गीता" 
  पढाई जा रही है?

(4) क्यो इस्लामिक देश  'इंडोनेशिया'.       के Aeroplane का नाम
"भगवान नारायण के वाहन गरुड" के नाम पर  "Garuda Indonesia"  है, जिसमे  garuda  का symbol भी है?

(5) क्यो इंडोनेशिया के
      रुपए पर  
"भगवान गणेश"  
  की फोटो है?

(6) क्यो  'बराक-ओबामा'  हमेशा अपनी जेब मे 
    "हनुमान-जी"  
की फोटो रखते है? 

(7) क्यो आज
         पूरी दुनिया  
 "योग-प्राणायाम" 
      की दिवानी है? 

(8) क्यो  भारतीय-हिंदू-वैज्ञानीको"
                           ने 
            ' हजारो साल पहले ही '  
                  बता दिया  की 
             धरती गोल है ? 
   
(9) क्यो जर्मनी के Aeroplane का 
    संस्कृत-नाम 
  "Luft-hansa"  
                है ? 

(10) क्यो हिंदुओ के नाम पर  'अफगानिस्थान'  के पर्वत का नाम
      "हिंदूकुश"  है? 
(11) क्यो हिंदुओ के नाम पर
     हिंदी भाषा, 
      हिन्दुस्तान, 
        हिंद महासागर
      ये सभी नाम है? 

(12) क्यो  'वियतनाम देश'  मे
   "Visnu-भगवान"  की 
4000-साल पुरानी मूर्ति पाई
गई?

(13) क्यो अमेरिकी-वैज्ञानीक
                 Haward ने, 
            शोध के बाद माना - 
                        की  
                       
 "गायत्री मंत्र मे  " 110000 freq " 
                    
                   के कंपन है? 
                      
(14) क्यो  'बागबत की बडी मस्जिद के इमाम'  
          ने 
     "सत्यार्थ-प्रकाश"  
 पढने के बाद हिंदू-धर्म अपनाकर,
        "महेंद्रपाल आर्य"  बनकर, 
हजारो मुस्लिमो को हिंदू बनाया,
       और वो कई-बार  
      'जाकिर-नाईक' से 
  Debate के लिये कह चुके है,
मगर जाकिर की हिम्म्त नही हुइ,

(15) अगर हिंदू-धर्म मे  
       "यज्ञ"  
            करना 
       अंधविश्वास है, 
तो ,
क्यो  'भोपाल-गैस-कांड'   मे, 
जो    "कुशवाह-परिवार"  एकमात्र बचा, 
जो उस समय   यज्ञ   कर रहा था,

(16) 'गोबर-पर-घी जलाने से' 
"१०-लाख-टन आक्सीजन गैस" 
                      बनती है, 
                   
(17) क्यो "Julia Roberts"
(American actress and producer) 
                     ने हिंदू-धर्म 
            अपनाया और
              वो हर रोज 
           "मंदिर"
                जाती है,
  
 (18) 
               अगर  
 "रामायण" 
              झूठा है,
तो क्यो दुनियाभर मे केवल 
            "राम-सेतू" 
के ही पत्थर आज भी तैरते है?

(19) अगर  "महाभारत"  झूठा है, 
तो क्यो भीम के पुत्र ,
       ''घटोत्कच'' 
का विशालकाय कंकाल,
      वर्ष 2007 में 
'नेशनल-जिओग्राफी' की टीम ने,
'भारतीय-सेना की सहायता से' 
उत्तर-भारत के इलाके में खोजा? 

(20) क्यो अमेरिका के सैनिकों को,
अफगानिस्तान (कंधार) की एक
गुफा में ,
5000 साल पहले का,
 महाभारत-के-समय-का 
       "विमान"   
      मिला है?

ये जानकारिया आप खुद google मे search कर
सकते है . .....
Plz aapke sabhi group me send kare plz

हनुमान चालीसा में एक श्लोक है:-
जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु |
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ||
अर्थात हनुमानजी ने 
एक युग सहस्त्र योजन दूरी पर 
स्थित भानु अर्थात सूर्य को 
मीठा फल समझ के खा लिया था |

1 युग = 12000 वर्ष
1 सहस्त्र = 1000
1 योजन = 8 मील

युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील

1 मील = 1.6 किमी
96000000 x 1.6 = 1536000000 किमी 

अर्थात हनुमान चालीसा के अनुसार
सूर्य पृथ्वी से 1536000000 किमी  की दूरी पर है | 
NASA के अनुसार भी सूर्य पृथ्वी से बिलकुल इतनी ही दूरी पर है| 

इससे पता चलता है की हमारा पौराणिक साहित्य कितना सटीक एवं वैज्ञानिक है , 
इसके बावजूद इनको बहुत कम महत्व दिया जाता है |
 .
भारत के प्राचीन साहित्य की सत्यता को प्रमाणित करने वाली ये जानकारी अवश्य शेयर करें |
🚩🙏जय श्रीहरिः🙏🚩

दाह संस्कार

हिंदू दाह संस्कार पर क्यों पाबंदी चाहते हैं केजरीवाल?


 नीचे दायीं तस्वीर दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन की है। इन्होंने ही लकड़ी पर शवदाह पर पाबंदी का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है।

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार अब हिंदू तरीके से शवों के अंतिम संस्कार पर पाबंदी चाहती है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने कहा है कि शवों को जलाने से प्रदूषण फैलता है। इसलिए ये तरीका बंद होना चाहिए। इसके बजाय सीएनजी या बिजली का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इमरान हुसैन ने इस बारे में केंद्र सरकार को एक पत्र भी लिख डाला है। इसमें उन्होंने दिल्ली में शवों के दाह संस्कार को प्रदूषण के लिए बड़ा कारण बताया है। जबकि वैज्ञानिक तौर पर यह साबित हो चुका है कि शवों को जलाने के मुकाबले उन्हें कब्रिस्तान में गाड़ने से ज्यादा प्रदूषण फैलता है। दिल्ली सरकार को प्रदूषण कम करने के लिए सबसे पहले हिंदुओं के तरीके पर ही नजर क्यों गई?


शवदाह में लकड़ी इस्तेमाल पर बैन!

दिल्ली सरकार ने इस बारे में अपनी तरफ से कोशिश शुरू भी कर दी है। इमरान हुसैन ने केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनिल दवे को चिट्ठी लिखकर कहा है कि हिंदू तरीके से दाह संस्कार करने पर हवा में कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन मोनो ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें फैलती हैं। साथ ही हवा में तैरने वाले कणों पीएम 2.5 और पीएम 10 का लेवल बढ़ जाता है। ऐसे में लकड़ी पर शवदाह पर पाबंदी होनी चाहिए। इसके बजाय सीएनजी या बिजली का इस्तेमाल शवों को जलाने के लिए करना ठीक होगा।

‘दिल्ली ही नहीं देशभर में पाबंदी लगे’

इमरान हुसैन ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि लकड़ी पर अंतिम संस्कार सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। उन्होंने इस बारे में एक तकनीकी कमेटी बनाकर नीति तय करने की मांग की है। साथ ही कहा है कि शवदाह के दूसरे तरीके ढूंढने के लिए केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड और दूसरी संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंपी जाए। अगर ऐसा किया गया तो दिल्ली ही नहीं बल्कि देश भर में वायु प्रदूषण के स्तर में काफी सुधार आएगा।


क्या हिंदू शवदाह से ही प्रदूषण होता है?

