पापा देखो मेंहदी वाली.
मुझे मेंहदी लगवानी है
“पंद्रह साल की छुटकी बाज़ार में बैठी
मेंहदी वाली को देखते ही मचल गयी.
“कैसे लगाती हो मेंहदी ” ?
पिता ने सवाल किया.
“एक हाथ के पचास दो के सौ”
मेंहदी वाली ने जवाब दिया.
पिता को मालूम नहीं था
मेंहदी लगवाना इतना मँहगा हो गया है.
“नहीं भई एक हाथ के बीस लो , वरना हमें नहीं लगवानी.”
यह सुनकर छुटकी नें मुँह फुला लिया.
“अरे अब चलो भी ,नहीं लगवानी इतनी मँहगी मेंहदी”
पिता के माथे पर लकीरें उभर आयीं .
“अरे लगवाने दो ना साहब..अभी आपके घर में है तो आपसे लाड़ भी कर सकती है, कल को पराये घर चली गयी तो पता नहीं ऐसे मचल पायेगी या नहीं ? तब आप भी तरसोगे बिटिया की फरमाइश पूरी करने को.
” मेंहदी वाली के शब्द थे तो चुभने वाले पर उन्हें सुनकर पिता को अपनी बड़ी बेटी की याद आ गयी..?
जिसकी शादी उसने तीन साल पहले एक खाते -पीते पढ़े लिखे परिवार में की थी.
उन्होंने पहले साल से ही उसे
छोटी छोटी बातों पर सताना शुरू कर दिया था. दो साल तक वह मुट्ठी भरभर के रुपये उनके मुँह में ठूँसता रहा पर उनका पेट बढ़ता ही चला गया और अंत में एक दिन सीढियों से गिर कर बेटी की मौत की खबर ही मायके पहुँची. आज वह छटपटाता है कि उसकी वह बेटी फिर से उसके पास लौट आये..?
और वह चुन चुन कर उसकी
सारी अधूरी इच्छाएँ पूरी कर दे. पर वह अच्छी तरह जानता है ।
कि अब यह असंभव है.
“लगा दूँ बाबूजी…?, एक हाथ में ही सही ”
मेंहदीवाली की आवाज से पिता के ख्याल टूटे ।
“हाँ हाँ लगा दो. एक हाथ में नहीं दोनों हाथों में.
और हाँ, इससे भी अच्छी वाली हो तो वो लगाना.”
पिता ने डबडबायी आँखें पोंछते हुए कहा
और बिटिया को आगे कर दिया.
ईश्वर से दुआ करो जब तक बेटी हमारे घर है, तब तक हम उनकी हर इच्छा पूरी करने का ज़रियख बने ।
क्या पता आगे उसकी कोई इच्छा पूरी हो पाये या ना नहीं ?
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