Wednesday 18 November 2020

विचारक नाथूराम

 महान देशभक्त राष्ट्र पुत्र महात्मा नाथूरामगोडसे को उनके बलिदान दिवस पर शौर्य पूर्ण श्रद्धांजलि

जन्म : 19 मई 1910 बारामती पुणे (महाराष्ट्र)

बलिदान : 15 नवंबर 1949 अंबाला जेल (पंजाब)

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महात्मा नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान 👇👇

कहा जाता है की इसे सुनकर अदालत में उपस्थित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे। एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्थित लोगो को जज बनाया  जाता और उनसे फैंसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते!

इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान जज खोसला से नाथूराम ने अपना पक्ष खुद पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी, जिसे जज ने स्वीकार कर लिया था l

नाथूराम जी ने अपने बयान में कहा👇👇

सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है। में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र  प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है।

प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ। मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और गंदे रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।

महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी। उसी ने गुप्त रूप से बंदूक की नोक पर पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया।

मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गये और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है। और, किसका बलिदान ?

जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है , तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए। उन्होंने स्वयं को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।

मैं कहता हूँ की मैंने गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाईं  ,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों हिन्दुओं को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।

मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है। मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे। जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना।

ऐसे देशभक्त क्रांतिकारी तथा प्रखर विचारक को मैं उनके चरणों में शत शत नमन करता हूं 🙏🏻🙏🏻

महात्मा नाथूराम गोडसे अमर रहे 🙏🏻🙏🏻🇮🇳🇮🇳

एक दिन आएगा जब गांधी की जगह गोडसे की मूर्तियां लगेंगी क्योंकि गोडसे सही साबित हो चुके हैं और मुसलमान बार-बार गांधी को गलत साबित कर देता है। 

- अभी जब ओवैसी ने बिहार के सीमांचल में 5 सीटें जीत लीं तो मुसलमानों ने एक बार फिर गांधी को गलत साबित कर दिया। 

- जब भारत बंटा तो बलूचिस्तान से बंगाल तक 9 से 10 करोड़ मुसलमान रहे होंगे... मुसलमानों ने अपने अलग देश के लिए रोना धोना मचाया और जंगी जुनून पैदा किया... हिंदुओं का कत्लेआम किया तो गांधी ने देश का बंटवारा स्वीकार कर लिया ।

- तब कांग्रेस में मौजूद सरदार पटेल लॉबी ने बिलकुल साफ कहा । अंबेडकर ने भी कहा कि सुनियोजित बंटवारा करो और सारे मुसमलानों को देश से बाहर कर दो... पाकिस्तान भेज दो ताकी सांप्रदायिकता की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाए लेकिन गांधी नहीं माना और यहां भी मुसलमानों को रहने दिया। 

- अब टूटे फूटे भारत में 9 करोड नहीं 25 करोड़ मुसलमान हैं और वो (अधिकांशत:) पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं  या फिर उसका समर्थन करते हैं या मुखर होकर विरोध नहीं करते हैं । 

- यानी कुरान शरीफ के अनुयायियों ने बार-बार गांधी के पूरे अहिंसा, सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक समरसता के सिद्धांतों को खारिज कर दिया है। 

- अब अगर ओवैसी ये कहता है कि हम तुमको 15 मिनट में खत्म कर देंगे... अगर कश्मीर से किसी मौलाना की आवाज उठती है कि अब देश में इतने मुसमलान हो गए हैं कि फिर से बंटवारा कर सकते हैं तो बार-बार गोडसे सही साबित होते हैं और गांधी गलत साबित होता है। 

- मुसलमानों ने उस वक्त भी गांधी को गलत साबित कर दिया जब दिल्ली में छत से सुरक्षाबलों पर तेजाब की बाल्टियां उड़ेल दी गईं थीं । 

- मुसलमानों ने उस वक्त भी गांधी को गलत साबित कर दिया जब शाहीनबाग में जिन्ना के समर्थन में नारे लगे । शरजील इमाम जैसा अलगाववादी विचारक भी गांधी को गलत साबित करता है । 

- अभी जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ईशनिंदा करने वाले की हत्या करने के नारे लगे... तब भी मुसलमानों ने गांधी को गलत साबित कर दिया था। 

- अभी जब वल्लभगढ़ में निकिता तोमर की सरेआम हत्या कर दी गई... तो भी गांधी ही गलत साबित हुआ। 

- गांधी बार बार गलत साबित होता है इसीलिए कहता हूं कि लोगों के दिलों से गांधी की प्रतिमा उखड़ चुकी है अब देखना ये है कि गली मोहल्लों चौराहों में और कितने दिन ये मूर्तियां खड़ी रहती हैं ? 