यह बात सही है कि दाह संस्कार के लिए काफी लकड़ी इस्तेमाल होती है, जिसके लिए पेड़ कटते हैं। शव को जलाने से उठने वाला धुआं भी प्रदूषण का कारण बनता है। लेकिन यह बात भी सही है कि शवों के अंतिम संस्कार के दुनिया भर में प्रचलित तरीकों में शव को जलाने का तरीका ही सबसे वैज्ञानिक और कम प्रदूषण वाला है। मुसलमानों और ईसाइयों में शव को दफनाया जाता है, जो वास्तव में ज्यादा खर्चीला और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला होता है। तो सवाल ये है कि केजरीवाल सरकार को प्रदूषण के लिए सबसे पहले हिंदू तरीके की ही याद क्यों आई?

ज्यादा प्रदूषण फैलाता है शव दफनाना

दुनिया भर में अंतिम संस्कार के तीन तरीके हैं- 1. शवदाह 2. शव को दफनाना और 3. शवों को खुला छोड़ देना या पानी में बहा देना। जब किसी शव को जमीन में गाड़ते हैं तो उसके सड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस दौरान उसका pH बैलेंस बहुत अधिक होता है, जिससे शरीर के अच्छे तत्व बाहर नहीं निकल पाते। शरीर के तत्वों के विघटित होने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है जिससे बहुत अधिक बदबू पैदा होती है। आप किसी भी कब्रिस्तान के आसपास जाएं, वहां हवा में आपको अजीबोगरीब बदबू हर वक्त महसूस होगी।

जुआन कैरोल क्रूज़ ने 1977 में आई अपनी किताब The Incorruptibles: A Study of the Incorruption of the Bodies of Various Catholic Saints and Beati में लिखा है कि गहराई में दफनाने के बावजूद भी शवों के सड़ने की भयंकर बदबू शहरी कब्रिस्तानों के आसपास फैली रहती है। ये वो गैसें होती हैं जो आसपास रहने वालों के स्नायु तंत्र (nerves system) पर बुरा असर डालती हैं। कब्रिस्तानों की जमीन में सोडियम की मात्रा 200 से 2000 गुना अधिक होती है, जिससे पेड़-पौधों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। यही कारण है कि कब्रिस्तान में कुछ खास तरह के पेड़-पौधे ही पनप पाते हैं। मृत शरीर सड़ने पर जमीन में कई तरह के बैक्टीरिया और जानलेवा टॉक्सिन बन जाते हैं। जो ग्राउंड वॉटर में मिलकर भयानक बीमारियां पैदा करते हैं। कैंसर के कई मरीजों के शरीर में बोटूलिनम (Botulinum) नाम का टॉक्सिन पाया गया है जो कब्रिस्तान के आसपास की जमीन से निकले पानी के जरिए शरीर में पहुंचता है। इसके अलावा आर्सेनिक, फार्मेल्डिहाइड, मर्करी, कॉपर, लेड और जिंक जैसे तत्व भी शरीर से बाहर आते हैं जो ग्राउंड वाटर में जहर की तरह घुल जाते हैं।

दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण कब्रिस्तान

दिल्ली में 2013 के आंकड़ों के मुताबिक 100 से ज्यादा छोटे-बड़े मुस्लिम कब्रिस्तान हैं। सीलमपुर और कुंडली में सरकार ने कब्रिस्तान के लिए नई जमीनें भी अलॉट की हैं, क्योंकि पुराने कब्रिस्तानों में जगह कम पड़ रही थी। इसके अलावा ईसाइयों के 11 कब्रिस्तान भी हैं। इस तरह से शहरी जमीन का एक बड़ा हिस्सा कब्रिस्तानों के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। इनके आसपास रहने वाले लोगों को यहां की जहरीली हवा और पानी का शिकार होना पड़ता है। इसके मुकाबले हिंदुओं की इतनी बड़ी आबादी का काम निगमबोध, लोधी रोड और गाजीपुर जैसे 5-6 शवदाह स्थलों से काम चल जाता है। ये भी आम तौर पर यमुना के किनारे की खुली जगहों पर बने हैं, जिससे धुएं के कारण किसी को दिक्कत भी नहीं होती। आजकल दाह संस्कार की लकड़ी भी ज्यादातर फर्नीचर या दूसरे सामान बनाने में बेकार बचा हुआ हिस्सा ही होती है। इसके अलावा हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग खुद ही सीएनजी से शवदाह के लिए तैयार होने लगा है। फिर भी जो लोग लकड़ी पर शवदाह करते हैं उनके पीछे बड़ा कारण धार्मिक आस्था और मान्यताएं होती हैं। सवाल ये है कि क्या दिल्ली सरकार ऐसे करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक भावना को चोट पहुंचाते हुए शवदाह पर पाबंदी क्यों लगाना चाहती है? दूसरी तरफ मुसलमानों और ईसाइयों के लिए कब्रिस्तान की नई-नई जमीनें उपलब्ध कराई जा रही हैं।

पूरी दुनिया में बढ़ रहा है शवदाह का चलन

इंटरनेशनल क्रेमेशन स्टैटिस्टिक्स 2008 के दुनिया भर में भारत में शवों को जलाने का चलन बढ़ रहा है। जापान में लगभग 100 फीसदी, भारत में 85 फीसदी, चीन में 46 फीसदी, ताइवान में 93 फीसदी लोगों के शव जलाए गए। दूसरी तरफ यूरोपीय देशों में जहां पहले शवदाह का प्रतिशत 72 फीसदी तक पहुंच चुका है। 1960 में ये सिर्फ 35 फीसदी हुआ करता था। फ्रांस में तो सरकार बाकायदा लोगों को शवदाह के लिए बढ़ावा दे रही है क्योंकि शव दफनाने के लिए जमीन कम पड़ रही है। आज वहां लगभग आधे लोग शवदाह ही पसंद करते हैं। 1960 में यह आंकड़ा सिर्फ 3.5 फीसदी हुआ करता था। विदेशों में शवदाह के अलग-अलग तरीके प्रचलित हैं, इनमें सबसे बड़ा तरीका लकड़ी या दूसरी ज्वलनशील चीजों पर शव को रखकर जलाने का ही है

Monday 23 January 2017

सुभाष चन्द्र बोस

🚩सुभाष चन्द्र बोस जयंती - 23 जनवरी 

🚩आइये जानते हैं वीर क्रांतिकारी सुभाषचन्द्र बोस का इतिहास..!!
https://youtu.be/kjqucErgPEY

🚩नेताजी #सुभाषचन्द्र_बोस का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे मगर बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। उन्होंने कटक की महापालिका में लम्बे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था। प्रभावती देवी के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था। दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन परिवार माना जाता था। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरद चन्द्र से था। शरदबाबू प्रभावती और जानकीनाथ के दूसरे बेटे थे। सुभाष उन्हें मेजदा कहते थें। शरदबाबू की पत्नी का नाम विभावती था।

🚩शिक्षादीक्षा से लेकर आईसीएस तक का सफर..!!

