धनतेरस नहीं, धन्वन्तरि जयन्ती
हिन्दुओं में “धनतेरस” नाम का कोई त्यौहार नहीं होता। यह वास्तव में “धन्वन्तरि जयन्ती” है। समुद्र मन्थन के समय इस दिन भगवान धन्वन्तरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर उत्पन्न हुए थे। उनको आयुर्वेद का आदि प्रवर्तक माना जाता है। इसलिए कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को उनका जन्मदिन माना जाता है।
धन की देवी लक्ष्मी की पूजा तो दीपावली के दिन की जाती है। उससे पूर्व या बाद में लक्ष्मी जी की पूजा का कहीं कोई प्रावधान नहीं है, बल्कि पूरे वर्ष अपने धन का सदुपयोग समाज हितकारी कामों में करने की प्रेरणा दी जाती है। इसके प्रतीक स्वरूप दीपावली के दिन धन की देवी लक्ष्मी जी के साथ-साथ विवेक और बुद्धि के देवता गणेश जी की पूजा भी की जाती है।
यह तो व्यापारियों की तरकीब है कि उन्होंने “धन्वन्तरि” को “धनतेरस” बना दिया और इस दिन धातु की ख़रीदारी करना शुभ होने का मिथ्या प्रचार कर दिया। इस तरह उन्होंने “धनतेरस” को वास्तव में “धंधातेरस” में बदल दिया है। सभी त्यौहारों के पूर्व आवश्यक वस्तुओं की ख़रीदारी करना एक स्वाभाविक प्रवृति है। इसको शुभ या अशुभ से जोड़ना सही नहीं है।
निवेदन है कि हिन्दू भाई-बहिन इस पर्व का मर्म समझकर मिथक प्रचार से भ्रमित न हों और अपने बजट के अनुसार ही आवश्यक वस्तुओं की ख़रीदारी करें, जिनसे परिवार को सुख मिले।
सभी को धन्वन्तरि जयन्ती एवं प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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