- इतिहास गोडसे का पुनर्मूल्यांकन करेगा

🙏साभार-दिलीप पाण्डेय  जी।। 

साल 2010...                                                

मैं पुणे गया हुआ था...                                       

स्व नाथूराम गोडसे जी का घर भी गया...

वहाँ मेरी मुलाकात नाथूराम गोडसे जी के छोटे भाई गोपाल गोडसे के सुपुत्र श्री नारायण गोडसे और उनकी धर्मपत्नी से हुई...  

उन्होंने मुझे  बहुत प्यार और सम्मान से घर में बिठाया..  नाश्ता दिया और काफी सारी इधर उधर की बातें की...      मैं यह जानना चाहता था...      

कि गाँधी की हत्या के बाद  उनके परिवार पर क्या गुजरा...

उन्होंने बताया जिस समय महात्मा गाँधी की हत्या हुई...उस समय उनके पिता गोपाल गोडसे इंडियन आर्मी में सेवारत थे... और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वह ईरान और इराक में भी अंग्रेजी फौज की ओर से युद्ध में भाग लिए थे... गाँधी की हत्या के तुरंत बाद...नाथूराम गोडसे और नाना आप्टे को घटनास्थल से गिरफ्तार कर लिया गया...         और गोपाल गोडसे को पुणे से गिरफ्तार किया गया...  नि:संदेह गाँधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी...               और नाथूराम गोडसे और नाना आप्टे ने घटनास्थल से भागने की कोई कोशिश नहीं की थी...लेकिन गोपाल गोडसे पुणे में थे... उनका इस घटना से कोई संबंध नहीं था...पर उन्हें भी इस हत्याकांड के लिए 18 साल की सजा दी गई... नाथूराम गोडसे की एक इंश्योरेंस थी ₹5000 की...  जिसमें गोपाल गोडसे की धर्मपत्नी सिंधुताई गोडसे नॉमिनी थी...  क्योंकि नाथूराम गोडसे अविवाहित थे... तो उन्होंने अपने छोटे भाई की धर्मपत्नी को नॉमिनी बनाया था...इसी को आधार बनाते हुए काँग्रेस सरकार ने गोपाल गोडसे को 18 साल तक जेल में रखा... गाँधी वध के तुरंत बाद पुणे और उसके आसपास के इलाकों में चितपावन ब्राह्मणों की सामूहिक हत्याकांड शुरू हो गई...सिंधुताई गोडसे अपने तीनों छोटे बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए इधर उधर भागती रही...ऐसे वक्त में नाते रिश्तेदारों ने भी उनसे हाथ खींच लिया...राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गाँधी हत्या एक जघन्य अपराध है...कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया...उनके घर को जलाकर खाक कर दिया गया...जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने सड़क के किनारे लोहार का काम शुरू किया... स्वर्गीय नारायण गोडसे ने अपना हाथ मेरे हाथ में दिया... और दबाने को कहा... उनका हाथ पत्थर के माफिक कठोर था...  उन्होंने कहा 12 साल की उम्र से वह लोहे पीट रहे थे अपनी माता जी के साथ...बहनें बड़ी होती जा रही थी...  कहीं भी रिश्ते की बात होने से काँग्रेसी नेता लड़के वाले को भड़का देते थे...  और विवाह नहीं होने देते थे... उनकी माता जी के साथ अभद्र व्यवहार सरेआम होता था..2 बार तो ऐसा हुआ जब थाने से लड़के वाले को विवाह ना करने को कहा गया...  और विवाह करने की स्थिति में अंजाम भुगतने की धमकी दी गई...आखिर वीर सावरकर ने अपने छोटे भाई के बेटे से उनकी एक बहन का विवाह करवाया...जो बाद में हिमानी सावरकर के नाम से अभिनव भारत की प्रेसिडेंट हुई...आपको क्या लगता है कितने ब्राह्मणों की हत्या की गई..मैंने उनसे पूछा... 

उनकी आँखों में आँसू आ गए...और उन्होंने कहा दिन तो किसी तरह गुजर जाता था... लेकिन रात होते ही चुन-चुन कर चितपावन ब्राह्मणों के घर पर पेट्रोल से हमला होती थी...और घर और उसमें रहने वाले केा साथ जलाकर राख कर दिया जाता था... ना कोई मामला दर्ज किया जाता था... ना पड़ोस के लोग काँग्रेसियों के डर से मदद कर पाते थे... मदद करने वाले को अंजाम भुगतने की धमकी दी जाती थी... और कुछ जगह पर तो मदद करने वालों की सार्वजनिक हत्या भी की गई... ऐसी हालत में उनकी माताजी अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर गाँव चले गए... 