🚩कटक के प्रोटेस्टेण्ट यूरोपियन स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर 1909 में उन्होंने रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में दाखिला लिया। कॉलेज के प्रिन्सिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का सुभाष के मन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में सुभाष ने विवेकानन्द साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। 1915 में उन्होंने इण्टरमीडियेट की परीक्षा बीमार होने के बावजूद द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1916 में जब वे दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) में बीए के छात्र थे किसी बात पर प्रेसीडेंसी कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच झगड़ा हो गया सुभाष ने छात्रों का नेतृत्व संभाला जिसके कारण उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज से एक साल के लिये निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया। 49वीं बंगाल रेजीमेण्ट में भर्ती के लिये उन्होंने परीक्षा दी किन्तु आँखें खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिये अयोग्य घोषित कर दिया गया। किसी प्रकार स्कॉटिश चर्च कॉलेज में उन्होंने प्रवेश तो ले लिया किन्तु मन सेना में ही जाने को कह रहा था। खाली समय का उपयोग करने के लिये उन्होंने टेरीटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और फोर्ट विलियम सेनालय में रँगरूट के रूप में प्रवेश पा गये। फिर ख्याल आया कि कहीं इण्टरमीडियेट की तरह बीए में भी कम नम्बर न आ जायें सुभाष ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और 1919 में बीए (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था।

🚩पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने पिता से चौबीस घण्टे का समय यह सोचने के लिये माँगा ताकि वे परीक्षा देने या न देने पर कोई अन्तिम निर्णय ले सकें। सारी रात इसी असमंजस में वह जागते रहे कि क्या किया जाये। आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड चले गये। परीक्षा की तैयारी के लिये लन्दन के किसी स्कूल में दाखिला न मिलने पर सुभाष ने किसी तरह किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु उन्हें प्रवेश मिल गया। इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गयी। हाल में एडमीशन लेना तो बहाना था असली मकसद तो आईसीएस में पास होकर दिखाना था। सो उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए पास कर ली।

🚩इसके बाद सुभाष ने अपने बड़े भाई शरतचन्द्र बोस को पत्र लिखकर उनकी राय जाननी चाही कि उनके दिलो-दिमाग पर तो स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों ने कब्जा कर रक्खा है ऐसे में आईसीएस बनकर वह अंग्रेजों की गुलामी कैसे कर पायेंगे? 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव ई०एस० मान्टेग्यू को आईसीएस से त्यागपत्र देने का पत्र लिखा। एक पत्र देशवन्धु चित्तरंजन दास को लिखा। किन्तु अपनी माँ प्रभावती का यह पत्र मिलते ही कि "पिता, परिवार के लोग या अन्य कोई कुछ भी कहे उन्हें अपने बेटे के इस फैसले पर गर्व है।" सुभाष जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में ट्राइपास (ऑनर्स) की डिग्री के साथ स्वदेश वापस लौट आये।

🚩स्वतन्त्रता संग्राम में प्रवेश और कार्य..!!

🚩कोलकाता के स्वतन्त्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर सुभाष दासबाबू के साथ काम करना चाहते थे।🚩 इंग्लैंड से उन्होंने दासबाबू को खत लिखकर उनके साथ काम करने की इच्छा प्रकट की। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार भारत वापस आने पर वे सर्वप्रथम मुम्बई गये और महात्मा गांधी से मिले। मुम्बई में गांधी जी मणिभवन में निवास करते थे। वहाँ 20 जुलाई 1921 को गाँधी जी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई। गाँधी जी ने उन्हें कोलकाता जाकर दासबाबू के साथ काम करने की सलाह दी। इसके बाद सुभाष कोलकाता आकर दासबाबू से मिले।

🚩उन दिनों गाँधी जी ने अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। दासबाबू इस आन्दोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाष इस आन्दोलन में सहभागी हो गये। 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अन्तर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। विधानसभा के अन्दर से अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिये कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता और दासबाबू कोलकाता के महापौर बन गये। उन्होंने सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाष ने अपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढाँचा और काम करने का तरीका ही बदल डाला। कोलकाता में सभी रास्तों के अंग्रेज़ी नाम बदलकर उन्हें भारतीय नाम दिये गये। स्वतन्त्रता संग्राम में प्राण न्यौछावर करने वालों के परिवारजनों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी।

🚩बहुत जल्द ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गये। जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अन्तर्गत युवकों की इण्डिपेण्डेंस लीग शुरू की। 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झण्डे दिखाये। कोलकाता में सुभाष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा। मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाष उसके एक सदस्य थे। इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की। 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाष ने खाकी गणवेश धारण करके मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी। गाँधी जी उन दिनों पूर्ण स्वराज्य की माँग से सहमत नहीं थे। इस अधिवेशन में उन्होंने अंग्रेज़ सरकार से डोमिनियन स्टेटस माँगने की ठान ली थी। लेकिन सुभाषबाबू को पूर्ण स्वराज की माँग से पीछे हटना मंजूर नहीं था। अन्त में यह तय किया गया कि अंग्रेज़ सरकार को डोमिनियन स्टेटस देने के लिये एक साल का वक्त दिया जाये। अगर एक साल में अंग्रेज़ सरकार ने यह माँग पूरी नहीं की तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की माँग करेगी। परन्तु अंग्रेज़ सरकार ने यह माँग पूरी नहीं की। इसलिये 1930 में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ तब ऐसा तय किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जायेगा।

🚩26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। जब सुभाष जेल में थे तब गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया। भगत सिंह की फाँसी माफ कराने के लिये गाँधी जी ने सरकार से बात तो की परन्तु नरमी के साथ। सुभाष चाहते थे कि इस विषय पर गाँधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझौता तोड़ दें। लेकिन गांधीजी अपनी ओर से दिया गया वचन तोड़ने को राजी नहीं थे। अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर अड़ी रही और भगत सिंह व उनके साथियों को फाँसी दे दी गयी। भगत सिंह को न बचा पाने पर सुभाष गाँधी और कांग्रेस के तरीकों से बहुत नाराज हो गये।

कारावास!!

🚩अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने का कारावास हुआ।

🚩1925 में गोपीनाथ साहा नामक एक क्रान्तिकारी कोलकाता के पुलिस अधीक्षक चार्लस टेगार्ट को मारना चाहता था। उसने गलती से अर्नेस्ट डे नामक एक व्यापारी को मार डाला। इसके लिए उसे फाँसी की सजा दी गयी। गोपीनाथ को फाँसी होने के बाद सुभाष फूट फूट कर रोये। उन्होंने गोपीनाथ का शव माँगकर उसका अन्तिम संस्कार किया। इससे अंग्रेज़ सरकार ने यह निष्कर्ष निकाला कि सुभाष ज्वलन्त क्रान्तिकारियों से न केवल सम्बन्ध ही रखते हैं अपितु वे उन्हें उत्प्रेरित भी करते हैं। इसी बहाने अंग्रेज़ सरकार ने सुभाष को गिरफ़्तार किया और बिना कोई मुकदमा चलाये उन्हें अनिश्चित काल के लिये म्याँमार के माण्डले कारागृह में बन्दी बनाकर भेज दिया।

🚩5 नवम्बर 1925 को देशबंधु चित्तरंजन दास कोलकाता में चल बसे। सुभाष ने उनकी मृत्यु की खबर माण्डले कारागृह में रेडियो पर सुनी। माण्डले कारागृह में रहते समय सुभाष की तबियत बहुत खराब हो गयी। उन्हें तपेदिक हो गया। परन्तु अंग्रेज़ सरकार ने फिर भी उन्हें रिहा करने से इन्कार कर दिया। सरकार ने उन्हें रिहा करने के लिए यह शर्त रखी कि वे इलाज के लिये यूरोप चले जायें। लेकिन सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इलाज के बाद वे भारत कब लौट सकते हैं। इसलिए सुभाष ने यह शर्त स्वीकार नहीं की। आखिर में परिस्थिति इतनी कठिन हो गयी कि जेल अधिकारियों को यह लगने लगा कि शायद वे कारावास में ही न मर जायेंगे। अंग्रेज़ सरकार यह खतरा भी नहीं उठाना चाहती थी कि सुभाष की कारागृह में मृत्यु हो जाये। इसलिये सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। उसके बाद सुभाष इलाज के लिये डलहौजी चले गये।

🚩1930 में सुभाष कारावास में ही थे कि चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया। इसलिए #सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गयी। 1932 में सुभाष को फिर से कारावास हुआ। इस बार उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया। अल्मोड़ा जेल में उनकी तबियत फिर से खराब हो गयी। चिकित्सकों की सलाह पर सुभाष इस बार इलाज के लिये यूरोप जाने को राजी हो गये।

यूरोप प्रवास!!

