Sunday 24 January 2021

कम्प्यूटरऔर रोबोट

 #कम्प्यूटरऔर रोबोट

क्या आप कल्पना कर सकते है, की 1000 वर्ष पहले भी कम्प्यूटर और रोबोट था ?? 2000 वर्ष पहले भी था, और 5000 वर्ष पहले भी ...

#हिन्दू शिरोमणि राजा महाराज भोजपरमार ने जीवन भर युद्ध किये, भारत की रक्षा की, लेकिन आज में #महाराजभोज के युद्धों की चर्चा नही करूँगा, मैं आपको परिचित करवाना चाहता हूं, वैज्ञानिक महाराज भोज से -- जिन्होंने वह सब आज से एक हजार साल पहले ही सोचा था, जो विज्ञान आज सोच रहा है -- कर रहा है -

▪️वर्तमान रोबोट के आविष्कारक महाराज भोज ही है -

मुझे पता है, अल्पबुद्धि के लोग इसबात पर बहस करेंगे लेकिन आपको पता होना चाहिए, सबसे आधुनिक आविष्कार रोबोट की कल्पना ओर निर्माण तो आज से 2000 साल पहले ही हो गया था, यूनानी देवता हिफेस्टास के यांत्रिक दास , नोरसे कथाओं में मिट्टी के दैत्य , यहूदियों में गोलेम ओर पिगमेलियन की मूर्तियां जो जीवित हो गयी , यूनानी गणितज्ञ के तेरेनतम भी एक भाप से चलने वाले चिड़िया की कल्पना, एलेक्जेंड्रिया के हीरो ( 10 ईस्वी में)  द्वारा निर्मित यंत्र, जो पानी के भाप से चलाया गया, 1088 ईस्वी में सु सांग नाम के एक चीनी ने घण्टाघर बनाया था, जिसमे एक यांत्रिक मूर्ति हर घण्टे घड़ी का घण्टा बजाने का काम करती थी ।

यांत्रिक मानव या मशीन या रोबॉट बनाना तो पौराणिक विधर्मियो के लिए भी साधारण काम था, लेकिन जो भारत के महाराज भोज परमार ने जो सोचा था, ओर समय मिल पाता तो शायद वह कर भी देते, वह इनसे कहीं ज़्यादा उच्चकोटि का आविष्कार होता -- या शायद वह आविष्कार हो भी चुका था , लेकिन उसका प्रचार नही हो पाया, क्यो की उस समय भारत मुस्लिम आक्रमणों से त्रस्त था ।

महाराज भोज युद्ध यंत्र मानव तक कि सोच चुके थे, जो आजतक विकसित नही हुआ है - कुछ वर्षों पहले विदेशियो ने वह सोचा मात्र है - महाराज भोज अपनी पुस्तक समरांगण सूत्र में लिखते है 

" अथ दासादि परिजनवर्गेर्विना तत्कृत्याना सर्वेषां यथावन्निर्वहणाय कल्पितस्य स्त्रीपुरुषप्रतिमायंत्र घटना"

अगर स्त्री घर मे अकेली हो, ओर उसके परिजन बाहर गए तो, तो मानव द्वारा निर्मित यंत्र उसकी रक्षा करें ।।

दृगग्रीवातलहस्तप्रकोष्ठबाहूरुहस्तशाखादि।

सच्छिद्र वपुरखिल तत्सन्धिषु खंडशो घटयेत्।। 

-समरांगण सूत्रधार ३१/१०१

अर्थात- ऐसे यंत्र मानव का निर्माण करे आँख, गर्दन तल-हस्त, प्रकोष्ठ, बाह, उरु, हस्त-शाखा अर्थात उंगलिया भी हो। इस प्रकार की देहयष्टि में यंत्र मानव को पर देहान्तर्गत आवश्यक छिद्रों एवं अंगो की संधियों और विभिन्न खेलों की भी पढ़ाई करनी चाहिए। 

शिलिष्ट कीलकविधिना दारुमय सृष्टचर्मणा गुप्तं।

पुंसोऽथवा युवत्या रूपं कृत्वातिरमणीयम्

रन्ध्रगते: प्रत्यंग विधिना नाराचसगते: सूत्रे।।

समरांगण सूत्रधार ३१/१०२

अर्थात- अंगो के संयोजन में प्रयुक्त कीले को बहुत ही चिकनाई वाला बनाये और सविधि लगाये, यह रचना काष्ठमय होगी किन्तु उस पर चमडा मढ़ कर नर-नारी मय रूप दिया जायेगा। यह रूप अतीव रमणीय करना चाहिए। इस काया निर्माण के बाद उसके उसके रन्धो में जाने वाली शलाकाओ को सूत्रत: संयोजित किया जाना चाहिए। 