और एक गाँव से दूसरे गाँव तक भटकते रहे...लोगों ने सलाह दिया कि वह अपने को नाथूराम का संबंधी ना बताएं...

अन्यथा जान से मारे जाएंगे... किसी तरह से दंगा समाप्त हुआ...लगभग 8000 से अधिक चितपावन ब्राह्मणों की सरेआम हत्या के बाद...गाँधी वध का बदला 8000 निर्दोष ब्राह्मणों की हत्या करके लिया गया...उन्होंने एक लंबी साँस लिया ...  एक घूँट पानी पिया... उनकी आँखों में आँसू थे... और आगे कहना शुरू किया... जीवन कठिन था....

दो वक्त का भोजन असंभव... माताजी ने लोहार का काम शुरू किया... सड़क के किनारे बैठ कर लोहे के छोटे-मोटे औजार बना कर बेचना शुरू किया... 1962 के युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी सेवाएं केंद्र सरकार को देने के लिए पत्र भी लिखा... जिसका उन्हें कोई जवाब नहीं मिला... 1965 के युद्ध के दौरान भी उन्होंने अपनी सेवाएं केंद्र सरकार को देने के लिए पत्र लिखा जिसका कोई जवाब नहीं मिला...स्वर्गीय नाथूराम गोडसे के फाँसी के बाद उनके परिवार ने उनके मृत शरीर की माँग की थी... ताकि वे हिंदू रीति रिवाज के अनुसार उनका अंतिम क्रिया कर्म कर सकें...  लेकिन सरकार ने उसकी पत्र का कोई जवाब नहीं दिया...अंबाला जेल में ही उन दोनों को फाँसी देकर...

उनकी लाश भी जला दी गई...अस्थियाँ घग्गर नदी में फेंक दी गई... किसी तरह से उनके परिवार को स्वर्गीय नाथूराम गोडसे और स्वर्गीय नाना आप्टे की अस्थियाँ मिली...जिसको उन्होंने अपने घर के एक कमरे में रखा है...

 क्योंकि नाथूराम गोडसे की अंतिम इच्छा थी...उनकी अस्थियाँ सिंधु नदी में बहाया जाय...जब सिंधु नदी हिंदुस्तान के झंडे तले बह रहा हो...चाहे इसके लिए कितना भी समय लग जाए... कितनी भी पीढ़ियाँ गुजर जाए... नाथूराम गोडसे जी का कहना था... यहूदियों को 1600 साल लगा इसराइल को पाने में... हमें भी 100 - 200 साल लग सकते हैं...लेकिन हमें इंतजार और संघर्ष करना होगा... नाथूराम गोडसे ने एक बात कही थी... 

बाकी क्रांतिकारियों को और उनके परिवार वाले को... 

सम्मान मिलेगा...

धन भी मिलेगी... 

और लोग उनसे जुड़ने में गर्व महसूस करेंगे... 

वे देशभक्त कहलाए जाएंगे...  लेकिन मेरे परिवार को ना सम्मान मिलेगा... ना धन मिलेगा... लोग भी उनसे जुड़ने से परहेज करेंगे...उन्हें देशद्रोही कहा जाएगा... अंग्रेजों के समय में तो सिर्फ क्रांतिकारी को फाँसी दी जाती थी... 

और परिवार वाले सुरक्षित होते थे... मेरे मरने के 100 साल के बाद...लोगों को मेरा बलिदान समझ में आएगा...  

और गाँधी का मुखौटा उतर चुका होगा...लेकिन 100 साल तक मेरे परिवार को भीषण कष्ट सहने होंगे...आजादी के बाद ना सिर्फ नाथूराम गोडसे और नाना आप्टे को फाँसी दी गई... बल्कि उनके पूरे परिवार को तबाह और बर्बाद कर दिया गया... और साथ में तबाह हुए 8000 निर्दोष परिवार... गाँधी की अहिंसा की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी निर्दोष ब्राह्मणों को...नाथूराम गोडसे और नाना आप्टे की अस्थियों को मैंने प्रणाम किया... उनके साथ भोजन किया और मैंने चलने का इजाजत माँगी... वह मुझे छोड़ने गेट तक आए... मैं उनके चरण स्पर्श करने के लिए झुका...लोहे जैसे हाथों से उन्होंने मुझे उठाया... उनकी आँखों में आँसू थे..मेरी भी आँखें नम थी...

कहने का कुछ नहीं था... फिर भी उन्होंने कहा फिर आना... और घर पर ही रुकना...मैंने भी हाँ में सिर हिलाया...

#साभार- #यशवंत_पाण्डेय


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