🚩सन् 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे। यूरोप में सुभाष ने अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए अपना कार्य बदस्तूर जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। #आयरलैंड के नेता डी वलेरा सुभाष के अच्छे दोस्त बन गये। जिन दिनों सुभाष यूरोप में थे उन्हीं दिनों जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाष ने वहाँ जाकर जवाहरलाल नेहरू को सान्त्वना दी।

🚩बाद में सुभाष यूरोप में विठ्ठल भाई पटेल से मिले। #विठ्ठल भाई पटेल के साथ सुभाष ने मन्त्रणा की जिसे पटेल-बोस विश्लेषण के नाम से प्रसिद्धि मिली। इस विश्लेषण में उन दोनों ने गान्धी के नेतृत्व की जमकर निन्दा की। उसके बाद विठ्ठल भाई पटेल जब बीमार हो गये तो सुभाष ने उनकी बहुत सेवा की। मगर विठ्ठल भाई पटेल नहीं बचे, उनका निधन हो गया।

🚩विठ्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में अपनी सारी सम्पत्ति सुभाष के नाम कर दी। मगर उनके निधन के पश्चात् उनके भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस वसीयत को स्वीकार नहीं किया। सरदार पटेल ने इस वसीयत को लेकर #अदालत में मुकदमा चलाया। यह मुकदमा जीतने पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने भाई की सारी सम्पत्ति गान्धी के हरिजन सेवा कार्य को भेंट कर दी।

🚩1934 में सुभाष को उनके पिता के मृत्युशय्या पर होने की खबर मिली। खबर सुनते ही वे हवाई जहाज से कराची होते हुए कोलकाता लौटे। यद्यपि कराची में ही उन्हे पता चल गया था कि उनके पिता की मृत्त्यु हो चुकी है फिर भी वे कोलकाता गये। #कोलकाता पहुँचते ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कई दिन जेल में रखकर वापस यूरोप भेज दिया।

ऑस्ट्रिया में प्रेम विवाह

🚩सन् 1934 में जब सुभाष ऑस्ट्रिया में अपना इलाज कराने हेतु ठहरे हुए थे उस समय उन्हें अपनी #पुस्तक लिखने हेतु एक अंग्रेजी जानने वाले टाइपिस्ट की आवश्यकता हुई। उनके एक मित्र ने एमिली शेंकल (अं: Emilie Schenkl) नाम की एक ऑस्ट्रियन महिला से उनकी मुलाकात करा दी। एमिली के पिता एक प्रसिद्ध पशु चिकित्सक थे। सुभाष एमिली की ओर आकर्षित हुए और उन दोनों में स्वाभाविक प्रेम हो गया। नाजी जर्मनी के सख्त कानूनों को देखते हुए उन दोनों ने सन् 1942 में बाड गास्टिन नामक स्थान पर हिन्दू पद्धति से विवाह रचा लिया। वियेना में एमिली ने एक पुत्री को जन्म दिया। सुभाष ने उसे पहली बार तब देखा जब वह मुश्किल से चार सप्ताह की थी। उन्होंने उसका नाम अनिता बोस रखा था। अगस्त 1945 में ताइवान में हुई तथाकथित विमान दुर्घटना में जब सुभाष की मौत हुई, अनिता पौने तीन साल की थी। अनिता अभी जीवित है। उसका नाम अनिता बोस फाफ (अं: Anita Bose Pfaff) है। अपने पिता के परिवार जनों से मिलने अनिता फाफ कभी-कभी भारत भी आती है।

हरीपुरा कांग्रेस का अध्यक्ष पद

🚩1938 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में होना तय हुआ। इस अधिवेशन से पहले गान्धी जी ने #कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना। यह कांग्रेस का 51 वाँ अधिवेशन था। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चन्द्र बोस का स्वागत 51 बैलों द्वारा खींचे हुए रथ में किया गया।

🚩इस अधिवेशन में सुभाष का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ। किसी भी भारतीय राजनीतिक व्यक्ति ने शायद ही इतना प्रभावी भाषण कभी दिया हो। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में सुभाष ने योजना आयोग की स्थापना की। जवाहरलाल नेहरू इसके पहले अध्यक्ष बनाये गये। सुभाष ने #बंगलौर में मशहूर वैज्ञानिक सर विश्वेश्वरय्या की अध्यक्षता में एक विज्ञान परिषद की स्थापना भी की।

🚩1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया। सुभाष की अध्यक्षता में कांग्रेस ने चीनी जनता की सहायता के लिये #डॉ॰ द्वारकानाथ कोटनिस के नेतृत्व में चिकित्सकीय दल भेजने का निर्णय लिया। आगे चलकर जब सुभाष ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में जापान से सहयोग किया तब कई लोग उन्हे जापान की कठपुतली और फासिस्ट कहने लगे। मगर इस घटना से यह सिद्ध होता हैं कि सुभाष न तो जापान की कठपुतली थे और न ही वे फासिस्ट विचारधारा से सहमत थे।

कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा

🚩1938 में गान्धीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना तो था मगर उन्हें सुभाष की कार्यपद्धति पसन्द नहीं आयी। इसी दौरान यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाष चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर भारत का स्वतन्त्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाये। उन्होंने अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में इस ओर कदम उठाना भी शुरू कर दिया था परन्तु गान्धीजी इससे सहमत नहीं थे।

🚩1939 में जब नया कांग्रेस अध्यक्ष चुनने का वक्त आया तब सुभाष चाहते थे कि कोई ऐसा व्यक्ति अध्यक्ष बनाया जाये जो इस मामले में किसी दबाव के आगे बिल्कुल न झुके। ऐसा किसी दूसरे व्यक्ति के सामने न आने पर सुभाष ने स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष बने रहना चाहा। लेकिन गान्धी उन्हें अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे। गान्धी ने अध्यक्ष पद के लिये पट्टाभि सीतारमैया को चुना। कविवर #रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने गान्धी को खत लिखकर सुभाष को ही अध्यक्ष बनाने की विनती की। प्रफुल्लचन्द्र राय और मेघनाद साहा जैसे वैज्ञानिक भी सुभाष को ही फिर से अध्यक्ष के रूप में देखना चाहतें थे। लेकिन गान्धीजी ने इस मामले में किसी की बात नहीं मानी। कोई समझौता न हो पाने पर बहुत बरसों बाद कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के लिये चुनाव हुआ।

🚩सब समझते थे कि जब #महात्मा गान्धी ने पट्टाभि सीतारमैय्या का साथ दिया हैं तब वे चुनाव आसानी से जीत जायेंगे। लेकिन वास्तव में सुभाष को चुनाव में 1580 मत और सीतारमैय्या को 1377 मत मिले। गान्धीजी के विरोध के बावजूद सुभाषबाबू 203 मतों से चुनाव जीत गये। मगर चुनाव के नतीजे के साथ बात खत्म नहीं हुई। #गान्धीजी ने पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को अपनी हार बताकर अपने साथियों से कह दिया कि अगर वे सुभाष के तरीकों से सहमत नहीं हैं तो वें कांग्रेस से हट सकतें हैं। इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। 