ग्रीवाचलनप्रसरणविकुज्चनादीनि विदधाति।

करग्रहणाताम्बुलप्रदानजलसेचनप्रणामादि।। 

- समरांगण सूत्रधार ३१/१०३

अर्थात- ऐसे विधान पूर्वक बनाया गया यंत्र मानव ग्रीवा को चलाता है, हाथो को फैलता समेटता है अर्थात ऐसे विचित्र कौतुहल करता है, वो यही नहीं ताम्बूल की मनुहार करा देता है, जल की सिचाई करता है और नमस्कार भी करता है।

आदर्श प्रतिलेखन वीणावाद्यादि च करोति।

एवमन्यपि चेद्दशमेतत कर्म विस्मयविधायि विधत्ते।।

जृम्भितेन विधिना निजबुद्धेः कृष्टमुक्तगुणचक्रवशेन।

समरांगण सूत्रधार ३१/१०४ -१०५

अर्थात- वह यंत्र मानव आने वालो को शीशा दिखाता है, वीणा आदि वाद्य बजाता है। ये सारे ही कार्य यंत्र ही पूरे करता है। इस प्रकार पूर्व में कहे हुए गुणों के वशीभूत होकर चक्रीय विधि के अनुसार संचालक की बुद्धि के अनुसार प्रदर्शन करने लगता है। 

▪️यांत्रिक दरबान का उलेख 

स्थानीय द्वारपाल यंत्र -

पुंसो दारुजमुर्ध्व रूपं कृत्वा निकेतनद्वारि।

तत्करयोजित दंड निरुणद्धि प्रविशता वर्त। 

-समरांगण सूत्रधार ३१/१०६

आर्थात- लकड़ी के बनाये यंत्र मानव के हाथ में एक दंड रखे उसे घर के बाहर खड़ा करे ताकि यह अनाधिकार चेष्टा कर घर में घुसने वालो को रोकेगा।

खड्गहस्तमथ मुद्ररहस्त कुंतहस्तमथवा यदि तत् स्यात 

तन्निहन्ति विशतो निशि चौहान द्वारा संवृत मुख प्रसभेन।

समरांगण सूत्रधार ३१/१०७

अर्थात- यदि उक्त काष्ठ रचित यंत्र मानव के हाथ में तलवार, मुद्गर, भाला प्रदान कर देंवे तो वह रात्रि में प्रवेश करने वाले चोरो और अपना मुख छुपा कर आने वाले घुसपेठियो को मार सकता है। 

▪️तरलयांत्रिकी (हाइड्रोलिक मशीन-Turbine)-

जलधारा के शक्ति उत्पादन में उपयोग के संदर्भ में ‘समरांगण सूत्रधार‘ ग्रंथ के ३१वें अध्याय में कहा है-

#बिजली(करंट)_बनाने का तरीका भी महाराज भोज ने ही बताया ।।

धारा च जलभारश्च पयसो भ्रमणं तथा यथोच्छ्रायो यथाधिक्यं यथा नीरंध्रतापि च।

एवमादीनि भूजस्य जलजानि प्रचक्षते॥ 

अर्थात- बहती हुई जलधारा का भार तथा वेग का शक्ति उत्पादन हेतु हाइड्रोलिक मशीन में उपयोग किया जाता है। जलधारा वस्तु को घुमाती है और ऊंचाई से धारा गिरे तो उसका प्रभाव बहुत होता है और उसके भार व वेग के अनुपात में धूमती है। इससे शक्ति उत्पन्न होती है।

संगृहीतश्च दत्तश्च पूरित: प्रतनोदित:। 

मरुद्‌ बीजत्वमायाति यंत्रेषु जलजन्मसु॥ 

(#समरांगण-३१)

अर्थात- पानी को संग्रहित किया जाए, उसे प्रभावित और पुन: क्रिया हेतु उपयोग किया जाए, यह मार्ग है जिससे बल का शक्ति के रूप में उपयोग किया जाता है। 

ओर महाराज भोज ने यह सब कल्पना मात्र नही की है, बल्कि इन्ही अध्यायों में इन रोबोट को बनाने  का सूत्र तक दिया है ।। इसके अलावा कम्प्यूटर की कल्पना भी महाराज भोज ने ही कि थी, मणिप्रबंधनम में उन्होंने कम्प्यूटर बनाने के सूत्र भी दिए है - उसकी चर्चा फिर कभी ....

विज्ञान पर इसी तरह #अगत्स्य_सहिंता आदि कई वैदिक ग्रंथ आज भी आसानी से उपलब्ध है बस कमी है तो हम सभी का अध्ययन का ......

वामपंथी इतिहास सदैव ही हमे घृणित बनाने हेतु प्रयासरत रही है आप सभी जानते है तो क्यों न आप सभी स्वयं संग्रहित प्राचीन लोक कथाएं और लोक गान का निरीक्षण करें और सत्यता उजागर करे ।

जय हो भारत भूमि 

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