Friday, 16 October 2020

संस्कृति की ओर !!

हमारे पास तो  पहले से ही अमृत से भरे कलश थे...

फिर हमने वो अमृत क्यों निक।ल दिया 

जरा इन पर विचार करें...

० मातृनवमी ही तो मदर्स डे है।


० कौमुदी महोत्सव ही तो वेलेंटाइन डे है। 


० गुरुपूर्णिमा ही तो टीचर्स डे। 


० धन्वन्तरि जयन्ती ही तो डाक्टर्स डे है।


० विश्वकर्मा जयंती ही तो प्रद्यौगिकी दिवस है।


० सन्तान सप्तमी ही तो चिल्ड्रन्स डे है।


० नवरात्रि और कन्या भोज ही तो डॉटर्स डे है।


० रक्षाबंधन ही सिस्टर्स डे है।


० भाईदूज ही ब्रदर्स डे है।


० आंवला नवमी तुलसी विवाह यह हिंदुओं के एनवायरमेंट डे है।


० नारद जयन्ती ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है।


० पितृपक्ष 7 पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है।


० नवरात्रि को स्त्री के नवरूप दिवस के रूप में स्मरण कीजिये...


सनातन पर्वों को अवश्य मनाईये...

आपकी सनातन संस्कृति में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्व और त्योहार मिशनरीयों के धर्मांतरण की राह में बधक हैं, बस इसीलिए आपके धार्मिक परंपराओं से मिलते जुलते Program लाए जा रहे हैं मिशनरीयों द्वारा।

अब पृथ्वी के सनातन भाव को स्वीकार करना ही होगा। हमें वेद, शास्त्र, संस्कृत पढ़ने होंगे ! 


हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना ही होगा । अपने सनातन मूल की ओर लौटिए, व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए, अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये। जीवन में भारतीय पंचांग अपनाना चाहिए, जिससे भारत अपने पर्वों, त्यौहारों से लेकर मौसम की भी अनेक जानकारियां सहज रूप से जान व समझ लेता है...


हमारी संस्कृति है यह ।।

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