🚩1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। इस अधिवेशन के समय सुभाषबाबू तेज बुखार से इतने बीमार हो गये थे कि उन्हें स्ट्रेचर पर लिटाकर अधिवेशन में लाना पड़ा। गान्धीजी स्वयं भी इस अधिवेशन में उपस्थित नहीं रहे और उनके साथियों ने भी सुभाष को कोई सहयोग नहीं दिया। अधिवेशन के बाद सुभाष ने समझौते के लिए बहुत कोशिश की लेकिन गान्धीजी और उनके साथियों ने उनकी एक न मानी। परिस्थिति ऐसी बन गयी कि सुभाष कुछ काम ही न कर पाये। आखिर में तंग आकर 29 अप्रैल 1939 को सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना

🚩3 मई 1939 को सुभाष ने कांग्रेस के अन्दर ही फॉरवर्ड ब्लॉक के नाम से अपनी #पार्टी की स्थापना की। कुछ दिन बाद सुभाष को कांग्रेस से ही निकाल दिया गया। बाद में फॉरवर्ड ब्लॉक अपने आप एक स्वतन्त्र पार्टी बन गयी। द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले से ही फॉरवर्ड ब्लॉक ने स्वतन्त्रता संग्राम को और अधिक तीव्र करने के लिये जन जागृति शुरू की।

🚩3 सितम्बर 1939 को मद्रास में #सुभाष को ब्रिटेन और जर्मनी में युद्ध छिड़ने की सूचना मिली। उन्होंने घोषणा की कि अब भारत के पास सुनहरा मौका है उसे अपनी मुक्ति के लिये अभियान तेज कर देना चहिये। 8 सितम्बर 1939 को युद्ध के प्रति पार्टी का रुख तय करने के लिये सुभाष को विशेष आमन्त्रित के रूप में काँग्रेस कार्य समिति में बुलाया गया। उन्होंने अपनी राय के साथ यह संकल्प भी दोहराया कि अगर काँग्रेस यह काम नहीं कर सकती है तो फॉरवर्ड ब्लॉक अपने दम पर ब्रिटिश राज के खिलाफ़ युद्ध शुरू कर देगा।

🚩अगले ही वर्ष जुलाई में कलकत्ता स्थित हालवेट स्तंभ जो भारत की गुलामी का प्रतीक था सुभाष की यूथ ब्रिगेड ने रातोंरात वह स्तम्भ मिट्टी में मिला दिया। #सुभाष के स्वयंसेवक उसकी नींव की एक-एक ईंट उखाड़ ले गये। यह एक प्रतीकात्मक शुरुआत थी। इसके माध्यम से सुभाष ने यह सन्देश दिया था कि जैसे उन्होंने यह स्तम्भ धूल में मिला दिया है उसी तरह वे ब्रिटिश साम्राज्य की भी ईंट से ईंट बजा देंगे।

🚩इसके परिणामस्वरूप #अंग्रेज सरकार ने सुभाष सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओं को कैद कर लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सुभाष जेल में निष्क्रिय रहना नहीं चाहते थे। सरकार को उन्हें रिहा करने पर मजबूर करने के लिये सुभाष ने जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। हालत खराब होते ही #सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। मगर अंग्रेज सरकार यह भी नहीं चाहती थी कि सुभाष युद्ध के दौरान मुक्त रहें। इसलिये सरकार ने उन्हें उनके ही घर पर नजरबन्द करके बाहर पुलिस का कड़ा पहरा बिठा दिया।

नजरबन्दी से पलायन

🚩कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) स्थित #नेताजी भवन जहाँ से सुभाष चन्द्र बोस वेश बदल कर फरार हुए थे। इस घर में अब नेताजी रिसर्च ब्यूरो स्थापित कर दिया गया है। भवन के बाहर लगे होर्डिंग पर सैनिक कमाण्डर वेष में नेताजी का चित्र साफ दिख रहा है।

🚩नजरबन्दी से निकलने के लिये सुभाष ने एक योजना बनायी। 16 जनवरी 1941 को वे पुलिस को चकमा देते हुए एक पठान मोहम्मद ज़ियाउद्दीन के वेश में अपने घर से निकले। #शरदबाबू के बड़े बेटे शिशिर ने उन्हे अपनी गाड़ी से कोलकाता से दूर गोमोह तक पहुँचाया। गोमोह रेलवे स्टेशन से फ्रण्टियर मेल पकड़कर वे पेशावर पहुँचे। पेशावर में उन्हें फॉरवर्ड ब्लॉक के एक सहकारी, मियाँ अकबर शाह मिले। मियाँ अकबर शाह ने उनकी मुलाकात, किर्ती किसान पार्टी के भगतराम तलवार से करा दी। भगतराम तलवार के साथ सुभाष पेशावर से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की ओर निकल पड़े। इस सफर में भगतराम तलवार रहमत खान नाम के पठान और सुभाष उनके गूँगे-बहरे चाचा बने थे। पहाड़ियों में पैदल चलते हुए उन्होंने यह सफर पूरा किया।

🚩काबुल में सुभाष दो महीनों तक उत्तमचन्द मल्होत्रा नामक एक भारतीय व्यापारी के घर में रहे। वहाँ उन्होने पहले रूसी दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। इसमें नाकामयाब रहने पर उन्होने जर्मन और इटालियन दूतावासों में प्रवेश पाने की कोशिश की। इटालियन दूतावास में उनकी कोशिश सफल रही। जर्मन और इटालियन दूतावासों ने उनकी सहायता की। आखिर में आरलैण्डो मैजोन्टा नामक इटालियन व्यक्ति बनकर सुभाष काबुल से निकलकर रूस की राजधानी मास्को होते हुए जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुँचे।

🚩नाजी जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात

🚩बर्लिन में सुभाष सर्वप्रथम रिबेन ट्रोप जैसे जर्मनी के अन्य नेताओं से मिले। उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतन्त्रता संगठन और आज़ाद हिन्द रेडियो की स्थापना की। इसी दौरान सुभाष नेताजी के नाम से जाने जाने लगे। जर्मन सरकार के एक मन्त्री एडॅम फॉन ट्रॉट सुभाष के अच्छे दोस्त बन गये।

🚩आखिर 29 मई 1942 के दिन, #सुभाष जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडॉल्फ हिटलर से मिले। लेकिन हिटलर को भारत के विषय में विशेष रुचि नहीं थी। उन्होने सुभाष को सहायता का कोई स्पष्ट वचन नहीं दिया।

🚩कई साल पहले हिटलर ने माईन काम्फ नामक अपना आत्मचरित्र लिखा था। इस किताब में उन्होने भारत और भारतीय लोगों की बुराई की थी। इस विषय पर सुभाषने हिटलर से अपनी नाराजगी व्यक्त की। हिटलर ने अपने किये पर माफी माँगी और माईन काम्फ के अगले संस्करण में वह परिच्छेद निकालने का वचन दिया।

