Friday 27 November 2020

महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी

मियाँ की जूती मियाँ के सर

यह  कहावत बनी कैसे, शायद हममें से बहुत कम लोगों को पता होगा 

चलिए जानते हैं...

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक महामना मदन मोहन मालवीय जी ने इसके लिए चन्दा एकत्र किया था, जो उस समय करीब एक करोड़ 64 लाख रुपए हुआ था। 

काशी नरेश ने ज़मीन दी थी तो, दरभंगा नरेश ने 25 लाख रुपए से सहायता की थी। वहीं हैदराबाद के निज़ाम ने कहा कि इस विश्वविद्यालय से पहले हिन्दू’ शब्द हटाओ फिर दान दूँगा। महामना ने मना कर दिया तो निज़ाम ने कहा कि मेरी जूती ले जाओ, महामना उसकी जूती लेकर चले गए और हैदराबाद में चारमीनार के पास उसकी नीलामी लगा दी। निज़ाम की माँ को जब पता चला तो वह बन्द बग्घी में पहुँचीऔर क़रीब 4 लाख रुपए की बोली लगाकर निज़ाम की जूती ख़रीद ली, उन्हें लगा कि उनके बेटे की इज्ज़त बीच शहर में नीलाम हो रही है।

मियाँ की जूती मियाँ के सर मुहावरा उसी घटना के बाद से प्रचलित हो गया ।

भारत रत्न राष्ट्रवाद के प्रखर समर्थक, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक,

महान समाज सुधारक, शिक्षाविद्

एवं स्वतंत्रता सेनानी 

महामना पं. मदन मोहन मालवीय जी


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