🚩अन्त में सुभाष को पता लगा कि हिटलर और जर्मनी से उन्हें कुछ और नहीं मिलने वाला है। इसलिये 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बन्दरगाह में वे अपने साथी आबिद हसन सफरानी के साथ एक जर्मन पनडुब्बी में बैठकर पूर्वी एशिया की ओर निकल गये। वह #जर्मन पनडुब्बी उन्हें हिन्द महासागर में मैडागास्कर के किनारे तक लेकर गयी। वहाँ वे दोनों समुद्र में तैरकर जापानी पनडुब्बी तक पहुँचे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय किन्हीं भी दो देशों की नौसेनाओं की पनडुब्बियों के द्वारा नागरिकों की यह एकमात्र अदला-बदली हुई थी। यह जापानी पनडुब्बी उन्हें #इंडोनेशिया के पादांग बन्दरगाह तक पहुँचाकर आयी।

पूर्व एशिया में अभियान

🚩पूर्वी एशिया पहुँचकर सुभाष ने सर्वप्रथम वयोवृद्ध क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस से #भारतीय स्वतन्त्रता परिषद का नेतृत्व सँभाला। सिंगापुर के एडवर्ड पार्क में रासबिहारी ने स्वेच्छा से स्वतन्त्रता परिषद का नेतृत्व सुभाष को सौंपा था।

🚩जापान के प्रधानमन्त्री जनरल हिदेकी तोजो ने नेताजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें सहयोग करने का आश्वासन दिया। कई दिन पश्चात् नेताजी ने जापान की संसद (डायट) के सामने भाषण दिया।


🚩21 अक्टूबर 1943 के दिन नेताजी ने सिंगापुर में आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अन्तरिम सरकार) की स्थापना की। वे खुद इस #सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री और युद्धमन्त्री बने। इस सरकार को कुल नौ देशों ने मान्यता दी। नेताजी आज़ाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति भी बन गये।

🚩आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकड़े हुए भारतीय युद्धबन्दियों को भर्ती किया था। आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतों के लिये झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी।

🚩पूर्वी एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण देकर वहाँ के स्थायी भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भर्ती होने और उसे आर्थिक मदद देने का आवाहन किया। उन्होंने अपने आवाहन में यह सन्देश भी दिया - "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।"

🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से #भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिये नेताजी ने " दिल्ली चलो" का नारा दिया। दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंदमान और निकोबार द्वीप जीत लिये। यह द्वीप आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द के अनुशासन में रहे। नेताजी ने इन द्वीपों को "शहीद द्वीप" और "स्वराज द्वीप" का नया नाम दिया। दोनों फौजों ने मिलकर इंफाल और कोहिमा पर आक्रमण किया। लेकिन बाद में अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और दोनों फौजों को पीछे हटना पड़ा।

🚩जब आज़ाद हिन्द फौज पीछे हट रही थी तब #जापानी #सेना ने नेताजी के भाग जाने की व्यवस्था की। परन्तु नेताजी ने #झाँसी की रानी रेजिमेंट की लड़कियों के साथ सैकड़ों मील चलते रहना पसन्द किया। इस प्रकार नेताजी ने सच्चे नेतृत्व का एक आदर्श प्रस्तुत किया।

🚩6 जुलाई 1944 को आज़ाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गान्धीजी को सम्बोधित करते हुए नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आर्जी-हुकूमते-#आज़ाद-हिन्द तथा आज़ाद हिन्द #फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया। इस भाषण के दौरान #नेताजी ने गान्धीजी को #राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिये उनका आशीर्वाद भी माँगा। इस प्रकार नेताजी ने ही सर्वप्रथम #गान्धीजी को राष्ट्रपिता बुलाकर अपने अपमान के बदले उन्हें सम्मानित करने का कार्य किया था।

लापता होना और मृत्यु की खबर

🚩द्वितीय विश्वयुद्ध में #जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। उन्होने #रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था। 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखायी नहीं दिये।

🚩23 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू (जापानी भाषा: 臺北帝國大學, Taihoku Teikoku Daigaku) हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार #जापानी जनरल शोदेई, पाइलेट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गम्भीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अन्तिम #संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की #राजधानी टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयीं। #भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेज़ के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी।

🚩स्वतन्त्रता के पश्चात् #भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिये 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया। दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गये। लेकिन जिस #ताइवान की भूमि पर यह दुर्घटना होने की खबर थी उस ताइवान देश की सरकार से इन दोनों आयोगों ने कोई बात ही नहीं की।

🚩1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने #भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने कहा कि #नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन #भारत #सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।

🚩18 अगस्त 1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गये और उनका आगे क्या हुआ यह #भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अनुत्तरित रहस्य बन गया हैं।

🚩देश के अलग-अलग हिस्सों में आज भी नेताजी को देखने और मिलने का दावा करने वाले लोगों की कमी नहीं है। #फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य में जिला रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे पेश किये गये लेकिन इन सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ में तो #सुभाष चन्द्र बोस के होने का मामला राज्य #सरकार तक गया। परन्तु राज्य सरकार ने इसे हस्तक्षेप के योग्य न मानते हुए मामले की फाइल ही बन्द कर दी।

सुनवाई के लिये विशेष पीठ का गठन

🚩कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की माँग पर सुनवाई के लिये स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दे दिया है। यह याचिका #सरकारी संगठन इंडियाज स्माइल द्वारा दायर की गयी है। इस #याचिका में भारत संघ, राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, रॉ, खुफिया विभाग, प्रधानमंत्री के निजी सचिव, रक्षा सचिव, गृह विभाग और पश्चिम बंगाल सरकार सहित कई अन्य लोगों को प्रतिवादी बनाया गया है।

🚩भारत की स्वतन्त्रता पर नेताजी का प्रभाव

🚩हिरोशिमा और नागासाकी के विध्वंस के बाद सारे संदर्भ ही बदल गये। आत्मसमर्पण के उपरान्त #जापान चार-पाँच वर्षों तक अमेरिका के पाँवों तले कराहता रहा। यही कारण था कि नेताजी और आजाद हिन्द सेना का रोमहर्षक इतिहास टोकियो के अभिलेखागार में वर्षों तक पड़ा धूल खाता रहा।

🚩नवम्बर 1945 में दिल्ली के लाल किले में #आजाद हिन्द फौज पर चलाये गये मुकदमे ने नेताजी के यश में वर्णनातीत वृद्धि की और वे लोकप्रियता के शिखर पर जा पहुँचे। अंग्रेजों के द्वारा किए गये विधिवत दुष्प्रचार तथा तत्कालीन प्रमुख #राजनीतिक दलों द्वारा सुभाष के विरोध के बावजूद सारे देश को झकझोर देनेवाले उस मुकदमे के बाद माताएँ अपने बेटों को ‘सुभाष’ का नाम देने में गर्व का अनुभव करने लगीं। #घर–घर में राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज के जोड़ पर नेताजी का चित्र भी दिखाई देने लगा।

🚩आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने का नेताजी का प्रयास प्रत्यक्ष रूप में सफल नहीं हो सका किन्तु उसका दूरगामी परिणाम हुआ। सन् 1946 के नौसेना विद्रोह इसका उदाहरण है। #नौसेना विद्रोह के बाद ही ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बल पर भारत में शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतन्त्र करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।

🚩आजाद हिन्द फौज को छोड़कर #विश्व-इतिहास में ऐसा कोई भी दृष्टांत नहीं मिलता जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा हो।

🚩जहाँ स्वतन्त्रता से पूर्व विदेशी शासक नेताजी की सामर्थ्य से घबराते रहे, तो स्वतन्त्रता के उपरान्त देशी सत्ताधीश जनमानस पर उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व के अमिट प्रभाव से घबराते रहे। #स्वातन्त्र्यवीर सावरकर ने स्वतन्त्रता के उपरान्त देश के क्रांतिकारियों के एक सम्मेलन का आयोजन किया था और उसमें #अध्यक्ष के आसन पर नेताजी के तैलचित्र को आसीन किया था। यह एक क्रान्तिवीर द्वारा दूसरे क्रान्ति वीर को दी गयी अभूतपूर्व सलामी थी।

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   🚩🇮🇳🚩 आज़ाद भारत🚩🇮🇳🚩

आधुनिक सच

*आधुनिक सच* 

मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं
तीस लाख का पैकेज दोनों ही पाते हैं

सुबह आठ बजे नौकरियों परजाते हैं
रात ग्यारह तक ही वापिस आते हैं

अपने परिवारिक रिश्तों से कतराते हैं
अकेले रह कर वह कैरियर बनाते हैं

कोई कुछ मांग न ले वो मुंह छुपाते हैं
भीड़ में रहकर भी अकेले रह जाते हैं

मोटे वेतन की नौकरी छोड़ नहीं पाते हैं
अपने नन्हे मुन्ने को पाल नहीं पाते हैं

फुल टाइम की मेड ऐजेंसी से लाते हैं
उसी के जिम्मे वो बच्चा छोड़ जाते हैं

परिवार को उनका बच्चा नहीं जानता है
केवल आया‘आंटी‘ को ही पहचानता है

दादा-दादी, नाना-नानी कौन होते है?
अनजान है सबसे किसी को न मानता है

आया ही नहलाती है आया ही खिलाती है
टिफिन भी रोज़ रोज़ आया ही बनाती है

यूनिफार्म पहनाके स्कूल कैब में बिठाती है
छुट्टी के बाद कैब से आया ही घर लाती है

नींद जब आती है तो आया ही सुलाती है
जैसी भी उसको आती है लोरी सुनाती है

उसे सुलाने में अक्सर वो भी सो जाती है
कभी जब मचलता है तो टीवी दिखाती है

जो टीचर मैम बताती है वही वो मानता है
देसी खाना छोड कर पीजा बर्गर खाता है

वीक एन्ड पर मॉल में पिकनिक मनाता है
संडे की छुट्टी मौम-डैड के संग बिताता है

वक्त नहीं रुकता है तेजी से गुजर जाता है
वह स्कूल से निकल के कालेज में आता है

कान्वेन्ट में पढ़ने पर इंडिया कहाँ भाता है
आगे पढाई करने वह विदेश चला जाता है

वहाँ नये दोस्त बनते हैं उनमें रम जाता है
मां-बाप के पैसों से ही खर्चा चलाता है

धीरे-धीरे वहीं की संस्कृति में रंग जाता है
मौम डैड से रिश्ता पैसों का रह जाता है

कुछ दिन में उसे काम वहीं मिल जाता है
जीवन साथी शीघ्र ढूंढ वहीं बस जाता है

माँ बाप ने जो देखा ख्वाब वो टूट जाता है
बेटे के दिमाग में भी कैरियर रह जाता है

बुढ़ापे में माँ-बाप अब अकेले रह जाते हैं
जिनकी अनदेखी की उनसे आँखें चुराते हैं

क्यों इतना कमाया ये सोच के पछताते हैं
घुट घुट कर जीते हैं खुद से भी शरमाते हैं

हाथ पैर ढीले हो जाते, चलने में दुख पाते हैं
दाढ़-दाँत गिर जाते, मोटे चश्मे लग जाते हैं

कमर भी झुक जाती, कान नहीं सुन पाते हैं
वृद्धाश्रम में दाखिल हो, जिंदा ही मर जाते हैं : 

सोचना की बच्चे अपने लिए पैदा कर रहे हो या विदेश की सेवा के लिए।

बेटा एडिलेड में, बेटी है न्यूयार्क।
ब्राईट बच्चों के लिए, हुआ बुढ़ापा डार्क।

बेटा डालर में बंधा, सात समन्दर पार।
चिता जलाने बाप की, गए पड़ोसी चार।

ऑन लाईन पर हो गए, सारे लाड़ दुलार।
दुनियां छोटी हो गई, रिश्ते हैं बीमार।

बूढ़ा-बूढ़ी आँख में, भरते खारा नीर।
हरिद्वार के घाट की, सिडनी में तकदीर।

तेरे डालर से भला, मेरा इक कलदार।
रूखी-सूखी में सुखी, अपना घर संसार
 
*****

Sunday 8 January 2017

GAYATRI MANTRA

The *GAYATRI MANTRA* the most powerful hymn in the world 

Dr.Howard Steingeril, an American scientist ... collected *Mantras Hymns* and invocations from all over the world and tested for their strength in his Physiology Laboratory ...

*Hindu's Gayatri Mantra* produced 110,000 sound waves /second... 

This was the highest and was found to be the most powerful hymn in the world. 
Through the combination of sound or sound waves of a particular frequency, this *Mantra* is claimed to be capable of developing specific spiritual potentialities. 
The Hamburg university initiated research in 
to the efficacy of the *Gayatri Mantra* both on the mental and physical plane of *CREATION ...* 

The *GAYATRI MANTRA* is broadcasted daily for 15 minutes from 7 P.M. onwards over Radio Paramaribo, Surinam, South America for the past two years, and in Amsterdam, Holland for the last six months. 

*Om Bhoor Bhuwah Swah ... Tat Savitur Varenyam ... Bhargo Devasya Dheemahi, Dhiyo Yo Nah Pra-chodayaat* ...😊

"It's meaning .... 

*GOD* is dear to me like my own breath… He is the dispeller of my pains … and giver of happiness … I meditate on the supremely adorable *Light* of the *Divine Creator*… that it may inspire my thought and understanding." 


Friday 6 January 2017

WHY ARE JEWS SO SMART?

*WHY ARE JEWS SO SMART?*
By Dr. Stephen Carr Leon

*Since I spent about 3 years in Israel for internship in a few hospitals there, it came to my mind about doing research on  "Why the Jews are Intelligent."*

*It goes without denial that Jews are ahead in all aspects of life, such as engineering, music, science & most obviously  in business -  nearly 70% of world trade & businessesare held by the Jews - in cosmetics, food, fashion, arms, hotels & film industries (Hollywood etc)!*

*During my 2nd year, I was about to go back to California. This idea came to my mind & I was wondering why God gave this gift or ability to them? Is this a coincidence? Or is it man-made? Can intelligent Jews be produced like goods from a factory? My research took abt 8 yrs to gather all the information as accurately as possible, like their food intake, culture, religion, initial preparation of pregnancy, etc & I would compare them with other races!*

*Let’s start with initial preparation of pregnancy. In Israel, the first thing I noticed is that a pregnant mother wld always sing n play the piano n wld always try to solve mathematics problems together with her husband. I was very surprised to see that pregnant women always carry math books. Sometimes I would help her to solve some problems. I wld ask,  "Is this for your child in the womb?" She wld answer, "Yes to train the child still in the womb so that it would be a genius later on". She wld solve maths problems without let-up until the child is born!*

*Another thing I noticed is abt their food.  The pregnant women loved to eat almonds n dates with milk.  For lunch she wld take bread & fish (without the head), salad mixed with almonds & other nuts. They believe  fish is good for the development of the brain & that the fish head is bad for the brain. And also it is in the culture of the Jews for pregnant mothers to take cod liver oil!*

*When I was invited for dinner, I noticed that they always like to eat fish (flesh & fillet), but no meat. According to their belief, meat & fish together will not give any benefit to our body. Salad & nuts is a must, esp almonds!*

*They would always eat fruits first before the main meal. Their belief is that if you eat the main meal first (like bread or rice) then fruits, this will make us feel sleepy & difficult to understand lessons in school!*

*In Israel, smoking is a taboo. If you are a guest, don’t smoke in their house, they would politely ask you to go out to smoke. According to scientists in Universities in Israel, nicotine would destroy cells in our brain & will affect the genes & DNA, resulting in generations of moron or defective brain. All smokers  pls take note! (Ironically, the biggest producer of cigarettes is… you know who...)!*

*The food intake for the child is always under the guidance of the parents! First, the fruits with almonds, followed by cod liver oil.In my assessment, most Jewish children know at least 3 languages, ie Hebrew, Arabic & English. Since childhood they wld be trained in playing the piano & violin - it is a must!*

*They believe that this practice will increase the IQ of the child & will make him a genius.  According to Jewish scientists, the vibrations of music wld stimulate the brain.  That is why there are lots of geniuses among the Jews!*

*Since grade 1 to 6, they wld be taught business maths, science subjects would be their first preference. As comparison, I cld see the IQ of children in California is about 6 years back. Jewish children are also involved in athletics such as archery, shooting & running. They believe that archery & shooting wld make the brain more focused on decision-mkg & precision!*

*In high school, students are more inclined to study science.  They wld create products, indulge in all sorts of projects  although some looks very funny or useless). But all attention is given seriously -especially if it is on armaments, medicine or engineering. A successful project or idea wld be introduced in higher study institutes, polytechnics or universities!*

*Business faculty is given more preference in the last year of university.  Students in business studies would be given a project & they can only pass if their group (about 10 in a grp) can make a profit of USD1 million !*

*Don’t be surprised - this is the reality. And that is why half of the business in the world is held by the Jews. For instance, guess who designed the latest Levis?  It is being designed in an Israeli university by the Faculty of Business & Fashion!*

*Have you seen  how they pray?  They always shake their heads -  they believe this action will stimulate & provide the brain with more oxygen! (Same thing with Islam where you need to bow down your head!)*. 

*Look at the Japanese, they always bow down their heads as their culture - lots of them are smart -  they love sushi (fresh fish). Is this a coincidence?*

*In the USA, the commercial & trading centers for Jews are based in New York -  catering only to the Jews. If any Jew has any novel & beneficial idea, their committee sanctions interest free loans & will make sure their business prospers!*

*Thus Jewish companies like Starbucks, Dell Computers, Coca Cola, DKNY, Oracle, Levis, Dunkin Donut, Hollywood films & hundreds of other businesses were given encouraging sponsorships!*

*Jewish medical graduates in New York are encouraged to register with them & allowed to practice privately with this interest free loans!Now I know why most hospitals in New York & California always lack specialist doctors!*

*Smoking leads to generations of morons! During my visit to Singapore in 2005, I was surprised to see smokers are regarded as outcasts & the price of a pack of cigarettes is about USD 7. Like in Israel, it is taboo. Singapore's form of govt is similar to the Israelis. And that is the reason why most of their universities have high standards,  even though Singapore is only as big as Manhattan!*

*Look at Indonesia, everywhere people are smoking. The price of a pack of cigarettes is very cheap only USD 0.70 cents! The result is millions of people with very little intelligence You can count the number of universities, what product they produce that they can be proud of, low technology, can't speak other than their own language! For instance  why is it so difficult for them to master the English language? All this is due to smoking, their diet, culture!*

*In my thesis, I do not touch on religion or race -  why the Jews are so arrogant that they were being chased around since the time of the Pharaoh until Hitler. For me it is about politics & survival. The bottom line is: Can we produce intelligent generations just like the Jews??*

*The answer could be yes. We need to change our daily habits of eating & parenting,, maybe within 3 generations, it could be achieved!*

*This I could observe in my grandson, for example, at the age of 9 he cld write a 5-page essay on "Why I love tomato!"*

Wednesday 4 January 2017

खुशनुमा जीवन

*45 वर्ष से अधिक उम्र वाले इस सन्देश को सावधानी पूर्वक पढ़ें, क्योंकि यह उनके आने वाले जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।*👏👏👏

🌹🌹🌹🌹🌹 *सुखमय वृद्धावस्था के लिए* 
🌹🌹🌹🌹🌹

*1* 🏠 *अपने स्वयं के स्थायी स्थान पर रहें ताकि स्वतंत्र जीवन जीने का आनंद ले सकें!* 

*2*💵 *अपना बैंक बेलेंस और भौतिक संपत्ति अपने पास रखें! अति प्रेम में पड़कर किसी के नाम करने की ना सोचें।*

*3* *अपने बच्चों के इस वादे पर निर्भर ना रहें कि वो वृद्धावस्था में आपकी सेवा करेंगे, क्योंकि समय बदलने के साथ उनकी प्राथमिकता भी बदल जाती है और कभी कभी चाहते हुए भी वे कुछ नहीं कर पाते* 👬

*4*👥 *उन लोगों को अपने मित्र समूह में शामिल रखें जो आपके जीवन को प्रसन्न देखना चाहते हैं , यानी सच्चे हितैषी हों।* 🙏

*5* 🙌 *किसी के साथ अपनी तुलना ना करें और ना ही किसी से कोई उम्मीद रखें!*

*6* 👫 *अपनी संतानों के जीवन में दखल अन्दाजी ना करें, उन्हें अपने तरीके से अपना जीवन जीने दें और आप अपने तरीके से अपना जीवन जीएँ!*

*7* 👳 *अपनी वृद्धावस्था को आधार बनाकर किसी से सेवा करवाने, सम्मान पाने का प्रयास कभी ना करें।*

*8* 🖐 *लोगों की बातें सुनें लेकिन अपने स्वतंत्र विचारों के आधार पर निर्णय लें।*

*9*👏 *प्रार्थना करें लेकिन भीख ना मांगे, यहाँ तक कि भगवान से भी नहीं। अगर भगवान से कुछ मांगे तो सिर्फ माफ़ी और हिम्मत!* 

*10* 💪 *अपने स्वास्थ्य का स्वयं ध्यान रखें, चिकित्सीय परीक्षण के अलावा अपने आर्थिक सामर्थ्य अनुसार अच्छा पौष्टिक भोजन खाएं और यथा सम्भव अपना काम अपने हाथों से करें! छोटे कष्टों पर ध्यान ना दें, उम्र के साथ छोटी मोटी शारीरिक परेशानीयां चलती रहती हैं।*

*11* 😎 *अपने जीवन को उल्लास से जीने का प्रयत्न करें खुद प्रसन्न रहने की चेष्टा करें और दूसरों को प्रसन्न रखें।*

*12* 💏 *प्रति वर्ष  अपने जीवन  साथी केे साथ भ्रमण/ छोटी यात्रा पर एक या अधिक बार अवश्य जाएं,  इससे आपका जीने का नजरिया बदलेगा!*

*13* 😖 *किसी भी टकराव को टालें एवं तनाव रहित जीवन जिऐं!* 
   
*14* 😫 *जीवन में स्थायी कुछ भी नहीं है चिंताएं भी नहीं इस बात का विश्वास करें !*

*15* 😃 *अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को रिटायरमेंट तक  पूरा कर लें, याद रखें जब तक आप अपने लिए जीना शुरू नहीं करते हैं तब तक आप जीवित नहीं हैं!*

😀 *खुशनुमा जीवन की शुभकामनाओं के साथ*